उपमन्यु केस में अब तरह-तरह की चर्चाएं
मथुरा। एमबीए की छात्रा का यौन शोषण करने का आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्यु भले ही फिलहाल पुलिस की पकड़ से दूर है किंतु उसे लेकर पुलिस-प्रशासन तथा पत्रकारों के बीच ही नहीं, आम जनता के बीच भी चर्चाओं का बाजार गर्म है। मीडियामेन से मीडिएटर और फिर लाइजनर बने इस शख्स के बारे में आम जनता इसलिए भी जानना चाहती है क्योंकि कल तक कुछ खास अखबारों के नुमाइंदे जहां उसके फोटो प्रकाशित करना अपना धर्म समझते थे, आज उनके हाथ उसकी एक कॉलम खबर लिखने में कांप रहे हैं। वह जनहित में भी उसे लेकर ऐसी कोई खबर प्रकाशित करने की हिम्मत नहीं कर पा रहे कि आखिर बलात्कार जैसे संगीन आरोप वाला यह केस कहां तक पहुंचा और उसमें चल क्या रहा है।
आम जनता की उपमन्यु के बारे में उत्सुकता इस कारण भी बनी हुई है क्योंकि पुलिस ने अपने स्तर पर पूरी तरह चुप्पी साध ली है और किसी के पूछने पर भी उधर से कोई जवाब नहीं मिलता जबकि तरह-तरह की तथा नई-नई बातें सामने आ रही हैं।
कभी कहीं से खबर मिलती है कि उपमन्यु और पीड़िता के परिवार में समझौता हो गया है और इसके लिए मोटी रकम खर्च की गई है। कभी खबर आती है कि उपमन्यु के ऊपर बलात्कार के केस की जांच गैर जनपद स्थानांतरित हो गई है और इसलिए स्थानीय पुलिस चुप बैठ गई है जबकि कानून के जानकार कहते हैं कि इस केस में अब न तो समझौते की कोई गुंजाइश बची है तथा ना ही प्रतिवादी पक्ष के चाहने से जांच बदली जा सकती है।
इन सबके बीच एक तीसरी खबर ये भी उछल रही है कि उपमन्यु ने अपने और पुलिस के खास कुछ हाईप्रोफाइल दलालों के माध्यम से सेटिंग कर ली है और वो किसी तरह इस केस में फाइनल रिपोर्ट लगाने या इसे पूरी तरह कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।
चर्चाओं के अनुसार उपमन्यु के केस की जांच गैर जनपद स्थानांतरित कर दिये जाने जैसी अफवाह इन्हीं हाईप्रोफाइल दलालों के सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा है जिससे पुलिस और उपमन्यु दोनों को राहत मिल जाए तथा आम जनता भी यह मानकर चुप बैठ जाए कि जब जांच ही गैर जनपद चली गई तो स्थानीय पुलिस करेगी भी क्या।
दरअसल इस सबके पीछे उपमन्यु के अलावा भी कुछ सफेदपोश लोगों के अपने स्वार्थ हैं। ये वो लोग हैं जिन्होंने एक बहुत मामूली से पत्रकार को न सिर्फ मथुरा के पत्रकारों का डॉन बनाकर खड़ा कर दिया बल्कि लखनऊ व दिल्ली तक पहुंचा दिया।
ये बात दीगर है कि जिनके बल पर उपमन्यु पत्रकारों का डॉन बनकर उभरा, कुछ वर्षों से वह उनका भी अघोषित डॉन बन चुका था और उसकी मर्जी… या कहें कि सहमति के बिना तमाम सफेदपोश पत्ता तक नहीं हिला पाते थे।
बताया जाता है कि वह अब इनकी अघोषित संपत्तियों का हिस्सेदार बन गया था और इनके काले कारनामों का चिठ्ठा भी अपने पास रखता था।
उसके माध्यम से ही इनकी बेनामी संपत्तियों का सौदा होता था और उसके माध्यम से ही पैसे का आदान-प्रदान चलता था।
उपमन्यु से जुड़े सूत्रों की मानें तो इन सफेदपोशों द्वारा उपमन्यु को सहयोग करना अब उनकी मजबूरी बन चुका है क्योंकि यदि उसका पूरा खेल खुलता है तो शहर की जनता को अनेक सफेदपोश मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।
वह जानते हैं कि उपमन्यु पर भले ही आज यौन शोषण का गंभीर आरोप लगा हो किंतु हकीकत कहीं इससे ज्यादा गंभीर है और उसमें वह भी उपमन्यु के साथ बराबर के भागीदार हैं।
यही कारण है कि वह भी अपने स्तर से पुलिस-प्रशासन और न्यायपालिका के बीच घुसपैठ बनाये रहते हैं।
खुद को दूध का धुला साबित करने में लगे रहने वाले इन सफेदपोशों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि जब इनके उद्योग-व्यापार पूरी तरह जायज हैं और कहीं से कुछ गलत नहीं है तो फिर इन्हें अधिकारियों से घनिष्ठ पारिवारिक संबंध कायम करने की जरूरत क्यों पड़ती है, क्यों मथुरा में तैनात होने वाले हर अधिकारी को यह यहां आते ही फंसा लेना चाहते हैं?
फिर वह अधिकारी किसी स्तर का हो और किसी विभाग का ही क्यों न हो।
कहा तो यहां तक जाता है कि लड़की का उपमन्यु पर लगाया गया इस आशय का आरोप कि वह मुझे दूसरों से संबंध बनाने को बाध्य करने लगा था, इन्हीं सफेदपोशों की ओर इशारा करता है लिहाजा इन्हें डर है कि यदि निष्पक्ष जांच हुई और पूरा सच सामने आया तो उपमन्यु पर लगे आरोप बहुत पीछे छूट जायेंगे तथा एक-दो नहीं बहुत से उपमन्युओं के चेहरों से नकाब हट जायेगा।
उनके सफेद कपड़ों में लिपटी काली करतूतों से एक बार पर्दा उठा नहीं कि उसके बाद वो अधिकारी भी उन्हें पास नहीं फटकने देंगे जिनसे नजदीकियां बनाकर यह सभ्रांत कहलाते हैं और खुद को समाजसेवियों की लिस्ट में शामिल करते हैं।
समाज सेवा का दम भरने वाले इन सफेदपोशों को उपमन्यु के पकड़े जाने से ज्यादा अपनी पोल खुल जाने की चिंता है और इसीलिए वह येन-केन-प्रकारेण उसे पुलिस की पकड़ से दूर रखना चाहते हैं। और चाहते हैं कि जैसे भी हो, यह मामला निपट जाए क्योंकि वर्ना उन्हें अपने निपट जाने का खतरा सता रहा है।