छंटनी के बहाने मुकेश अम्बानी ने किया आशुतोष समेत कईयों को इशारा
दरअसल नेटवर्क 18 के समाचार मीडिया वेंचर्स सीएनएन आईबीएन और आईबीएन 7 में हुई छंटनी सिर्फ एक शुरुआत है…शुरुआत हालांकि काफी पहले ही हो चुकी थी…जब बीएजी फिल्म्स ने छंटनी की थी…साथ ही सीएनबीसी आवाज़ ने भी…और फिर आज तक ने भी गुपचुप तरीके से…समझना जरूरी सिर्फ ये ही नहीं है कि ये क्या हो रहा है…ये भी ज़रूरी है कि ये क्यों हो रहा है…
दुनिया भर की तमाम पूंजीवादी संस्थाएं इस ढांचे की असफलता की शिकार हैं…अमेरिका से आंध्र प्रदेश तक ये हो रहा है…वॉल स्ट्रीट से वेल्लूर तक इसके खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं…लेकिन क्या ये सिर्फ इतना ही है…
नहीं, कहीं न कहीं विवेक का इस्तेमाल कर विचार किया जाए तो हम को ये समझ आएगा कि ये एक उद्योगपति द्वारा अपनी हाल ही में खरीदी गई एक मीडिया फर्म के कई वरिष्ठ नीति निर्धारकों पर दबाव बनाने की प्रक्रिया भी है…ज़ाहिर है कि इसके बाद कम लोगों पर ज़्यादा काम करने का दबाव होगा…और वो भी उसी सैलरी में…
यही नहीं अब तक मुखर रहने वाले चैनल के कई कर्मचारी पत्रकार अब अपनी ज़ुबान बंद रखेंगे, जैसा कि हो भी रहा है…आशुतोष ज़ुबान पर 4 पीस सिलाई डाल कर बैठे हैं…तो राजदीप पहले ही बिके हुए थे…बाकी कई और वरिष्ठ पत्रकार हैं जो चैनल के साथ काम करते हुए भी तमाम मुद्दों पर मुखर रहे लेकिन फिलहाल शांति बनाए हुए हैं…
दरअसल पहले वार में अम्बानी और राघव बहल सम्पादकीय प्रबंधन पर दबाव डालने में सफल होते दिख रहे हैं…ये एक तरह का मानसिक और आर्थिक दबाव है जो उनको बोलने नहीं देगा, और एक बार जब आप प्रबंधन के आगे नैतिकता में झुकते हैं तो दोबारा उठने के मौके कम होते हैं…
ज़ाहिर है कि अम्बानी (मुकेश) ने अगर हज़ारों करोड़ का निवेश कर के और तमाम कागज़ी हेराफेरी कर के टीवी 18 में हिस्सेदारी समेत ईटीवी समूह को खरीदा है… तो वो उसका इस्तेमाल दरअसल अपने पूंजीवादी साम्राज्य के मुनाफ़े, सरकारों पर दबाव डालने, अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए करना चाहेंगे…साम्राज्यवाद (आर्थिक या राजनैतिक) को फलने फूलने देने का रास्ता मीडिया के भ्रष्ट हो जाने से हो कर जाता है…ज़ाहिर है मुकेश अम्बानी ने आशुतोष समेत तमाम पत्रकारों को समझा दिया है कि या तो साथ आ जाओ…वरना अगला नम्बर तुम्हारा है…उम्मीद है कि इशारा काफी है…देखते हैं कौन कौन अब स्वेच्छा से नौकरी छोड़ता है…और कौन अम्बानी के साथ खड़ा होता है…