संदर्भ एनडीटीवी पर प्रतिबंध: जरा इस कुंए से बाहर निकलने की भी तो कोशिश कीजिए। है कि नहीं ?
कुमार सौवीर
लखनऊ : पूरा का पूरा देश, जाहिर है कि वे ही लोग, जिन्हें एनडीटीवी न्यूज चैनल पर लगाये गये सरकारी प्रतिबंध पर ऐतराज है, उन्हें इतना गुस्सा है कि उनका बस चले तो न जाने क्या कर डालें। मसलन, यह प्रतिबंध आवाज को दबोचने वाला है, अभिव्यक्ति का गला घोंटने वाला है, क्रिया पर प्रतिक्रिया की प्रतिक्रिया बनाम क्रिया पर प्रतिक्रियाजनक है। इससे संविधान की मूलभूत और आधारभूत ढांचे पर अपूर्णीय क्षति होगी। वगैरह, वगैरह, वगैरह,वगैरह।
दोस्तों, मैं आप सब की बात का सम्मान करता हूं। यकीनन। मैं मानता हूं कि अभिव्यक्ति पर रोक तानाशाही है, हिटलरवादी है, इंसानियत को इंसान के तौर पर शामिल करने की साजिश है, और आखिरकार इंसानियत बिरादरी को तबाह करने वाली साजिश है। अगर इंसान से उसकी बोलने तक की भी इजाजत छीन ली जाएगी तो फिर वाकई तो कुछ बचा ही होगा। यानी सर्वनाश। यकीन मानिये, मैं भी इसी राय से सहमत हूं।
लेकिन इसके साथ ही साथ, मेरी एक गुजारिश भी है आप सभी साहबान से। वह यह कि अब एक नया नजरिया भी देख-समझने की जहमत फरमा लीजिए आली-जनाब, तो बड़ी मेहरबानी होगी। गुस्सा तो आपमें भरा ही हुआ है, जो अब गाली-गलौज के साथ ही साथ अपनी मनोस्थिति के मुताबिक कमोबेश होगा ही होगा। लेकिन कोई भी प्रतिक्रिया करने के पहले गुजारिश यही है कि इस मोड़ को एक अन्य नजरिये से जरूर देखें, परखें और फिर फैसला करें।
तो मेरा पक्ष यह है कि इस मामले में कोई भी गड़बड़ या साजिश नहीं है।
अब देखिये कि अगर आप अपने बेडरूम में सुहागरात मना रहे हों, अपने परिवार के साथ कोई जश्न मना रहे हों, या फिर किसी दुश्मन को नेस्तनाबूत करने की कोशिश में हों, ऐसे में आपके ही घर का अगर कोई शख्स आपकी रणनीति को ध्वस्त करने वाली सूचनाएं रचना शुरू कर दे, तो ऐसे लोगों को किन नामों से विभूषित किया जाना चाहिए।
यह तब और भी जरूरी हो जाता है जब हम आजकल की मीडिया का चरित्र देखते हैं। क्या आपको नहीं लगता है कि एक दौर में जो मीडिया आम आदमी आदमी की आवाज की प्रतिनिधि और प्रतिबिम्ब हुआ करती थी, वह अब केवल और केवल चकाचौंध बेशर्म बिक्री के तौर पर पेश की जा रही है। चाहे वह आप अखबारों को देखें या फिर न्यूज चैनलों पर निगाह डालें। आपको साफ लग जाएगा कि वहां बातें तो भले ही आम आदमी की हो रही हो, लेकिन आपको साफ लगे कि यह एक घिनौना धंधा में तब्दील हो चुका है, जैसे सोनागाछी, एमजी रोड वगैरह-वगैरह।
तर्क आपके पास हैं, दिमाग आपके पास है, फैसला आपका होगा और जाहिर है कि आप ही तय करेंगे कि ऐसे शख्स या ऐसे समूहों को किन नामों-उपाधियों से विभूषित किया जाए, और फिर उनके साथ क्या व्यवहार किया जाए।
बस अनुरोध यह कि अगर हो सके तो मुझे भी बताइयेगा जरूर कि आपका फैसला क्या रहा।
