अखबार मालिक के ठेंगे पर है नियम- कानून, आरएनआई नियमों का उल्लंघन
6 टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादकीय की सच्चाई …….?
आरएनआई तो इनके लिए भारतीय प्रेस परिषद की तरह बेकार की संस्था बन कर रह गई है। इसका कोई भी नियम ये नहीं मानते और कहते हैं कि सरकार डीएवीपी विज्ञापन की दर नहीं बढ़ा रही। हालात ये हैं कि विज्ञापन के आगे सभी अखबारों का पहला पन्ना़ संपादकों की तरह गायब कर दिया गया है। पहला पेज आजकल पांच नंबर से शुरू होता है। समाचार पत्र को विज्ञापन पत्र बना देंगे और कहेंगे कि धंधा चौपट हो रहा है।
अनुबंध श्रमिक (विनियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम,1970 का उल्लंघन
मीडिया संस्था्नों में न सिर्फ श्रम कानूनों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं बल्कि सर्वोच्चस न्यायलय के कई आदेशों को ये मानना जरूरी नहीं मानते। जब से अनुबंध पर कर्मचारियों को रखने का रिवाज शुरू हुआ है तब से न जाने कैसे –कैसे कॉन्ट्रैक्ट प हस्तातक्षर कराए जा रहे हैं।
वैसे तो अखबारों में अनुबंध पर कर्मचारी नहीं रखे जा सकते। यह सालों भर चलने वाला काम है। अनुबंध श्रमिक (विनियमन एवं उन्मूालन) अधिनियम,1970 का उल्लंघन है। वही ठेकेदार वही प्रधान नियोक्तान। यह हो नहीं सकता। अखबार मालिकों के खिलाफ उनके इस असंवैधनिक और गैरकानूनी काम को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। सर्वोच्च न्यायलय में वरिष्ठ वकील श्री कोलिन गोंजाल्विस ने इस मुद्दे को भी उठाया है।
भविष्य निधि अधिनियम 1952 का भी उल्लंघन
इन कंपनियों ने सीटीसी के बहाने पीएफ का अपना अंशदान भी कर्मचारियों के वेतन से काट रहे हैं और इसे अपने द्वारा कर्मचारियों के खाते में दिया गया अंशदान दिखा रहे हैं। यह इस अधिनियम की धारा 14 का उल्लंघन है और गैरजमानती अपराध। लेकिन इसकी किसे परवाह है जब सैंया भये कोतवाल।
रियायती दर पर दी गई जमीन का दुरुपयोग
करीब-करीब सभी मीडिया संस्थान मिली जमीन का दुरुपयोग कर रहे हैं। कई तो दिल्ली में जमीन ली है और पास के नोएडा में भी। अब ये दिल्ली में अपने भवन को किराये पर लगा कर नोएडा जा रहे हैं और कह रहे हैं उनपर दिल्लीे का कानून लागू नहीं होता।
इंडियन एक्सप्रेस और हिन्दुस्तान टाइम्स तो कह रहे हैं कि उनका कार्यालय शिफ्ट हो गया है। हकीकत से आप सभी परिचित हैं। जनसत्तायके नाम पर दिल्लीि मे जमीन है और उसी का कार्यालय अब नोएडा में है। किराये पर भवन को लगा कर कमाई कर रहे हैं और रोते हैं कि कर्मचारियों को देने का उनके पास कुछ है ही नहीं। हिन्दुस्तान टाइम्स का भी यही हाल है। दैनिक जागरण ने भी अखबार के नाम पर कई प्लॉट ले रखे हैं। राजस्थािन पत्रिका के खिलाफ तो कार्रवाई भी की गई। कुल मिलाकर अखबार के नाम पर हर जगह रियायत चाहिए।