सूचना विभाग में लूट का हिसाब दो
अनूप गुप्ता
समाजवादी सरकार के राज में भ्रष्ट अधिकारी प्रदेश को लूटते रहे और मुख्यमंत्री बाप-चाचा से लड़ने में उलझे रहे और लुटेरे अधिकारियों को प्रश्रय देते रहे. सूचना विभाग इसका जीता जागता उदाहरण है. मायावती के शासनकाल में जिस सूचना विभाग का बजट 100 करोड़ रुपए से भी नीचे का था, अखिलेश यादव के शासन में इसे बढ़ाकर 600 करोड़ कर दिया गया. जनता के टैक्स का पैसा ऐसे-ऐसे लोगों को दे दिया गया, जो दलाली में लिप्त थे. भ्रष्ट सरकार को बचाने में लिप्त थे. भ्रष्ट सरकार के कारनामों के उलट लिखकर कुछ अखबार और पत्रकार चार सालों में करोड़पति-लखपति बन गए.
पूरे पांच साल अखिलेश सरकार ने उन सभी ईमानदार मीडियाकर्मियों का गला घोंटने का काम किया, जो सरकार और गायत्री जैसे उनके मंत्रियों का काला-चिट्ठा खोला, अधिकारियों के लूटतंत्र की परतें खोली. भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबी सरकार बड़े मीडिया हाउसों को 2400 करोड़ का चारा फेंककर धृतराष्ट्र बनने पर मजबूर कर दिया. आंखों पर बंधी 2400 करोड़ की पट्टी के चलते अखबार और चैनलों के साथ पत्रकारों को भी कुछ नजर नहीं आया. लुटेरे मीडिया हाउस कुत्तों की भांति विज्ञापन रूपी हड्डी लेकर सरकार और सूचना विभाग के अधिकारियों के दरवाजे पर लार टपकाते रहे. तलवे चाटते रहे और वही लिखते रहे जो सरकार चाहती थी.
उत्तर प्रदेश के सबसे भ्रष्ट अधिकारी को इस विभाग की कमान मिलते ही लूट की जैसे बाढ़ आ गई. यह भ्रष्ट अधिकारी अपने हिसाब से पूरे सूचना विभाग को अपने नियंत्रण में ले लिया. उसके दरवाजे पर कटोरा लेकर विज्ञापन की भीख मांगने वालों की भीड़ जुटने लगी. यह अधिकारी दुत्कारता फिर भी कटोरा छाप पत्रकारों की भीड़ कम होने का नाम नहीं लेती. सप्ताह के शुक्रवार को तो मीडियाकर्मी भिखारी बनकर इस अधिकारी के पास ऐसे पहुंच जाते जैसे उर्स का मेला लगा हो. यह अधिकारी भिक्षा स्वरूप कभी-कभी कुछ दान कर देता, जैसे वह अपने बाप की कमाई का पैसा दे रहा हो.
जनता के टैक्स के पैसे से किस मीडिया हाउस, अखबार, चैनल और व्यक्ति को कितना दान दिया गया, इसका खुलासा होना चाहिए. इस लूट में कौन-कौन चेहरे शामिल रहे यह भी सामने आना चाहिए. जनता अपने टैक्स के 2400 करोड़ रुपए का हिसाब चाहती है. जनता की इस गाढ़ी कमाई की लूट का हिसाब लेने का वक्त आ चुका है. जनता को भी योगी सरकार से उम्मीद है कि वह भ्रष्टाचार में शामिल चेहरों को बेनकाब करेगी. हम भी 18 अप्रैल को सूचना विभाग की इस लूट के खिलाफ धरना देंगे. आवाज उठाएंगे. अगर किसी को लगता है कि इस लूट के खिलाफ खड़ा होना चाहिए तो वह 18 अप्रैल को सुबह 11 बजे सूचना विभाग पहुंचे और एक नागरिक की जिम्मेदारी निभाए.
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