राजदीप सरदेसाई ने कहा “बात ख़त्म करो” कासगंज में आख़िर क्या हुआ? क्या हुआ अगर मुस्लिम ने चंदन को गोली मार दी
26 जनवरी को कासगंज में हुई हिंसा में दो परिवार के घरों के चिराग बुझ गये, देश के हित में देश का तिरंगा हाथ में लिए देश के दो मासूम बेटे शहीद हो गये,पुरे देश में मायूसी छा गयी, अब तक देशवासियों के मन में केवल एक ही सवाल गूँज रहा है “क्या हम अपने देश में अपना तिरंगा नही लहरा सकते”? क्या हम अपने देश में भारत माता की जय और वन्दे मातरम की गूँज देश में नही सुना सकते? क्या अपने ही देश प्रेम को जाहिर करना अब गुनाह हो गया है? क्या कसूर था उन मासूमों का जिन्हें अपनी जान गवानी पड़ी? क्या कसूर था उस माँ का जिसे अपना लाल खोना पड़ा?
जहां पूरा देश इन सवालों से जूझ रहा है वहीं दूसरी और दौगलीबाज मीडिया इतना गिर चूका है की उन्हें तो ये दो समुदाए के बीच हुई एक छोटी सी झड़प नजर आती है,उन्हें तो ये दिखता है की अपने ही देश में अपना ही झंडा फिराने के लिए अनुमति नही ली गयी थी|हर रोज उनकी तरफ से कोई न कोई शर्मनाक ब्यान आते है|ये लोग इतने गिर चुके है की कुछ लिखते या बोलते वक़्त भी इनका ज़मीर नही काँपता|
हाल ही में कासगंज मुद्दे पे राजदीप सरदेसाई ने भी एक ट्वीट करते हुए इस बात को सही बताया है| राजदीप सरदेसाई ने लिखा है की कासगंज में आखिर क्या हुआ है? अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (ABVP) ने हिंसा भड़काई थी, मुस्लिम समुदाय ने तो सिर्फ जवाब दिया है जिसमे एक लड़के चन्दन गुप्ता की मौत हो गयी|अब इस बात को ख़तम कीजिये,अफ्वाओं को उड़ाना बंद कीजिये|
कासगंज में आख़िर क्या हुआ? @आजतक के ग्राउंड रिपोर्ट से सचाई सामने आइ. ABVP ने हिंसा भड़काई, मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने जवाब दिया, फ़ाइअरिंग में एक लड़के चंदन की मौत हुई. अब रूमर बंद करिए. https://t.co/3haoPi7s0O
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) January 28, 2018
राजदीप के अनुसार तो अब इस बात को ख़तम कर देना चाहिए|कुछ ख़ास नही हुआ है बस एक मुसलमान ने हिन्दू को गोली मार दी है| राजदीप जब जुनैद की हत्या हुई थी तब भी तो फिर कुछ नही हुआ था न|क्यूँ तब तुम ने छाती पीट पीट कर उसे राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया था,विदेशी अखबारों तक में खबरें छपवाई थी,मोदी जी तक पर आरोप लगा दिया था, जबकि तब सच यही सामने आया था की वो लिंचिंग नही केवल ट्रेन की सीट को लेकर झड़प थी|जुनैद ने बुजुर्ग को सीट देने से इनकार किया था इसलिए कुछ युवाओं के बीच में झडप होगयी जिसमे जुनैद की हत्या होगयी|तब क्यूँ तुमने नही कहा की मामले को खत्म करे अफवाएं मत उडाए क्यूँ तब चुप होने के लिए नही कहा|वो बात भी तो केवल इतनी ही थी न|
राजदीप के इस ट्वीट पे लोगों ने उनको जमकर फटकार भी लगाई है और उनकी ही भाषा में उनको जवाब देते हुए समझाया|
एक यूजर ने ट्वीट किया सेना का क़ाफ़िला जा रहा था .. कुछ मुस्लिम आतंकवादियों ने पत्थरबाज़ी चालु कर दी … सेना ने आत्मरक्षा के लिए गोली चलायी ।.. कुछ इस्लामी आतंकवादी मरे गए । अब रमूर फैलना बंद किजीए ।समझे
सेना का क़ाफ़िला जा रहा था .. कच्छ मुस्लिम आतंकवादियों ने पत्थेरबाज़ी चलु कर दी … सेना ने आत्मरक्षा के लिए गोली चलायी ।.. 2 इस्लामी आतंकवादी मरे गए । अब रमूर फैलना बंद किजीए । समझे .. Try making your own opinions. @aajtak@ZeeNews @republic
— Aayush kumar (@ayushniftian) January 28, 2018
तो वहीं एक दुसरे यूजर ने ट्वीट किया की तुम्हारी तो फिदरत ही ऐसी है|तुमसे उम्मीद भी क्या की जा सकती है|
तुम्हारी ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार हिन्दू की मौत मुसलमान के हाथ हो जाये तो उस का जिम्मेदार वो खुद ही होता है पर अगर मुसलमान की मौत हो जाये तो उसका ज़िम्मेदार हिन्दू ही होता है दरबारी पत्रकारों से क्या सत्यता की उम्मीद करना
— anand sharma (@anandsharma_bjp) January 28, 2018
एक यूजर ने तो ये जवाब दिया इस लहजे से तो फिर 2002 हिंसा में हिन्दुओं ने भी मुस्लिमों को कारसेवकों के जलाए जाने का जवाब ही दिया था तो आज के बाद तुम इस बात को दुबारा मत उठाना|तुम्हे भी इस पे चुप हो जाना चाहिए|
अबे bsdk उस हिसाब से तो.. 2002 मे मुस्लिम ने कारसेवकों को जलाकर हिंसा भड़काई थी..फिर हिन्दू ने उसका जवाब दिया था..फिर आजतक तेरे जैसे 2002 का रंडीरोना क्यों करते रहते है…. और अब 2002 की बात करके रूमर मत फैलाना…
— इजरायल (@isreal008) January 28, 2018
आप और आपकी ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ ग्राउंड में ही दबा देने के लायक होती हैं। ईश्वर जाने, ये तृतीय श्रेणी के पत्रकार पहलू खान और अख़लाक़ के मामले में जाने कहाँ से तीसरी आँख ले आते है! वन्दे मातरम् गाना कबसे हिंसा भड़काने की श्रेणी में गिना जाने लगा है?!
— アナグラムシング (@raza_azh) January 28, 2018
कहते है जो जिस भाषा में बात करे उसे उसकी ही भाषा में जवाब समझ आता है|लोगों ने राजदीप को उन्ही की तर्ज में उन्हें समझाने की कोशिश की|वैसे तो हम इस घटिया पत्रकार से फिर भी कुछ समझने की उम्मीद नही लगा सकते|इसकी नज़रों पे तो पड़दा पड़ा हुआ|या फिर ये कहूँ की आँखें,कान सब होते हुए भी ये अंधे,बहरे हो तो गलत नही होगा|क्यूँ की इन्हें ता ही नही न ही कुछ सुनता है की क्या हुआ है|इनकी नज़र में शायद कासगंज में कुछ नही होगा पर एक माँ ने अपना पुत्र खोया है,एक बाप ने अपना सहारा खोया है,इस देश ने एक देशभक्त खोया है जिसकी भरपाई किसी बात से नही हो सकती|
ये कुत्ते तो भोंकते रहेंगे ही|इनका कोई इलाज़ नही है|ये खुद तो बिक चुके है और पल पल देश को बेच के खा रहे है|