…….और सिपाही जी ने हमें तहजीब सिखाया
समय-क़रीब 10:30 रात
हम अपने अखब़ार के दफ्तर डालीबाग से निकले। गोल मार्केट चौराहे पहुँचे। चौराहे पर कई दारोगा और सिपाही वाहनों पर टूट पड़ रहे थे। सारे दारोगाओं के हाथ में चालान बुक थी। सिपाही गाड़ी रोक रहे थे। दारोगा बोनट पर बुक रख कर चालान काटना शुरु कर दे रहे थे। ये क्रम पिछले एक माह से जारी है ।हम भी महीनों से रोज-रोज झेल रहे हैं। कल 24 जुलाई की रात तो हद हो गयी। चौराहे पर पहुँचते ही 3 दारोगा 2 सिपाही घे
र लिये। जैसे कोई आतंकी हो। पूछताछ पर मैंने बता दिया कि अखब़ार के दफ्तर से आ रहे हैं। मैं रोज इसी समय आता हूँ और आगे भी आता रहूंगा। अपना कार्ड भी दिखाया। दारोगा जी कहने लगे कि ये मान्य नहीं है। काफी देर तक तीखी बहस के बाद दो दारोगा दूसरे वाहनों की ओर चले गये लेकिन एक यदुवंशी दारोगा जी अड़ गये। चालान काटने पर आमादा। मेरे कार की आगे-पीछे से मोबाइल से फोटो लेने लगे। फिर नोकझोंक हुई। आधे घंटे बाद बोले-इंस्पेक्टर साहब चौकी के अन्दर बैठे हैं। उनसे मिलिये। अगर वो कहेंगे तभी जाने देंगे। मैं इंस्पेक्टर से मिला। कार्ड दिखाया। उन्होंने कहा, जाइये लेकिन पुलिस से भिड़ना ठीक नहीं। हम अपनी पर आ गये तो- – – – -। मैने कहा, ठीक है आप अपनी पर ही आ जाइये। इंस्पेक्टर साहब ने कहा, जाइए, आप लोग तिल का ताड़ बनाते हैं। मैं चौकी से बाहर निकला। यदुवंशी दारोगा जी से अनुमति ली। उनके साथ खड़े सिपाही जी ने मुझे बोलने की तहजीब सिखायी। हमने सुना। फिर गोलमार्केट चौराहे से अपने घर जानकीपुरम की ओर चल दिये।
हे महराज!
आवश्यक सेवाओं के साथ प्रेस को भी छूट दी गई है। अब तक तो मैं यही समझता था।
अनिल भारद्वाज
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