काका ( रामेश्वर पान्डेय ) नहीं रहे

भाषाई पत्रकारिता के दिग्दर्शक व्यक्तित्व काका को विनम्र श्रद्धांजलि । सब कुछ जस का तस चलते रहने के ठीक बांएं खड़े , सतत संघर्षरत काका के बारे में ‘ नहीं रहे ‘ सुनना , यकीन नहीं होता । उनका और हम सब उनके मित्रों का तो ‘ जिंदगी की जीत में ‘ हमेशा यकीन रहा । हमारी हार कैसे हो गयी ।
काका से अपने गहन भावात्मक लगाव का तो इजहार कभी नहीं किया , उनसे लड़ना हमेशा अच्छा लगा । क्या शख्स थे वह , जिनसे शरारतन असहमत होना और लड़ना अच्छा लगता हो । अभी कई फैसलाकुन बहसें बाकी थीं । लगता है काका अब एक दूसरे को छीलती और आत्ममूल्यांकन वाली बहसों से बचना चाह रहे थे । उनमें इस साहस का क्रमिक क्षरण ही हो सकता है उनके देहावसान की वजह हो । काका का जाना सुनकर बहुत आघात लगा – बहसें और सामने मेज पर पैमाना दोनों छोड़कर निकल लेना ।
तडि़त कुमार , कमलेश तिवारी , देवेन्द्र सिंह , विनय श्रीकर , इस गोरखपुरिया कड़ी के जयप्रकाश शाही तो 2 फरवरी 1998 को ही चले गये , आज काका भी नहीं रहे ।
तड़ित कुमार , विनय श्रीकर, स्व. जय प्रकाश शाही और स्व. रामेश्वर पांडेय सभी मार्क्सिस्ट ( वाम ) एक्टिविस्ट रहे । कवि और पत्रकार दोनों व्यक्तित्व इनमें लहरा कर पका । मार्क्सवादी बौद्धिक, कवि और वरिष्ठ पत्रकार रामेश्वर पांडेय काका को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि ।
* राघवेंद्र दुबे भाऊ
मोबाइल 7355590280
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