बड़े अखबारों के पत्रकार और न्यूज़ पोर्टल को मान्यता देने के लिए ना तो नियम आड़े आता है और ना ही किसी तरह का कोई कानून
राज्य राज्य मुख्यालय मान्यता प्राप्त पत्रकार का दर्जा देने हेतु जिस तरह धोखाधड़ी और फर्जीवाड़ा किया गया है उसका परत दर परत खुलासा होता जा रहा है। सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों द्वारा नियम कानून को दरकिनार करते हुए जिस तरह फर्जी मान्यताएं निर्धारित की गई है उससे ना सिर्फ मुख्यमंत्री कार्यालय को खतरा है बल्कि अतीक अशरफ जैसी घटनाओं को प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दोहराए जाने का भी खतरा मंडरा रहा है।
राज्य मुख्यालय की मान्यता प्रदान करने में सूचना विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा आंखें आंखें बंद करके अपने निजी फायदे के लिए निर्गत की गई है और इसका ठीकरा लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों के सर पर फोड़ा जा रहा है जबकि स्वयं को बड़ा समाचार पत्र कहने वाले समूह जागरण एवं नवभारत टाइम्स को निर्गत की गई मान्यताओं की जांच की जाएगी तो अनेक फर्जीवाड़ा और जालसाजी करके प्राप्त की गई मान्यताओं का खेल उजागर होगा।
जन सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत *श्री ललित मोहन उपनिदेशक प्रेस द्वारा दिनांक 5 मई 2023 को उपलब्ध कराई गई सूचना से नवभारत टाइम्स समाचार पत्र के जिन पांच पत्रकारों को राज्य मुख्यालय के प्रेस मान्यता निर्गत की गई है उसका खुलासा हो रहा है।
श्री ललित मोहन द्वारा अपने उत्तर में बताया गया है कि नवभारत टाइम्स के लखनऊ/कानपुर एवं दिल्ली संस्करण को सम्मिलित करते हुए समाचार पत्र के 5 प्रतिनिधियों को नियमानुसार राज्य मुख्यालय मानता प्राप्त प्रदान की गई है वहीं भारत सरकार के समाचार पत्र के पंजीयक कार्यालय आर एन आई की वेबसाइट से प्रमाणित होता है कि नवभारत टाइम्स हिंदी संस्करण का लखनऊ से कोई भी शीर्षक आवंटित नही किया गया है और ना ही समाचार पत्र को लखनऊ से प्रकाशित किया जाता है ऐसे में नवभारत टाइम्स के प्रतिनिधियों को राज्य मुख्यालय मान्यता दिया जाना ना सिर्फ गैरकानूनी है बल्कि पूरी मान्यता नियमावली का मख़ौल उड़ाने जैसा है।
वलघु एवं मध्यम समाचार पत्रों के प्रतिनिधियों की मान्यता समाप्त करने जी कोशिश जारी है और निजी पोर्टल के लिए दिन रात मेहनत करने वालों को मान्यता न देने हेतु सूचना निदेशक नियमावली में कोई प्रावधान ना होने की बात कहकर टरकाते रहते हैं और इसके विपरीत स्वयं सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में नियमावली में पोर्टल के प्रतिनिधियों को मान्यता देने का कोई प्रावधान ना होने के बाद भी न्यूज़ पोर्टल से दो मान्यताएं किन नियमों के तहत की गई हैं इसके लिए विभाग के पास कोई भी जवाब नहीं है।
उत्तर प्रदेश के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों द्वारा नियमों को दरकिनार कर जिस तरीके से मान्यताएं बाटी हैं उसके निराकरण के लिए मान्यता समिति का तो गठन कर दिया लेकिन जो फर्जीवाड़ा सूचना विभाग के अधिकारियों द्वारा किया गया है उसके लिए तो उन पर धोखाधड़ी का मुकदमा शासन स्तर के अधिकारियों द्वारा दर्ज कराया जाना अत्यंत आवश्यक है
( नोट )
संल्गनक ।सूचना अधिकार कानून से मिले सूचना विभाग के जवाब संल्गनक साथ है।