जज ने जज के खिलाफ जज से लगाई गुहार, मांगी इक्षामृत्यु

जिला जज मुझे रात को बुलाते थे, अश्लील बातें और इशारे किया करते थे. मेरा मानसिक और शारीरिक शोषण किया करते थे. मैंने उच्चाधिकारियों से शिकायतें कीं, मगर इंसाफ नहीं मिला

बांदा। जिला जज मुझे रात को बुलाते थे, अश्लील बातें और इशारे किया करते थे. मेरा मानसिक और शारीरिक शोषण किया करते थे. मैंने उच्चाधिकारियों से शिकायतें कीं, मगर इंसाफ नहीं मिला इसीलिए आपको चिट्ठी लिख कर इच्छा मृत्यु की गुहार लगा रही हूं.

जी हां, ये मज़मून है एक जूनियर महिला जज की उस चिट्ठी का, जो उन्होने भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चन्द्रचूड़ को लिखी है. ये जज साहिबा इन दिनों यूपी के बांदा ज़िले की बबेरू तहसील में तैनात हैं. नाम है जस्टिस अर्पित साहू और पद सिविल जज. जस्टिस साहू के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखी गई चिट्ठी से न्याय के गलियारों में सनसनी पसर गई है.

बांदा की बबेरू तहसील में तैनात सिविल जज अर्पित साहू ने अपनी चिट्ठी में ज़िला जज का नाम लिखते हुए, सीधे तौर पर आरोप लगाए हैं कि जिला जज मुझसे अश्लील बातें और इशारे किया करते थे. मेरा मानसिक और शारीरिक शोषण किया करते थे. कई बार मुझे रात को बुलाया करते थे. तमाम शिकायतों के बावजूद जब इंसाफ नहीं मिला तो आपको चिट्ठी लिख कर इच्छा मृत्यु की गुहार लगा रही हूं.

जिला जज के द्वारा अपनी जूनियर महिला जज के दैहिक शोषण के सम्बन्ध में लिखी गई चिट्ठी के मीडिया में आते ही हड़कम्प मच गया. पहले बांदा और बबेरू की कचहरी में चर्चा-ए-आम हुई, फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ तक पहुंच गई.

हिन्दी ख़बर संवाददाता ने जब ख़बर की पड़ताल की तो पता चला कि बांदा के बबेरू कोर्ट में तैनात सिविल जज अर्पित साहू ने जो आरोप लगाए हैं वो बांदा जिला जज पर नहीं हैं, बल्कि बाराबंकी के जिला जज के विरूद्ध लगाए गए हैं. चूंकि अब जस्टिस अर्पित साहू का तबादला बाराबंकी से बांदा जिले में हो चुका है, इसीलिए बांदा के अधिकारी इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दे पा रहे हैं. जितने मुंह उतनी बातें की जा रही हैं. इस बारे में पीड़िता जज अर्पित साहू से भी फोन पर बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका.

इस प्रकरण में और ज्यादा पड़ताल करने पर मालूम हुआ कि बाराबंकी में पोस्टिंग के दौरान पीड़ित जज अर्पित साहू ने शिकायतें की थीं. मगर जब न्याय नहीं मिला तो मजबूर होकर उन्हे CJI डी.वाई. चन्द्रचूड़ को पत्र लिखना पड़ा और इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगनी पड़ी. सूत्रों के अनुसार, पीड़िता जज के द्वारा उल्लेखित तथ्यों में ये भी कहा गया है कि जब हम स्वयं अपने साथ हुए अपराधों के विषय में न्याय से वंचित किए जा रहे हैं तो दूसरों को संविधान सम्मत न्याय दिलाने की शपथ एवं जिम्मेदारी को पूरा कैसे कर सकेंगे?

अपुष्ट सूत्रों के द्वारा आगे की जानकारी ये मिल रही है कि जूनियर डिवीजन जज अर्पित साहू की छवि बेहद सख्त न्यायमूर्ति की है. जस्टिस अर्पित साहू जब अपनी अदालत में बैठीं थीं, तो किसी मैटर में बहस के दौरान बारांबकी बार के महामंत्री रितेश मिश्रा से उनकी शाब्दिक तकरार हो गई थी. इसके बाद रितेश मिश्रा ने जस्टिस अर्पित साहू की अदालत का बॉयकाट कर दिया था. तब इस मामले ने बेहद तूल पकड़ा था. बाद में ये विवाद जब जिला जज साहब तक पहुंचा तो आरोपों के अनुसार उन्होने भी महिला जज को अपमानित किया था और बार एसोसिएशन का पक्ष लिया था. इससे जज अर्पित साहू बेहद नाराज़ हो गई थीं. और इसके बाद उनका तबादला बाराबंकी से बांदा हो गया था.

अब जब जज अर्पित साहू का CJI को लिखा गया पत्र सामने आया है तो तरह-तरह की चर्चाओं को ज़ोर मिल गया. इस बारे में जिला जज बांदा जस्टिस बब्बू सारंग ने पूछे जाने पर बताया, “जज अर्पित साहू द्वारा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र भेजने की जानकारी नहीं है. हालांकि महिला जज बांदा में तैनाती के पहले बाराबंकी में पोस्टेड थीं. इस बारे में और ज्यादा जानकारी मिलते ही आप लोगों को इत्तला दी जाएगी.”

हकीकत चाहे जो भी क्यों ना हो, मगर ऐसे आरोप-प्रत्यारोपों से न्यायपालिका की छवि को गहरा आघात ज़रूर लगता है. इसीलिए CJI को गंभीरता से मामले की तफ्तीश करवा कर, दोषी पर कार्रवाई करनी चाहिए ताकि विवाद का न्याय-सम्मत पटाक्षेप हो सके.

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