लखनऊ का कथित सामाजिक कार्यकर्ता संजय शर्मा कंटेंट चोर है!

: ‘यूपी के आईपीएस अमिताभ ठाकुर के पास खाने और दिखाने के दाँत अलग अलग’ संबंधी आरोपों का जवाब: मैंने एक सज्जन संजय शर्मा द्वारा लिखा “यूपी के आईपीएस अमिताभ ठाकुर के पास खाने और दिखाने के दाँत अलग-अलग” शीर्षक लेख पढ़ा जिसमे सब-टाइटल है-“पारदर्शिता की बात करने बालों को ही पारदर्शिता से परहेज”.

इस लेख में लिखा है-“पर उपदेश कुशल बहुतेरे. शायद आपने सुना तो बहुत होगा पर अब देखना चाहें तो देख भी लीजिए. जनपक्षधर्ता की बात करने बाले आईपीएस अमिताभ ठाकुर को भी अचल संपत्ति की घोषणा से परहेज है. क्या यूपी आईपीएस अमिताभ ठाकुर के खाने और दिखाने के दाँत अलग अलग हैं? भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अनुसार अमिताभ ठाकुर ने वर्ष 2012, 2013, 2014 में अचल संपत्ति की घोषणा नहीं की है. आख़िर ऐसा क्या है जिसकी बजह से अमिताभ अपनी अचल संपत्ति की घोषणा करने से डर रहे हैं और अपना मुँह छुपाते घूम रहे हैं. शायद ‘तहरीर’ द्वारा की गयी शिकायत के बाद चले सरकारी चाबुक के बाद ही अन्य बेशर्मों के साथ ठाकुर साहब को भी कुछ शर्म आए और वे सरकारी क़ायदे-क़ानूनों का खुद भी अनुपालन करना सीखें.”

फेसबुक पर इस लेख के बाद कई टिप्पणियाँ आयीं जिनमे वीसा यूरोप में कार्यरत चेतन कश्यप  ने कहा- “ऐसा हो ही नहीं सकता, कोई गलत धारणा नहीं पाली जाए, मैं उनको अच्छी तरह जानता हूँ, वो एक सच्चे, नेक और ईमानदार अधिकारी हैं. यह आपकी निजी धारणा है.”

इसके विपरीत लखनऊ के अधिवक्ता श्री सत्येन्द्र नाथ श्रीवास्तव ने कहा कि इनके अपने भाई यश ठाकुर के पास कानपुर में तीन पेट्रोल पम्प हैं. इस पर उत्साहित हो कर संजय शर्मा ने श्री श्रीवास्तव से पूछा-“अच्छा यश ठाकुर अमिताभ ठाकुर के अपने भाई हैं?”  श्री श्रीवास्तव ने उतने ही आत्मविश्वास के साथ कहा- “हाँ सर, मेरे एक क्लाइंट के पास काफी पेट्रोल पम्प हैं, उन्होंने मुझे यह सूचना दी है.” रंजन कुमार ने कहा- “ठाकुर जी पे इतने तल्खी की वजह?” श्री चेतन ने पुछा कि उन्हें पेट्रोल पम्प का पता दिया जा सकता है” लेकिन इसका कोई उत्तर नहीं आया.

एक निजी कंपनी में कार्यरत अनिल सिंह ने कहा कि जैसे अवाम ने “आप की पोल खोली, सबको वैसे ही एक दूसर की कमजोर नस पता है. बस प्रोपोगंडा है मैं ही नैतिक रूप से सही हूँ.” इस पर श्री संजय ने कहा-“क्या आपको लगता है अमिताभ ठाकुर क़ानून के ऊपर हैं?” दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता जयकुमार झा ने कहा-“इस मामले में हमारा समर्थन है तहरीर को की पारदर्शिता की शुरुआत खुद से ही होनी चाहिए ,मैं अगर अपनी जाँच का अधिकार हर सच्चे -अच्छे नागरिक को दूंगा तभी मैं प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति की जाँच करने का अधिकार रखूँगा.”

श्री अंकित धन्विक ने कहा- “मैं किसी के समर्थन व विरोध में नहीं बल्कि यह कहना चाहता हूँ कि इस प्रकार का कदम देश भर में एक अच्छा साफ़सुथरा वातावरण स्थापित करेगा. इस प्रकार क़ी जानकारी जनता तक जरूर पहुंचनी चाहिए जिसके लिए मैं आदरणीय संजय शर्मा जी को धन्यवाद प्रकट करता हूं और पूर्व यूपीए सरकार का आभारी हूँ जिसने सूचना का अधिकार जनता के समक्ष लाया”. आशीष सागर ने इसे बेबाक बयानी बताया.

अब बात संजय शर्मा की. मैं संजय शर्मा को लम्बे समय से जानती हूँ. उनके और उनकी पत्नी उर्वशी शर्मा के कार्यों की मैंने सार्वजनिक और निजी रूप से प्रशंसा भी की है. वैसे भी सामाजिक क्षेत्र में बहुत कम लोग काम करते हैं, अतः हमने हमेशा इन्हें इस क्षेत्र में अपने से सीनियर मान कर उनका लिहाज किया. बाद में कई बातें ऐसी आयीं जिनसे मुझे लगा कि हमें संजय शर्मा से कुछ अलग ही रहना चाहिए. इनमें मुख्य रूप से सामने कुछ कहने और पीठ पीछे फेसबुक पर या अपने ब्लॉग पर दूसरी बातें लिखने और हमारे द्वारा की गयी शिकायतों और कार्यों को हूबहू उतार पर अपने नाम से अधिकारियों को भेज कर श्रेय लेने का प्रयास करने जैसी बातें शामिल थीं. इस सम्बन्ध में पूर्व में भी कई उदाहरण रहे हैं पर हाल में भी इसके कई उदहारण मैंने स्वयं देखे हैं.

मैंने दिनांक 25/01/2015 को समय 05:16 बजे शाम अधीक्षण अभियंता, सिंचाई, बहराइच की वित्तीय अनियमितता की शिकायत  की और संजय शर्मा के ब्लॉग http://tahririndia.blogspot.in/ पर यही शिकायत उनके द्वारा अपने स्तर पर करने की बात लगभग हूबहू उन्ही शब्दों में उसी रात समय 08:28 बजे अंकित हो गया.

मैंने 02/02/2015 को 03.05 बजे शाम जौहर ट्रस्ट भूमि मामले में आज़म खान की लोकायुक्त को शिकायत की बात फेसबुक पर लिखी और संजय शर्मा ने अगले दिन 03/02/2015 को समय 03:46 शाम लगभग शब्दशः वही शिकायत अपनी ओर से राज्यपाल, उत्तर प्रदेश को भेजने की बात लिखी.

मेरे पति अमिताभ ठाकुर ने अपने फेसबुक पर दिनांक 05/02/2015 01:17 बजे दिन में पूर्व केन्द्रीय गृह सचिव की सीवीसी में शिकायत भेजने की बात लिखी और संजय शर्मा ने अपने ब्लॉग पर ठीक वही शिकायत लगभग उन्ही शब्दों में सीवीसी को उसी रात 11:00 बजे भेजने की बात बतायी.

मैं यह मानती हूँ कि सामाजिक कार्यों और शिकायतों पर किसी का कॉपीराईट नहीं होता पर बार-बार किसी अन्य व्यक्ति द्वारा भेजी शिकायत को हूबहू नक़ल कर अपना बता कर भेजना भी तो अपने आप में कई सारे प्रश्न छोड़ जाता है.

उसके अलावा यहाँ एक और बात महत्वपूर्ण है. शिकायत एक बात होती है, अपनी व्यक्तिगत तल्खी का प्रदर्शन दूसरी बात. संजय शर्मा ने मेरे पति द्वारा कथित रूप से अपना प्रॉपर्टी रिटर्न नहीं दाखिल करने की बात अपने ब्लॉग में पांच बार पांच शीर्षक से लिखा-“यूपी : पारदर्शिता की बात करने बालों को ही पारदर्शिता से परहेज”, “यूपी के आईपीएस अमिताभ ठाकुर के पास खाने और दिखाने के दाँत अलग अलग”, “UP IPS Amitabh Thakur’s double faced approach exposed”, “तो दूध का धुला नहीं है यूपी का कथित समाजसेवी आईपीएस अमिताभ ठाकुर ! “, और “UP IPS Amitabh Thakur too a ‘Black’ Sheep of same ‘Black’ Flock”. सभी लेख में एक ही बात है पर अलग-अलग शीर्षक से उसमे मिर्च-मसाला भरने का पूरा प्रयास किया गया. साथ ही बेशर्म, दोहरा चरित्र, ब्लैक शीप जैसी टिप्पणी भी अपनी ओर से की गयी.

अब एक लाइन में इस मामले की सच्चाई- मेरे पति ने तीनों साल का अपना प्रॉपर्टी रिटर्न डीजीपी ऑफिस, जहां उन्हें अपना रिटर्न देना होता है, को 11/01/2013 , 27/01/2014 और 19/01/2015 को भेज दिया है. अब यदि डीजीपी ऑफिस से यह रिटर्न भारत सरकार नहीं पहुंचा है, इसके लिए मेरे पति तो कत्तई जिम्मेदार नहीं माने जा सकते.

कुछ और बातें. मैंने और मेरे पति ने एक बार भी अपने आप को विशिष्ट या खास या दूध का धुला नहीं कहा है. हमारा मात्र यह कहना रहता है कि यदि हम गलत हैं, हम पर कार्यवाही हो, यदि कोई और तो उस पर. हम उतने ही अच्छे या बुरे हैं जितना एक आम आदमी, हाँ यह जरुर है कि हम अच्छा बनने और अच्छे काम करने का प्रयास अवश्य कर रहे हैं.

अंतिम बात, मेरे पति के सिर्फ एक अपने भाई हैं, जो आईएएस अफसर हैं. कानपुर में उनका कोई भाई नहीं है. अतः मुझे श्री श्रीवास्तव, जो संभवतः अधिवक्ता हैं और इस तरह सुनी-सुनाई बात को हकीकत बता देते हैं, और उनकी बात सुन कर विश्वास कर लेने वालों से यही कहना है कि यह उदाहरण बताता है कि हमारे यहाँ कई लोग कैसे बिना आग के भी धुंआ पैदा करने में एक्सपर्ट हैं, जो एक बार भी नहीं सोचते कि वे कह क्या रहे हैं और इतने विश्वास के साथ गलत बात भी सही बता कर बेच देते हैं कि आदमी उसे सच मानने को बाध्य हो जाता है.

मैंने ये बातें इसीलिए लिखीं क्योंकि मैं जानती हूँ कि कई बार झूठ बार-बार बोले जाने पर सच माना जाने लगता है. साथ ही सामाजिक कार्यकर्ताओं से यह विनम्र आग्रह करने के लिए भी कि वे शिकायत सबों की करें, खूब करें पर इनमे व्यक्तिगत टिप्पणी और दुराग्रह से बचें. यदि आपके बातों में सत्यता और धार होगी तो उसके लिए तल्ख़ टिप्पणियों के बेजा इस्तेमाल की जरुरत नहीं होगी. अन्यथा वे व्यक्तिगत टिप्पणियाँ अर्थहीन हो जायेंगी और समस्त कार्यकर्ताओं के प्रति प्रतिकूल मंतव्य बनाने का काम करेंगी.

डॉ नूतन ठाकुर
पत्रकार, वकील और आरटीआई एक्टिविस्ट
लखनऊ

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