पहले दुत्कारते थे स्ट्रिंगर्स को, पहली बार एबीपी ने दिया भरपूर सम्मान
लखनऊ। जिलों में बनाये गये प्रतिनिधियों को बाकायदा किसी पायदान-पोंछ यानी डोरमैट की तरह समझते थे राज्य मुख्यागलय और चैनल मुख्यालय पर जमे वरिष्ठ पत्रकार, उन्हें अब एबीपी न्यूज चैनल ने बाकायदा सम्मान दिलाने की कवायद छेड़ दी गयी है। इस कोशिश के तहत अब इन स्ट्रिंगर्स की किस्मत चमकने के दिन आ गये हैं। चैनल ने तय किया है कि जिलों में तैनात स्ट्रिंगर-रिपोर्टर अब बाकायदा चैनल में कैमरे के सामने दिखाये जाएंगे। इतना ही नहीं, उन्हें चैनल पर इंटरव्यू वगैरह लेने की भी आजादी दी जाएगी, और ऐसे कार्यक्रमों को एबीपी चैनल आन-एयर भी करेगा।
कहने-बोलने को चाहे कुछ भी कहे, लेकिन किसी भी समाचार संस्थान में जिला प्रतिनिधियों की हालत बेहद दारूण होती है। खासकर न्यूज चैनलों में तो स्ट्रिंगर्स के तौर पर दिन-रात खटने वाले प्रतिनिधिेंयों से काम तो बेहिसाब कराया जाता है, लेकिन न उन्हें चैनल में सम्मान दिया जाता है, और न ही उनके पारिश्रमिक का समुचित भुगतान ही समय से मिल पाता है।
पारिश्रमिक का भुगतान तो दूर की बात, ठेके पर चल रहे कई चैनलों के ब्यूरो चीफ तो माहवारी इन स्ट्रिंगर्स से वसूलते भी हैं। नेताओं व व्यवसाइयों से नियमित विज्ञापन वसूलना तो ऐसे चैनलों के स्ट्रिंगर्स की रोजमर्रा में शामिल होता है। इतना सब कुछ करने के बावजूद इन स्ट्रिंगर्स को सम्मान नहीं दिया जाता। बात-बात पर चैनल से हटा दिये जाने की धमकी तो ऐसे चैनलों में खूब होती हैं। इतना ही नहीं, कई चैनलों में यह घिनौनी प्रथा चल रही है कि जब भी मुख्यालय में आना, तो अपने जिले से कुछ न कुछ खास चीज लेते आना। फोन पर तमीज से बातचीत करने की तमीज तक नहीं रखते हैं ऐसे चैनलों के बड़े पत्रकार।
उधर कुछ बड़े चैनलों में स्ट्रिंगर्स का चेहरा तब दिखाया जाता है, जब कोई बड़ी आपराधिक घटना हो जाती है। लेकिन राजनीति से जुड़े किसी भी मामले में स्ट्रिंगर्स में कोई स्ट्रिंगर्स को अहमियत नहीं दी जाती है। लेकिन एबीपी न्यूज चैनल ने इस परम्परा को तोड़ दिया है। खबर है कि चुनाव और राजनीति के मसलों पर अब यह स्ट्रिंगर्स भी साक्षात्कार ले सकेंगे। मैनपुरी, बरेली, भदोही, गोरखपुर, मिर्जापुर, अमेठी, बिजनौर, मथुरा, मेरठ, इटावा, औरया और झांसी आदि अनेक जिलों में यह प्रयोग सफलता से चल रहा है। बस इस बात का ध्यान रखा जा रहा है कि यह दायित्व केवल उन्हीं रिपोर्टर पर दिया जो केवल एबीपी के लिए ही काम करते हों।
दरअसल, महुआ न्यू्ज चैनल में राज्य ब्यूरो प्रमुख पद पर कार्यकाल के दौरान अपने सम्पादक अंशुमान त्रिपाठी के साथ मिल कर मैंने यह प्रयोग किया था। उसके बाद यह परम्परा लुप्त हो गयी। लेकिन अब एबीपी न्यूज चैनल ने इस प्रयोग को फिर प्रारम्भ कर दिया है। इस बारे में एबीपी न्यूज के राज्य ब्यूरो प्रमुख पंकज झा ने बताया कि अपने सहकर्मियों के साथ अधिक से अधिक समझदारी, आपसी तादात्य और परस्पर विश्वास उत्पन्न कर चैनल को वैचारिक तोर पर अधिक समृद्ध करने में यह प्रयोग लाभकारी होंगे।
(पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम)