राजदीप सरदेसाई को ‘रसगुल्ला पत्रकारिता’ का मिला इनाम, TMC ने बीवी को बनाया राज्यसभा सांसद: बंगाल हिंसा पर नहीं पूछा था सवाल

ये वही सागरिका घोष हैं, जिन्होंने बेहद सुविधाजनक तरीके से ग्रूमिंग जिहाद के ज़रिए होने वाले जबरन धर्मांतरण के ख़तरे को, हिन्दू परिवारों और मुस्लिम दामादों के बीच बतौर ‘मानसिक उन्माद’ तोड़-मरोड़ कर रख दिया था

राजदीप सरदेसाई, सागरिका घोषराजदीप सरदेसाई की पत्नी सागरिका घोष को पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी TMC (तृणमूल कॉन्ग्रेस) ने राज्यसभा भेजा है। सागरिका घोष के अलावा ममता बाला ठाकुर और नदीमुल हक़ को भी राज्यसभा भेजे जाने की घोषणा की गई है। वहीं सुष्मिता देव को भी दोबारा राज्यसभा भेजा जाएगा। वो 2021 में TMC में शामिल हुई थीं और उसी साल उन्हें राज्यसभा भेजा गया था। कुछ दिन पहले ही उनका कार्यकाल खत्म हुआ था। नदीमुल हक़ भी पहले से तृणमूल से ही राज्यसभा सांसद हैं।

ममता ठाकुर को मतुआ समुदाय ‘माँ’ के रूप में मानता है। वो 2019 में बनगाँव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुकी हैं, लेकिन भाजपा के शांतनु ठाकुर ने उन्हें शिकस्त दे दी थी। जहाँ तक बात सागरिका घोष की है, वो पत्रकार हैं और उनके पति राजदीप सरदेसाई भी पत्रकार हैं। राजदीप सरदेसाई को अक्सर सोशल मीडिया और ‘इंडिया टुडे’ न्यूज़ चैनल के माध्यम से भाजपा व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध प्रोपेगंडा के लिए जाना जाता है। दोनों पति-पत्नी इस मामले में समान राय रखते हैं।

राजदीप सरदेसाई को ‘रसगुल्ला पत्रकारिता’ के लिए भी जाना जाता है, जिसका इनाम शायद उन्हें पत्नी की राज्यसभा सांसदी के रूप में मिला है। राजदीप ने एक प्रश्न के उत्तर में स्वीकार किया था कि अगर वे ममता बनर्जी से उनके राज्य में हो रही हिंसा पर कठिन प्रश्न पूछते तो उन्हें रसगुल्ले नहीं मिलते। पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा को लेकर राजदीप सरदेसाई ने सीएम ममता बनर्जी से कोई सवाल नहीं पूछा था, क्योंकि वो ‘चाय पर चर्चा’ के लिए गए थे और सवाल पूछने पर उन्हें रसगुल्ले नहीं मिलते।

ये वही सागरिका घोष हैं, जिन्होंने बेहद सुविधाजनक तरीके से ग्रूमिंग जिहाद के ज़रिए होने वाले जबरन धर्मांतरण के ख़तरे को, हिन्दू परिवारों और मुस्लिम दामादों के बीच बतौर ‘मानसिक उन्माद’ तोड़-मरोड़ कर रख दिया था। सागारिका घोष जघन्य अपराध के पीड़ितों को चुप कराते हुए पीड़ित को ही दोष देने लगी थीं। उनका मानना था कि उन महिलाओं की आपबीती जिन्हें इस तरह के भयावह हालातों का सामना करना पड़ता है, यह ‘मुस्लिम दामादों’ के प्रति मानसिक उन्माद का नतीजा है।

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