जिन चैनलों को कोसते थे वहीं पहुंचे नेटवर्क 18 के छंटनी शुदा

अब दैनिक भास्कर में छंटनी का दौर शुरु. 1 सितंबर से शायद बंद हो जाए दिल्ली संस्करण. दर्जनों पत्रकार फिर से दूसरे अखबारों और संस्थानों में जाकर वहां काम कर रहे लोगों के लिए संकट पैदा करेंगे. मैंने अबकी बार सड़क पर आ जाएंगे शब्द का प्रयोग नहीं किया क्योंकि नेटवर्क-18 मामले में हमने देखा कि अधिकांश सीएनएन-आइबीएन,आइबीएन-7 से छंटकर उन चैनलों में फिट हो गए जिसे नेटवर्क 18 की अटारी पर चढ़कर कमतर बताकर कोसते रहे.
दैनिक भास्कर से छांटे गए लोग संभवतः इसी तरह अपने से कमतर के संस्थान में जाएं और वहां काम कर रहे लोगों के लिए संकट बनें. मीडिया में आमतौर पर होता ये है कि संस्थान का ठप्पा कई बार इस तरह काम करता है कि नक्कारा और अयोग्य भी अगर नामी संस्थान से घुसकर निकलता है तो सी ग्रेड,डी ग्रेड के संस्थान उस नामी संस्थान को भुनाने के लिए उन नक्कारों को रखकर ढोल पीटते हैं- देखो जी, हमारे यहां लोग आइबीएन 7 छोड़कर आ रहे हैं, स्टार छोड़कर आए हैं. एनडीटीवी इंडिया से निकाले गए उदय चंद्रा को लेकर लाइव इंडिया में इसी तरह के ढोल पीटे जाते थे जबकि हम हैरान हुआ करते कि इसे एनडीटीवी इंडिया ने काम कैसे दे दिया था ? वो शख्स भी अजीब नमूने की तरह पेश आता. लैप्पी को ऐसे चमकाता जैसे मिसाइल लिए घूम रहा हो, कभी कायदे से इस पर काम करते नहीं देखा..बाद में उसके चिरकुट और प्रोमैनेजमेंट रवैये से फोकस टीवी में अपने ही सहकर्मियों के हाथों कुटाई भी हुई थी. खैर, ऐसे छंटनी के शिकार पत्रकार समझौते और कम पैसे में भी काम करने के लिए कमतर संस्थानों में तैयार हो जाते हैं.
एबीपी न्यूज के सीओओ अविनाश पांडे जैसे लोगों की कमी नहीं है जो ये मानते हैं कि ये सब छंटनी-वंटनी लगी रहती है. इसी में लोगों को नौकरी भी मिल जाती है..लेकिन सरजी, हमें तो सिर्फ छंटनी ही दिख रही है, कहीं मिल रही हो तो बताइए..हमारे मीडिया साथी का हौसला बढ़ेगा.

Vineet Kumar के फेसबुक वाल से

Loading...
loading...

Related Articles

Back to top button