वर्तमान में लखनऊ के एक सोकाल्ड ईमानदार पत्रकार और हरदोई में तैनात रहे तत्कालीन आई.ए.एस. अधिकारी भुवनेश कुमार का बर्तन खरीद घोटाला

केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री के हस्तक्षेप से मामले की खुफिया जांच भी करवाई गयी थी, लेकिन जांच रिपोर्ट सतर्कता विभाग में कहीं धूल खा रही है और बारह साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी सभी जालसाज मजे कर रहे हैं

उत्तर प्रदेश सचिव (व्यावसायिक शिक्षा एवं कौशल विकास)

सैकड़ों का बर्तन हजारों में खरीद डकार गये करोड़ों

बात सन 2004 की है। उस समय भी सूबे में सपा की सरकार थी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। हरदोई जनपद में केन्द्र सरकार द्वारा लागू की गयी मिड-डे मील योजना के लिए प्राथमिक विद्यालयों द्वारा बर्तन खरीदे गये थे जिसमें सरकारी अधिकारियों ने अपने चहेते बिचौलियों के माध्यम से करोड़ों के वारे न्यारे किये थे। इस घोटाले की अखबारों में खूब चर्चा भी हुई थी।

केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री के हस्तक्षेप से मामले की खुफिया जांच भी करवाई गयी थी, लेकिन जांच रिपोर्ट सतर्कता विभाग में कहीं धूल खा रही है और बारह साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी सभी जालसाज मजे कर रहे हैं। उस समय हरदोई में तैनात रहे आई.ए.एस. अधिकारी भुवनेश कुमार, जिनकी नाक के नीचे इस घोटाले को अंजाम दिया गया और जो शिकायतों के बावजूद आंखें मूंदे रहे, फिलवक्त उत्तर प्रदेश में सचिव (व्यावसायिक शिक्षा एवं कौशल विकास) के पद पर कार्यरत हैं। इस बर्तन घोटाले की कहानी बेहद दिलचस्प है।

मिड-डे-मील योजना के अन्तर्गत प्राथमिक विद्यालयों के छात्रों को पका हुआ भोजन देने के लिए प्राथमिक विद्यालयों को बर्तन खरीदने थे। बर्तनों में भगोना, बाल्टी, लोटा, दो चम्मच, एक बड़ा थाल, डस्टबिन आदि खरीदे जाने थे। इसके लिए राशि ग्राम शिक्षा निधि के खातों में भेज दी गयी और फिर खेल शुरू हो गया। जिले व शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने प्राथमिक विद्यालयों के सभी प्रधानाचार्यों को मौखिक आदेश दिया कि वे बर्तन आदि केवल संयुक्त समिति पंचायत उद्योग शाहाबाद (हरदोई) से ही खरीदें।

प्रधानाचार्यों को ताकीद की गयी कि वे दो हजार रुपये में बर्तन उसी फर्म से खरीदें। दूसरी जगह से की गयी खरीद मान्य न होगी और बिल पास नहीं किया जायेगा। इस आदेश के चलते सभी नियमों को ताक पर रख दिया गया। खरीद के लिए कोई कोटेशन नहीं मांगे गये। यही नहीं बिलों का भुगतान चेक से न करके नकद किया गया। चूंकि आदेश ऊपर से था इसलिए प्रधानाचार्यों ने मुह सिल लिया और उक्त फर्म से करीब दो हजार रुपये के नकद भुगतान पर वे बर्तन खरीद लिए जिनका बाजार मूल्य सात-आठ सौ रुपये से अधिक नहीं हो सकता था।

मसलन स्टील का जो लोटा बाजार में 18 रुपये में मिल सकता था वह इस फर्म से एक सौ रुपये में खरीदा गया। संयुक्त समिति पंचायत उद्योग शाहाबाद से लगभग साढ़े चार करोड़ रुपये के बर्तन इस प्रकार खरीदे गये और जिला प्रशासन, शिक्षा विभाग के अफसर और उनका चहेता बिचौलिया मालामाल हो गये। यह सारा मामला न केवल अखबारों में छपा बल्कि तत्कालीन जिलाधिकारी भुवनेश कुमार से इसकी शिकायत भी की गयी, परन्तु उन्होंने आंखे मंूदे ही रखीं, क्योंकि यहां मसला अपने प्रिय पात्र को लाभ पहुंचाने का था।

बताया जाता है कि भुवनेश कुमार का यह प्रिय पात्र बदायूं की एक महिला का पति है। यह महिला भुवनेश कुमार की सहपाठी भी रह चुकी है। भुवनेश कुमार की पहली तैनाती बदायूं में मुख्य विकास अधिकारी के रूप में हुई थी। वह जब जिलाधिकारी बनकर हरदोई आये तो आपनी सहपाठी महिला मित्र के पति को हरदोई बुला लिया। उसे जनपद के एक छुटभैया नेता की सरपरस्ती में देकर काम पर लगा दिया। बर्तन खरीद घोटाले में इस प्रिय पात्र की प्रमुख भूमिका रही बतायी जाती है। इस घोटाले से कौन मालामाल हुआ, यह समझना मुश्किल नहीं है।

बहरहाल जब यह प्रकरण अखबारों में आने लगा तो भुवनेश कुमार का वह प्रिय पात्र हरदोई से भाग खड़ा हुआ और लखनऊ आकर पत्रकार बन गया। लखनऊ में भी भुवनेश कुमार और इस पत्रकार की जोड़ी ने मिलकर किसी न किसी माध्यम से जमकर सरकारी पैसे का बन्दर बाट करते रहे हैं और ये सिलसिला अब भी अनवरत जारी है।  

इस सारे मामले में एक चौंकाने वाला मोड़ तब आया जब संयुक्त समिति पंचायत उद्योग शाहाबाद के अध्यक्ष सत्य नारायण मिश्र ‘मधुप’ ने जिलाधिकारी, हरदोई को पत्र लिखकर यह सूचित किया कि उनकी फर्म ने किसी स्कूल को कोई बर्तन बेंचा ही नहीं। उन्होंने पत्र में साफ-साफ लिखा कि यह धोखाधड़ी का मामला है। मेरी संस्था को न तो ऐसा कोई खरीद आदेश प्राप्त हुआ है और न ही फर्म द्वारा किसी को कोई आपूर्ति की गयी है। मेरी संस्था के नाम से जो बिल व बाउचर लगाये गये हैं, वे फर्जी हैं। उन्होंने जिलाधिकारी से सारे प्रकरण की जांच करवाकर दोषियों को दंडित करने की मांग भी की थी। उन्होंने पत्र की प्रतिलिपियां सचिव, बेसिक शिक्षा, उ.प्र. तथा परियोजना प्रबंधक, मिड-डे मील को भी प्रेषित कीं, लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। जिलाधिकारी व शिक्षा विभाग के अधिकारी शिकायत को पचा गये। सारा प्रकरण तत्कालीन मुख्यमंत्री के संज्ञान में भी लाया गया। मुख्यमंत्री ने शिकायत डी.जी.पी. को आवश्यक कार्रवाई के लिए अग्रसारित कर दी, परन्तु हुआ कुछ नहीं।

सूबे के अधिकारियों के स्तर पर कोई कार्रवाई न होने पर मामले की शिकायत उ.प्र. कांग्रेस कमेटी के सदस्य व तत्कालीन अध्यक्ष, शहर कांग्रेस कमेटी, हरदोई अजय सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्वर्गीय अर्जुन सिंह से की। उन्होंने अपने पत्र के साथ पंचायत उद्योग शाहाबाद के अध्यक्ष द्वारा जिलाधिकारी, हरदोई को लिखे गये पत्र और फर्जी कैशमीमो की प्रतिलिपियां भी नत्थी कीं। स्वर्गीय अर्जुन सिंह ने मामले की सीआइडी जांच के लिए लिखा। विजिलेंस टीम ने जांच में काफी समय और श्रम लगाकर घोटाले की विस्तृत रिपोर्ट तैयार की और उसे शासन को सौंप दिया। रिपोर्ट में बरती गयी अनियमितताओं और पूरे घोटाले का पर्दाफाश किया गया है। साथ ही तत्कालीन जिलाधिकारी भुवनेश कुमार, अपर जिलाधिकारी (वित्त) एवं राजस्व लेखाधिकारी चन्द्रभूषण सिंह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाने की संस्तुति भी की गई है। जांच रिपोर्ट आयी तब तक सूबे में सरकार बदल चुकी थी और मायावती ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल ली थी। बहरहाल, कार्रवाई के नाम पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है। ताजा जानकारी के मुताबिक पत्रावली सतर्कता विभाग में ही दबी पड़ी है। बताया जाता है कि इस रिपोर्ट में तत्कालीन जिलाधिकारी, हरदोई भुवनेश कुमार की संलिप्तता बतायी गयी है।

सरकारी धन के दुरुपयोग और बरती गयी तमाम अनियमितताओं की सीधी जिम्मेवारी यद्यपि बेसिक शिक्षा अधिकारी के स्तर पर ही आकर ठहरती है, लेकिन उनके कार्यालय में कोई इस मामले में मुंह खोलने को तैयार नहीं है। करोड़ों की रकम डकार जाने के बावजूद सभी दोषी फिलहाल चैन की बंसी बजा रहे हैं।

(इनपुट: समाचार पत्र-पत्रिकाएं)

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