देश की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी PTI के संपादक ने संसद का पास बनवाने के लिए दी झूठी जानकारी

देश की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) के एडिटर इन चीफ विजय जोशी विवादों में हैं। उनपर आरोप है कि उन्होंने संसद भवन का परमानेंट पास बनवाने के लिए अपनी झूठा हलफनामा दिया और संसद भवन में काम करने वाले कर्मचारियों ने भी बिना उसकी जांच किए ही विजय जोशी के नाम से परमानेंट पास जारी कर दिया। आपको बता दें कि संसद भवन के परमानेंट (आरएफ टैग के साथ मीडिया पास) के लिए कमसे कम 10 सत्र को टेंपररी पास के कवर करना होता है। उसके बाद ही किसी शख्स के नाम से परमानेंट पास जारी किया जा सकता है।

नियमों की माने तो कोई पत्रकार आरएफ टैग वाला परमानेंट मीडिया पास तभी हासिल कर सकता है यदि उसने या तो लोकसभा या राज्यसभा को कम से कम 10 सत्रों के लिए अस्थायी पास के साथ कवर किया हो। लेकिन पीटीआई के एडिटर इन चीफ विजय जोशी के मामले में इन नियमों को ताक पर रख दिया गया। बताया जा रहा है कि विजय दोशी ने 10 सत्र लगातार कवर करने का दावा भी किया है।

लोकसभा के प्रेस खंड द्वारा तैयार किए गए एक नोट में कहा गया है कि विजय जोशी ने दावा किया है कि उन्होंने संसद को कवर किया है। सवाल ये उठता है कि अगर विजय जोशी ने झूठा दावा किया तो उसे संसद भवन के कर्मचारियों ने चेक क्यों नहीं किया। आम तौर पर हर पत्रकार और उनके संगठन को संसद के कवरेज के अनुभव के लिए सबूत देना पड़ता है, जिसे लोकसभा और राज्य सभा की मीडिया गैलरी के प्रवेश में रखा उपस्थिति रजिस्टर के साथ चेक किया जा सकता है।

जानकारों की मानें तो विजय जोशी के रिज्यूम के साथ-साथ उनके पत्रकारिता करियर के ग्राफ को देखकर साफ पता चलता है कि उन्होंने कवी संसद भवन को कवर ही नहीं किया है। 1986 में जोशी ने ट्रेनी के तौर पर पीटीआई के साथ अपना करियर शुरू किया था। पीटीआई में काम करने दौरान उनके साथ काम करने वाले साथी बताते हैं की उस वक्त सत्र कवर करने की बात तो दूर उन्होंने संसद परिसर में पैर भी नहीं रखा था। 1989 में जोशी ने पीटीआई को अलविदा कह दिया और वो एसोसिएटेड प्रेस के साथ जुड़ गए जहां उन्हें सिंगापुर भेज दिया गया। अब सिंगापुर से भारतीय संसद सत्र को तो कोई कवर कर नहीं सकता। फरवरी 2017  में जोशी भारत वापस लौटे और पीटीआई के हेड बन गए।

यहां सवाल यह है कि संसद के अधिकारियों ने जानबूझकर विजय जोशी के झूठे अनुभव के दावे को नजरअंदाज कर दिया। कानून के मुताबिक सरकारी दस्तावेजों में झूठी सूचना देना एक अपराध है और जब मामला संसद भवन से जुड़ा हो तो ये अपराध और भी बड़ा हो जाता है। ऐसे में सवाल ये हैं कि क्या विजय जोशी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाएगा। हालांकि इस मुद्दे पर विजय जोशी का पक्ष जानने के लिए हमने उनसे भी संपर्क करने की कोशिश की लेकिन संपर्क हो नहीं पाया।

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