कलमकारों को दिए गए प्रशस्ति पत्र पर होहल्ला क्यों ?

डॉ . मोहम्मद कामरान 
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर चौथे स्तंभ की विश्वसनीयता व निष्पक्षता बनाए रखने हेतु जब श्यामल त्रिपाठी ने हमारे गरीब खाने आकर हमारा सम्मान किया तो यह अत्यंत हर्ष का विषय था, ना सिर्फ मेरे लिए बल्कि हर उस पत्रकार के लिए जो विगत कई वर्षों से इस क्षेत्र में कार्यरत है और खासतौर से उसके लिए जो कानपुर शहर से ताल्लुक रखता हूं क्योंकि हिंदी पत्रकारिता का जनक हमारा यही शहर कानपुर है।
लेकिन बड़े अफसोस की बात है कुछ महानुभवों को कोरोना योद्धा जैसे सम्मान और प्रशस्ति पत्र तो लुभावने और आकर्षक लग रहे थे लेकिन हिंदी पत्रकारिता दिवस पर श्यामल त्रिपाठी द्वारा कलमकारों को दिए गए प्रशस्ति पत्र उन्हें नागवार गुज़र रहे थे। मुमकिन है कई बड़का टाइप के लोगों का नाम श्यामल त्रिपाठी की सूची में नही था लेकिन ऐसा लगता था कि उनका कद इस तरह के सम्मान से बहुत ऊपर है और अगर हमारे जैसे दो चार फट्टर पत्रकार हिंदी पत्रकारिता दिवस के मौके पर सम्मानित कर दिए जाएंगे तो ऐसे बड़का लोगों को भी प्रसन्नता होगी लेकिन दिलों का दर्द भड़ास, अम्फान, निसर्ग से बड़ा सैलाब बन कर व्हाट्सएप ग्रुप पर नज़र आने लगा ,, और सम्मान पाने वालों पर नहीं बल्कि इस प्रशस्ति पत्र को देने वाले पर ही उंगली उठने लगी, बड़ा बैनर, बड़ा अखबार, बड़ा संगठन, नामचीन संगठन ना होने का आरोप प्रत्यारोप लगने लगा, बड़े अफसोस की बात है हिंदी पत्रकारिता दिवस पर यदि किसी व्यक्ति या किसी संगठन या किसी समिति द्वारा आपकी दहलीज़ पर आकर आपको सम्मानित करने का दुःसाहस किया गया तो मठाधीश टाइप के लोग इतनी उंगलियां करके आपको मजबूर कर देंगे कि आप सम्मान के लिए मना कर दे या भविष्य में कोई व्यक्ति विशेष या संगठन किसी को प्रशस्ति पत्र देने की सोचे तो इनके भी नाम का स्मरण ज़रूर करे वरना भसड़ मचाने में कोई कमी नही रहेगी ।।
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर जो विश्वास और जो सम्मान मेरे प्रति आपने व्यक्त किया है उसका हृदय से आभार और द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की कविता का एक संदेश आपके लिए ।।
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
Loading...
loading...

Related Articles

Back to top button