जल्द हटाए जा सकते हैं प्रधान संपादक डा. सुभाष राय

jansandeshजनसंदेश टाइम्स की स्थिति दिनोदिन बिगड़ती जा रही है। गोरखपुर एडिशन को समेट कर ब्यूरो बना दिया गया, उसके कुछ महीनों बाद इलाहाबाद एडिशन के साथ भी यही हुआ। सूत्रों की मानें तो बनारस एडिशन भी सिर्फ फाइल कापी छापी जा रही है। लखनऊ कार्यालय में मालिकान और जनसंदेश के बड़े अधिकारियों की रोज मीटिंग हो रही है और ऐसा माना जा रहा है कि जल्द ही लखनऊ संस्करण को लेकर भी कोई बड़ा फैसला लिया जा सकता है। मसलन लोगों की संख्या घटाना, प्रधान संपादक को चलता करना आदि। जबसे लोकसभा चुनाव में अखबार के तथाकथित मालिक बाबूृ सिंह कुशवाहा की पत्नी श्रीमती शिव कन्या कुशवाहा हारी हैं और कुशवाहा की संपत्तियों पर ईडी का जो शिकंजा कसता जा रहा है उसको लेकर ऐसा माना जा रहा है कि जेल में बंद बाबू सिंह कुशवाहा ने जनसंदेश की फंडिंग को पूर्णतया रोक दिया है। उधर कुशवाहा ने फंडिंग रोकी है इधर संस्थान के मैनेजमेंट में बैठे लोग जल्दी से जल्दी सिर्फ अपनी जेब भरने में लगे हुए हैं ताकि संस्थान बंद होने के पहले वह अपनी तिजोरी भर सकें। एक तरफ संस्थान में सैलरी को लेकर घमासान मचा हुआ है तो दूसरी तरफ जनसंदेश के एक के बाद एक एडिशन ब्यूरो में तब्दील होते जा रहे हैं। भड़ास फॉर जर्नलिस्ट ने बहुत पहले ही यह लिख दिया था कि चुनाव के बाद या तो संस्थान बंद हो जाएगा या फिर उसके सारे एडिशन फाइल कापी के स्तर पर आ जाएंगे। भड़ास फॉर जर्नलिस्ट की यह खबर सत्य होती दिखाई दे रही है। एक तरफ जहां सुभाष राय को हटाने की बात चल रही है वहीं यह भी तय करने में संस्था लगा है कि और कितने लोगों को संस्थान से बाहर निकाला जाये। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार गत्ï दिनों लखनऊ एडिशन में बैठने वाले डा. सुभाष राय ने अपने करीबी और प्रिय कर्मचारियों को अपने पास बुलाकर यह कहा कि अब आप लोग खबरों को लेकर जो भी वार्ता है वह देशपाल सिंह पवार सें करें। डा. सुभाष राय का ऐसा कहना यह बता रहा है कि संस्थान से उनका पत्ता जल्द ही कटने वाला है। जो भी हो संस्थान में भूचाल आया हुआ है, कर्मचारी जहां सैलरी को लेकर परेशान थे वहीं छटनी की बात से भयभीत भी हैं। जनसंदेश टाइम्स के जीएम से फोन पर जब इस मुद्दे पर बात करना चाहा तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया इतना ही नहीं दूसरे दिन एक कर्मचारी की शिकायत पर जब भड़ास फॉर जर्नलिस्ट के संपादक ने विनीत मौर्या से कर्मचारियों के पीएफ के पैसे के बारे में बात करना चाहा तो उन्होंने बस इतना ही जवाब दिया कि पीएफ विभाग से उनके ऊपर लाइबिलिटी भेजी है जिसके संदर्भ में जून के आखिर तक कार्रवाई करते हुए सारा पैसा पीएफ खाते में जमा कर दिया जाएगा। पता नहीं मौर्या की बातों में कितनी सच्चाई है लेकिन संस्थान के कर्मचारियों ने बाहर यह बात खुलेआम कहना शुरू कर दिया है कि जब से संस्थान की बागडोर इन मौर्या बंधुओं के हाथ में दी गई है तबसे संस्थान का पतन बहुत तेजी से हुआ है क्योंकि इन मौर्या बंधुओं ने संस्थान को हर तरफ से सिर्फ लूटने का काम किया है। एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मौर्या बंधुओं ने आपस में मीटिंग करके यह खुद तय कर लिया कि संस्थान के अब ज्यादा दिन नहीं रह गए हैं इसलिए जहां से भी जितना भी हो सके अपनी तिजोरी भरो और संस्थान को भाड़ में भेजो।

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