एसपी सिंह के साथ काम करके ही मेरी बुनियाद मजबूत हुई: सुप्रिय प्रसाद
उन खुशनसीब पत्रकारों में मेरा नाम भी शामिल है, जिन्हें एसपी के साथ काम करने का मौका मिला...
सुप्रिय प्रसाद
न्यूज डायरेक्टर, ‘आजतक’, ‘इंडिया टुडे’ व ‘गुड न्यूज टुडे’ ।।
उन खुशनसीब पत्रकारों में मेरा नाम भी शामिल है, जिन्हें एसपी के साथ काम करने का मौका मिला। एसपी ने 1 जुलाई 1995 को ‘आजतक’ जॉइन किया था। लेकिन मैं उनसे ठीक बीस दिन पहले यानी 10 जून को ही ‘आजतक’ आ गया था। जॉइन करने के बाद एसपी ने कायदे से एंकरिंग का अभ्यास किया था। 17 जुलाई 1995 को दिल्ली दूरदर्शन पर 20 मिनट के न्यूज शो के रूप में ‘आजतक’ शुरू हुआ था। एसपी के साथ काम करने का तजुर्बा अपने आप में अनोखा था। खबरों के प्रति उनकी दीवानगी को देख हम लोग हैरान थे। वे रोज कई क्षेत्रीय अखबारों समेत 40 से 50 अखबार पढ़ते थे। कई बार तो खुद कई ब्यूरो चीफ को फोन कर बताते थे कि उनके शहर या इलाके में कौन सी खबर है और उसे कैसे कवर करना है।
‘आजतक’ में तब मुझे तीन महीने के कॉन्ट्रैक्ट पर ट्रेनी रिपोर्टर के रूप में काम करने का मौका मिला था। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तब तकनीकी रूप से इतना समृद्ध भी नहीं था। मेरा कॉन्ट्रैक्ट 10 सितंबर को पूरा होने वाला था, उससे पहले ही मैं एसपी के पास पहुंच गया और पूछ बैठा कि सर तीन महीने पूरे होने वाले हैं अब बता दीजिए कि 10 सितंबर के बाद आना है या नहीं। एसपी हंस पड़े और बोले कि आपके काम से मैं बहुत खुश हूं और आप मेरे साथ काम कर रहे हैं। तभी मुझे असिस्टेंट न्यूज को-ऑर्डिनेटर का पद दिया गया।
एसपी के साथ काम करने में सबसे बड़ी सुविधा थी उनकी सहज उपलब्धता। उनसे हर कोई सहज ही मिल सकता था और कुछ भी पूछ सकता था। खेल हो या बिजनेस, राजनीति हो या चुनाव, हर विषय पर उनकी पकड़ अद्भुत थी। ‘आजतक’ के शुरुआती दौर में एसपी हर खबर की एक-एक लाइन पढ़ते थे और फिर उस पर अपनी राय देते थे। खबरों को लेकर उनसे सीधा जुड़ाव होने के कारण ही मुझे उनसे इंटरैक्शन का पूरा मौका भी मिला।
शो की शूटिंग के दौरान कई मजेदार घटनाएं भी घटती रहती थीं। मुझे याद है एक ऐसी ही मजेदार घटना तब घटी थी जब लालू प्रसाद यादव गेस्ट के रूप में स्टूडियो आए थे। लालू यादव उस समय बिहार के मुख्यमंत्री थे। स्टूडियो में लालू यादव और एसपी के बीच सवाल-जवाब का दौर शुरू हो गया। इंटरव्यू रिकॉर्ड हो रहा था। उस समय किसी का भी इंटरव्यू चार मिनट से ज्यादा नहीं जा सकता था, क्योंकि शो ही 20 मिनट का था। अब लालू ने पहले सवाल के जवाब में बोलना शुरू किया तो बोलते ही चले जा रहे थे। दूसरा सवाल पूछने के लिए एसपी उन्हें रुकने का इशारा करने लगे, लेकिन लालू उस समय कहां किसी का इशारा समझते थे। इधर जब एसपी ने देखा कि लालू को इशारा करना समय गंवाना है तो अंत में उन्होंने लालू के पैर पर ही अपना पैर जोर से मार दिया। तब जाकर लालू के बोलने पर ब्रेक लगा।
एसपी सिंह अपने आप में पत्रकारिता के विश्वविद्यालय थे। खबरों को लेकर उनका जुनून था तो विजन भी था। जो भी उनके साथ रहा, बहुत कुछ सीख गया। एसपी के साथ काम करके ही मेरी बुनियाद मजबूत हो पाई, जिस पर आज मैं खड़ा हूं।