क्या यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों का खात्मा जरूरी है?

शहर के अनेक होटलों में होने वाले अनैतिक कृत्यों, अनेक थाना क्षेत्रों में होने वाले सट्टा-जुआ, नियत किये गये समय से पहले और बाद में शराब ठेकों पर होने वाली शराब की बिक्री व उनके पास चलने वाली अवैध कैण्टीनों के नजारे, अधिकतर, यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों के कैमरे ही कैद कर पाते हैं। इसके बाद सौदेबाजी भी शुरू होती है। लेकिन, ‘‘वसूलीबाजों की संज्ञा पा चुके यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों की ‘मंशा’ ना पूरी होने पर, देखते ही देखते ये नजारे सोशल/डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारित होते देखे जा सकते हैं। जिसके चलते स्थानीय स्तर पर ‘नजराना’ लेने वालों के लिये सिरदर्द बन जाते हैं।’’

इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता है कि मुख्यधारा के रूप में माने जाने वाले मीडिया संस्थानों में कार्य करने वाले ‘कठपुतली पत्रकारों’ को मैनेज करना आसान होता है किन्तु यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों को मैनेज करने का तात्पर्य है, ‘मेढकों को तराजू पर तोलना’। इसके कतई दो राय नहीं कि यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों की यह ‘जमात’ उन सफेदपोशों के लिये एक जटिल समस्या का रूप ले चुकी है, ‘‘जो रसूखदारों में गिने जाने के साथ-साथ, ईमानदारी का चोला पहने रहते हैं।

श्याम सिंह ‘पंवार’

(लेखकः लघु श्रेणी का पत्रकार है।)

कानपुर जनपद में यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों की एक बड़ी ‘जमात’ तैयार हो चुकी है और इस ‘जमात’ में इनकी संख्या में दिनोंदिन इजाफा हो रहा है, जो कि ‘सफेदपोशों’ के लिये बड़ी परेशानी का कारण बनती जा रही है। वहीं इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता है कि मुख्यधारा के रूप में माने जाने वाले मीडिया संस्थानों में कार्य करने वाले ‘कठपुतली पत्रकारों’ को मैनेज करना आसान होता है किन्तु यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों को मैनेज करने का तात्पर्य है, ‘मेढकों को तराजू पर तोलना’। इसके कतई दो राय नहीं कि यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों की यह ‘जमात’ उन सफेदपोशों के लिये एक जटिल समस्या का रूप ले चुकी है, ‘‘जो रसूखदारों में गिने जाने के साथ-साथ, ईमानदारी का चोला पहने रहते हैं। ‘वो’ पर्दा के पीछे कुछ और होते हैं किन्तु पर्दा के सामने कुछ और दिखते हैं!’’अपने निजी नजरिये से मैं अपनी लेखनी से निकले शब्दों को संकलित करते हुए निजी विचारों के रूप आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं और ‘सहमत’ अथवा ‘असहमत’ के रूप के रूप में आप सबकी राय की प्रतीक्षा कर रहा हूं।

इसके अलावा आपसे सवाल यह भी कि, ‘‘क्या यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों का खात्मा जरूरी है ?’’

कानपुर नगर की गिनती अब स्मार्ट सिटी में की जा रही है। लगभग हर प्रमुख सड़क व चौराहे पर कैमरे लगे हुए हैं। उन कैमरों की मदद से आम आदमी की बाइक एवं कार आदि के सम्बन्ध में यातायात नियमों का उल्लंघन करने के बावत ‘चालान’ होने के मामले तो प्रकाश में आ जाते हैं लेकिन वो नजारे कभी कैद होते नहीं पकड़े गये, जिनमें आटो/लोडर/ओवरलोड वाहनों आदि से ‘नजराना’ की वसूली की जाती है। वहीं ‘वसूली’ के नजारे जिनके कैमरों में कैद होते हैं वो होते हैं- यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों के कैमरे ! कटु किन्तु सत्य है कि, ‘‘वसूलीबाज पत्रकार की संज्ञा पा चुके यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों की ‘मंशा’ पूरी ना होने पर, देखते ही देखते उनके कैमरों में कैद नजारे, सोशल/डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से हजारों ही नहीं करोड़ों लोगों तक पहुंच जाते हैं जिसके चलते ‘तंत्र’ के जिम्मेदारों की छवि पर बट्टा लग जाता है।’’

स्मार्ट सिटी के सीमान्तीय थाना क्षेत्रों की बात करें तो मिट्टी का अवैध खनन, बालू का अवैध खनन में रात्रिकालीन प्रयुक्त किये जाने वाले टैक्टरों, डम्फरों, जेसीबी आदि के नजारे, दूसरे जिलों से आने वाले ट्रक, जिनके द्वारा पशुओं आदि की तस्करी की जाती है, के नजारे एवं हाई-वे पर भारी वाहनों से की जाने वाली वसूली के नजारे भी यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों के कैमरे ही कैद कर पाते हैं। किन्तु इस सच्चाई को कतई नकारा नहीं जा सकता है कि, ‘‘वसूलीबाजों की संज्ञा पा चुके यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों की ‘मंशा’ ना पूरी होने पर, देखते ही देखते वो नजारे सोशल/डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से हजारों ही नहीं करोड़ों लोगों तक पहुंच जाते हैं और ‘तंत्र’ के लिये किरकिरी बन जाते हैं।’’

शहर के अनेक होटलों में होने वाले अनैतिक कृत्यों, अनेक थाना क्षेत्रों में होने वाले सट्टा-जुआ, नियत किये गये समय से पहले और बाद में शराब ठेकों पर होने वाली शराब की बिक्री व उनके पास चलने वाली अवैध कैण्टीनों के नजारे, अधिकतर, यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों के कैमरे ही कैद कर पाते हैं। इसके बाद सौदेबाजी भी शुरू होती है। लेकिन, ‘‘वसूलीबाजों की संज्ञा पा चुके यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों की ‘मंशा’ ना पूरी होने पर, देखते ही देखते ये नजारे सोशल/डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारित होते देखे जा सकते हैं। जिसके चलते स्थानीय स्तर पर ‘नजराना’ लेने वालों के लिये सिरदर्द बन जाते हैं।’’

 

अवैध हास्पिटलों व नर्सिंग होम्स, अवैध निर्माणों, अवैध स्कूलों, अतिक्रमण, अनेक विकास कार्यों में किया जाने वाला ‘भ्रष्टाचार’, इनसे सम्बन्धित समस्त अधिकारियों से छुपा नहीं है। न्योछावर के चक्कर में सब कुछ जानते व देखते हुये धृतराष्ट्र की भूमिका में रहते हैं जबकि यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकार, उपरोक्त विषयक खबरों की खोज में रत रहते हैं। परिणाम यह होता है कि भ्रष्टाचार की पुष्टि करने वाले नजारे उनके कैमरों की जद में आ ही जाते हैं। विचारणीय पहलू यह है कि जिनको ‘वेतन’ मिल रहा है वो भी अलग से ‘कुछ’ पाने की चाहत हमेशा रखते हैं फिर तो बिना वेतन के अपना समय खर्च करने वाले यू-ट्यूबर व तथाकथित पत्रकारों के मन में ‘कुछ’ मिलने की चाहत पनपना स्वाभाविक है! किन्तु देखने को यह मिल रहा है कि उनकी मंशा पूरी न होने पर वो ‘तंत्र’ की पोलखोलने में जुट जाते हैं। परिणाम यह होता है कि, ‘न्योछावरखोरी’ करने वालों की परेशानी बढ़ जाती है। ऐसे अनेक विचारणीय बिन्दु हैं जिन पर ‘बहुत कुछ’ लिखा जा सकता है। फिर भी अब ज्यादा कुछ न लिखते हुए अपनी कलम को आराम दे रहा हूं।

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