ये सही नहीं है राजदीप।

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देश में पत्रकारिता में भद्रता का पर्याय दिखाने की कोशिश में अंग्रेजी मीडिया हमेशा आगे रहता है। और इस जमात में भी राजदीप सबसे आगे दिखते है। कई बार लगा कि बहस के दौरान वो सवाल करते वक्त पत्रकार से ज्यादा किसी के औजार बनते दिखे। लेकिन फिर भी मन नहीं मानता था लगता था कि नहीं ये शायद उस जमात के पत्रकार है जिनके मूल्य बाकि सबकी समझ नहीं आते है। सही और गलत से मुक्त मीडिया की इस धकमपेल में मैडिसन स्क्वायर के प्रोग्राम में तमाम पत्रकार जमीन में लेटे हुए थे। कुछ लोग उससे भी नीचे जा रहे थे। लेकिन ये नजरिया हो सकता है। बात देश के प्रधानमंत्री की थी। प्रधानमंत्री से मिलने पहुंचे लोग एनआरआई थे। यानि भारत से रिश्ता रखने वाले या फिर भारतीय ही थे। उनका अपने प्रधानमंत्री को स्वागत वाकई शानदार था। और इस बात पर तमाम पत्रकारों को खुश होने का हक था। आखिर दुनिया की एकमात्र महाशक्ति के घर में जिस तरह से वहां बसे हिंदुस्तानियों को खुशी और उत्साह मिला था ये रिपोर्ट करना कोई गलत नहीं था। लेकिन उसी बीच राजदीप को कुछ पलों के लिए टीवी पर देखा जो महिला जो अपने हाथ में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ काफी आपत्तिजनक पोस्टर लिए खड़ी थी। और राजदीप को लगा कि ये उनकी मोदी विरोधी के तौर पर बनी छवि के लिए बहुत ही शानदार मसाला है। और राजदीप ने शुरू कर दिया अपना आलाप। भीड़ साथ थी और भीड़ में उत्साह हिदुस्तान के प्रधानमंत्री के लिए था। कोई भी हिंदुस्तानी ये कैसे मान सकता है कि मोदी हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री नहीं है। मैंने उन्हें मत नहीं दिया है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि बाकि देश की लोकतात्रिक प्रक्रिया को पूरा धता बता दिया जाएं। लेकिन राजदीप की पूरी कोशिश शायद उन करोडो़ं लोगों को बेवकूफ बताने की थी जिन्होंने भी मोदी के वादों पर भरोसा कर उन्हें देश की बागड़ोर थमा दी। इसी बीच ट्विटर पर एक मैसेज आया कि राजदीप पर हमला। और फिर उसके साथ ही मन में विचार कि यार ऐसा नहीं करना चाहिए था। दिमाग ने कहानी को सीधे मोदी समर्थकों के हमले से जोड़ दिया। आज दिन भर सातारा और उसके ग्रामीण अंचलों में घूमता रहा, मिसल पाव के साथ दिन काटा और जब वापस होटल पहुंचा और नेट खोला तो देखा एक वीडियों जिसमें राजदीप लड़ाई की शुरूआत कर रहे है। वीडियो में एक गाली को वापस करता युवा दिख रहा है काफी नफीस गाली है राजदीप के स्टेचर के मुताबिक ही थी, और उसके बाद राजदीप वापस मुड कर उस युवक पर हाथ छोड़ते है। तब सालों से खड़े किए गए राजदीप के आडंबर को टुटते हुए देखता हूं। ये वही राजदीप है जो धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अपनी पक्षधऱता को छुपा नहीं पाता है। लेकिन अपनो को ना राजदीप से कुछ लेना देना है ना उनकी थाती से बस एक डर और दिमाग में बैठ गया कि पत्रकारों की गिरती हुई साख में एक और सुर्खाब लग गया इन साहब की बदौलत। और अब दिल और दिमाग दोनो कह रहे है कि ये सही नहीं है राजदीप।

धीरेन्द्र पुण्डीर के वॉल से

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