हिस्ट्रीशीट खोलने की उत्तर प्रदेश पुलिस की अनियंत्रित शक्तियों को समाप्त करने के निर्देश
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि अब इस प्रथा को रोकने की आवश्यकता है जो पुलिस अधिकारियों को किसी भी नागरिक के खिलाफ क्लास ए और क्लास बी की हिस्ट्रीशीट खोलने का अनियंत्रित अधिकार देती है। राज्य के किसी भी नागरिक के खिलाफ क्लास ए या क्लास बी की हिस्ट्रीशीट खोलने से पहले उसे अपनी आपत्ति दर्ज करने का एक अवसर देना अनिवार्य है और संबंधित प्राधिकारियों को प्रस्तुत आपत्तियों पर भली प्रकार विचार करके तर्कसंगत आदेश पारित करना होगा।
कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव (गृह) को 3 महीने की अवधि के भीतर इस आदेश की अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया और अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत न होने की दशा में रजिस्ट्रार (अनुपालन) को 3 महीने की अवधि के बाद मामले को पुनः कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना नागरिकों के खिलाफ वर्ग बी हिस्ट्रीशीट खोलने की उत्तर प्रदेश पुलिस की अनियंत्रित शक्तियों को प्रभावी रूप से समाप्त करते हुए कहा कि क्लास बी हिस्ट्रीशीट केवल पेशेवर अपराधियों के लिए खोली जाती है, जो डकैती, सेंधमारी, मवेशी चोरी, रेलवे माल वैगनों से चोरी और कोई अन्य जघन्य अपराध करते हैं।
मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए कोर्ट ने पाया कि उक्त आदेश में न्यायिक विवेक का प्रयोग नहीं किया गया है, क्योंकि इसमें केवल पुलिस स्टेशन बिटा-2, गौतमबुद्ध नगर के एसएचओ और जिला समिति की रिपोर्ट के आधार पर कार्यवाही की गई है। अतः कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और याचियों की निगरानी तत्काल समाप्त करने का निर्देश दिया, साथ ही राज्य सरकार को निर्देश दिया कि हिस्ट्रीशीट खोलने की प्रक्रिया में सुधार किया जाय और नागरिकों के विरुद्ध खोली गई हिस्ट्रीशीटों की हर वर्ष समीक्षा का प्रावधान हो, जिससे जिन मामलों में ऐसे व्यक्ति शामिल हों, जिनके विरुद्ध हिस्ट्रीशीट खोली गई थी और जो बाद में आपराधिक आरोपों से दोषमुक्त हो गए हैं, उनकी हिस्ट्रीशीट बंद कर दी जाए तथा उनके जीवन एवं स्वतंत्रता पर पुलिस की निगरानी समाप्त हो जानी चाहिए।
अंत में कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव (गृह) को 3 महीने की अवधि के भीतर इस आदेश की अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया और अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत न होने की दशा में रजिस्ट्रार (अनुपालन) को 3 महीने की अवधि के बाद मामले को पुनः कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया।