पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए आज का दिन ऐतिहासिक

मजीठिया मंच। वह ऐतिहासिक तारीख आज ही की तारीख थी जब सर्वोच्च न्यायालय ने मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। न्यायालय के इतने स्पेष्ट फैसले और आदेश के बाद भी मीडियाकर्मियों में अपने हक के प्रति कोई खास लालसा नहीं जगी। कारण साफ था। पिछले वेतनबोर्ड की सिफारिशों का हश्र हम सबके दिल और दिमाग पर छाया था। साथ ही प्रबंधन को शातीराना चालबाजी भी।
फरवरी से लेकर मार्च तक देश में मजीठिया को लेकर लोगों में बस उत्सुकता भर थी। प्रबंधन और मालिक अपनी चाल चलने में लगे थे। इस फैसले के खिलाफ जानबूझकर देर से पुनर्निरीक्षण याचिका लगाई गई ताकि प्रधान न्यायाधीश महोदय की सेवानिवृति के बाद यह मामला कई महीनों और सालों तक लटका रहे। लेकिन हम हजारों मेहनतकश के साथ हमारा तकदीर नहीं तो क्या, कानून और संविधान है। मालिकों की चालाकी धरी की धरी रह गई और उनकी पुनर्निरीक्षण याचिका 10 अप्रैल 2014 को खारिज कर दी गई। मेहनतकशों के लिए दूसरी सफलता और आशा। अब रास्ता साफ था।लेकिन बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे। अप्रैल तक फिर सन्नाटा रहा लेकिन दैनिक जागरण के कुछ साथियों ने जागरूकता फैलाने की पहल की। सोशल मीडिया के सहारे और आप सभी साथियों के बीच अवमानना के मामले की पुरजोर तरीके से प्रचार –प्रसार किया गया। जून –जुलाई आते -आते परिणाम भी दिखने लगा।इंडियन एक्सप्रेस के साथी और भास्कर के तीन साथी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। कुछ कारणों से पहल करने वाले दैनिक जागरण के साथी बाद में सुप्रीम कोर्ट जा सके।
इन घटनाओं को व्यापक असर पूरे देश में पड़ा। रांची, पटना, इंदौर, भोपाल, रायपुर, मुंबई, अहमदाबाद, पुणे ,जयपुर, हैदराबाद, बंगलोर ,चेन्नई, लखनऊ, कानपुर वाराणसी कोलकाता और भुवनेश्व‍र जैसे शहरों में मजीठिया की मांग धीरे धीरे जोर पकड़ने लगी। डर का माहौल थोड़ा कम हुआ और लोग सामने आने लगे। एक्सप्रेस और दैनिक जागरण , भास्कर के खिलाफ पहली सुनवाई के बाद स्थिति और बदल गई। मालिकों द्वारा यह अफवाह फैलाने के बाद कि वे कोर्ट में लड़ रहे साथियों को खरीद लेंगे, साथियों में जैसे मजीठिया लेने की जिद पैदा हो गई। और जब उन्हें पता चला कि अवमानना का मामला दर्ज कराने का मौका एक साल तक ही है, प्रबंधन के खिलाफ जाने वालों का तांता लग गया। आज के हालात जो हैं आपके सामने है। हम सभी साथियों ने लगभग सुप्रीम कोर्ट को यह विश्वािस दिला दिया है कि प्रबंधन अपने कर्मचारियों के साथ न सिर्फ मक्कारी कर रहा है बल्कि माननीय अदालत के फैसले से बचने का अवैध और वैध तरीके ढूंढ़ रहा है। लगभग सभी शहरों में अखबारों के कार्यालयों में साथियों को परेशान किया जा रहा है। लेकिन अब कोई न तो डर रहा है और न ही किसी को डरने की जरूरत है। साथियों इस ऐतिहासिक दिन पर हम इस बात की कोशिश करें कि हमारी यह एकता बनी रहे।मालिकों और प्रबंधन की अफवाह का शिकार हम न बनें। यही हमारी जीत की कुंजी होगी। र्धर्य और शांति जरूरी है।

Loading...
loading...

Related Articles

Back to top button