‘एडिटर’ नाम के कुत्‍ते के कारण विनोद मेहता से कई संपादक चिढ़ते थे

Ashish Maharishi : विनोद मेहता नहीं रहे। उनसे पहली और अंतिम मुलाकात कुछ साल पहले साउथ दिल्‍ली के Nirula’s में हुई थी। दोपहर का वक्‍त था। पेट की भूख शांत करने के लिए रेस्‍टोरेंट में जैसे घुसा तो सामने विनोद जी बड़ी शांति से बैठकर कुछ खा रहे थे। मैं उन्‍हें देखता रहा। उनका लिखा अक्‍सर मुझे अंदर तक झंकझोर देता था। खासतौर से आउटलुक में उनका कॉलम। जिसमें में वे साधारण शब्‍दों में बड़ी बातें कह दिया करते थे।

उन्‍होंने एक कुत्‍ता पाल रखा था, जिसका वह अक्‍सर अपने कॉलम में जिक्र किया करता थे। एडिटर नाम के इस कुत्‍ते के कारण कई संपादकों विनोद मेहता जी से चिढ़ते भी थे। विनोद जी हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन उनके लिखे हुए शब्‍द न सिर्फ मेरे जैसे जर्नलिज्‍म के स्‍टूडेंट को रास्‍ता दिखाते रहेंगे, बल्‍कि समाज के लिए भी पथप्रदर्शक बने रहेंगे।

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युवा पत्रकार आशीष महर्षि के फेसबुक वॉल से.

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