सहारा में अब एडोटोरियल हेड बने आनन फानन में स्थानीय सम्पादक
बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा वाली कहावत सहारा के संपादक पर इन दिनो लागू हो रही है । सालों से एडोटोरियल हेड रहे सम्पादक आनन फानन में स्थानीय सम्पादक बन गए । २३ २४ साल का सहारा हो गया स्थानीय सम्पादक का पद ही इनके यहां नहीं था । अब सवाल यह उठता है कि अचानक क्या जरूरत पडी इस पद का उपयोग करने की । आज तक इस पद का इनके लिए महत्व नहीं अपने मालिक के जेल की हवा खाते ही इन्हें इस पद का महत्व दिखने लगा । सूत्रों का कहना है कि सारी कवायद मालिको को तमाम झंझटो से बचाने के लिए किया गया है इससे पहले सुब्रत राय के भाई औऱ बेटे का नाम प्रिंट लाइन से हटाया गया था । जब मजे लेने के दिन थे तब घर के लोग प्रिंट लाइन पर काबिज थे अब मार खाने के दिन आ गए तो इस पद का सृजन कर दिया है
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