संपादक के लिए अखबार निकलता है, आम लोगों के लिए नहीं
Gunjan Sinha के फेसबुक वाल से। तब नीतीश जी ने लालू प्रसाद से अलग होकर नई नई समता पार्टी बनाई थी। नवभारत टाइम्स पटना में संपादक के पद पर एक व्यक्ति आ गए थे, नाम ….। उन्होंने मुझे प्रादेशिक से हटा कर सिटी पेज का जिम्मा दे दिया। विधान सभा चुनाव प्रचार का मौसम था और संपादक अक्सर लालू आवास में हाजिर रहते। न्यूज एडिटर महेश खरे ने निर्देश दिया कि समता पार्टी के चुनाव प्रचार से जुडी कोई खबर नहीं छपनी है। मैंने पूछा कि चुनाव प्रचार सबका छपेगा तो समता पार्टी का क्यों नही? उन्होंने जवाब दिया – हम संपादक के लिए ही अख़बार निकालते हैं, उनका जो निर्देश होगा वही छपेगा। समता पार्टी या नितीश का कुछ नहीं छापना है – ये आदेश है। मैंने कहा – आदेश बहुत महत्वपूर्ण है, आप लिख कर दीजिये तो मैं मानूंगा अन्यथा नहीं। खरे साहब नाराज हो गए. बोले, मैंने आपको बता दिया अब आपको लागू करना है। मैंने कहा, मैंने भी अपनी आपत्ति बता दी, लिख कर दीजिये , तभी मानूंगा, जबानी नहीं।
मैंने अन्य पार्टियों के साथ समता पार्टी के चुनाव प्रचार की भी ख़बरें छाप दीं। अगले दिन महेश खरे ने कहा क्यों पंगा लेते हो यार? अख़बार संपादक का होता है। हम लोग कर्मचारी हैं। जो हुकुम सरकारी, वही पके तरकारी।’
मैंने कहा संपादक से कहिये वे लिख कर दे दें कि समता पार्टी और नितीश की कोई खबर नहीं छपेगी।
शाम को जब चुनाव प्रचार की ख़बरों का राउंड अप इंद्रजीत सिंह ने मुझे दिया तो उसमे जहाँ जहाँ समता पार्टी का जिक्र था, वह सब किसी ने पेन से काट रखा था। मैंने उस दिन किसी भी पार्टी के चुनाव प्रचार की कोई खबर नहीं लगाई।
सुबह खरे साहब फिर संपादक से कुछ चिरैता सुन कर आये और मुझसे पूछा कि चुनाव प्रचार पीक पर है और आज आपने इसकी कोई खबर नहीं लगाई? मैंने जवाब दिया, किसी ने राउंड अप में पेन लगा कर जहाँ तहाँ काट कूट कर दिया था और अपने दस्तखत भी नहीं किये थे, कापी की सैंक्टिटी संदिग्ध थी, इसलिए नहीं छापा।
खरे जी सर धुनते बोले, मैं बीच में पिस रहा हूँ। ऐसा मत करो भाई। राउंड अप विश्वपति बनाते थे। शाम को वो मेरे कान में फुसफुसा कर बोले – ‘आज संपदकवा हमको बुला के बोला है कि समता पार्टी पर कुछ लिखना ही नहीं है। हम तो लिख नहीं सकेंगे। अब आप क्या करेंगे?’ उनकी नौकरी नियमित नहीं थी।
अगले दिन फिर किसी भी पार्टी के चुनाव प्रचार की एक लाइन भी नहीं छपी थी। उस दिन संपादक ने खरे साहब की पूरी क्लास ली होगी। एकदम बिफरे हुए आये – ‘गुंजन जी आज चार दिनों से चुनाव प्रचार की एक भी खबर सिटी पेज पर नहीं छप रही है। आज क्या बात हो गई कि आपने कुछ नहीं छापा?
मैंने कहा आज सिटी पेज पर विज्ञापन ज्यादा था। खरे बोले – तो आपको वही एक खबर हटाने लायक मिली ?
मैंने कहा जीहां, वही सबसे डिस्बैलेंस्ड खबर थी। और ये मैं लिखित दे दूँ ?’
खरे बोले, ‘संपादक कह रहे थे, मैंने गुंजन जी का क्या बिगाड़ा है? वो क्यों ऐसे कर रहे हैं?’
मैंने कहा, उनसे कहिये मुझे सिटी पेज से हटा दें, मेरा नीतीश कुमार या समता पार्टी से कोई लेना देना नहीं है लेकिन वह बिहार चुनाव में एक महत्वपूर्ण फैक्टर है। वे इस तरह पक्षपात करके ब्लैक आउट वाला काम मुझ से नहीं करा सकेंगे और उनका निर्देश नहीं मानने के लिए मेरे पास हर दिन कोई नया कारण रहेगा।
शायद संपादक मेरी जिद्द तोड़ने पर अड़े थे। शाम को उन्होंने खरे साहब से एक फोटो के साथ एक रिपोर्ट भिजवाई जिस पर पेज ३ पर ‘मस्ट’ लिख कर संपादक ने दस्तखत कर दिए थे। मतलब था कि वो मुझे छापना ही है। चुनाव प्रचार की कोई खबर मुझे नहीं दी गई. जो मस्ट दिया गया था, उसमे लालू प्रसाद शीतलहर में अपने बंगले के लान में आग सेकने का मजा ले रहे थे। खबर ज्यों की त्यों लगानी थी, एडिट की हुई थी। मैं सिर्फ इंट्रो और हेडिंग लगा सकता था या कुछ उसके अलावा अलग लिख सकता था। उसी दिन ठण्ड से बचने के लिए एक रिक्शावाला कमीज पर गंजी पहने मिला था। मैंने उसकी दयनीय स्ट्रैटेजी की खबर लिखी और हेडिंग लगाईं कि ‘कहीं कमीज पर गंजी, कहीं एयरकंडीशनर पर अलाव!’
– आप अंदाज लगा सकते हैं कि लालू जी को अपना अखबार दिखाने को बेचैन संपादक पर क्या बीती होगी।
ये सब कहने का मतलब ये है कि गलत का विरोध जितना बन पड़े, जैसे बन पड़े करते चलिए, कर सकते हैं। बाद में याद करने में अच्छा लगेगा।