चौथे दिन भी जागरणकर्मियों का जोश बरकरार
दैनिक जागरण में काली पट्टी बांध कर प्रबंधन की शोषणकारी नीतियों के प्रति खुला विरोध जताने वाले साथियों का हौसला बढ़ता ही जा रहा है। हालांकि प्रबंधन अपनी हरकतों से भी बाज नहीं आ रहा है। एक तरफ साथी आज चौथे दिन भी काली पट्टी बांधकर शांतिपूर्वक काम करते रहे तो दूसरी तरफ प्रबंधन से जुड़े कुछ चापलूस पूरे दिन चोरी-छिपे इधर-उधर घूम-घूम कर कर्मचारियों को फुसलाने और उन्हें प्रलोभन देकर उनकी एकजुटता तोड़ने की कोशिश में जुटे रहे। इस बीच कल शाम कर्मचारियों ने सीजीएम से मिलकर इस बात की शिकायत की और इस पर रोक लगाने की मांग भी की। कर्मचारी प्रतिनिधियों ने साफ कहा कि 7 फरवरी वाले प्रदर्शन के बाद हमने और आपने दोनों ने डेकोरम न तोड़ने का वादा किया था। हमने एक बार भी कहीं डेकोरम तोड़ने जैसी कोई हल्की हरकत नहीं की, लेकिन मैनेजमेंट की ओर से ऐसी हरकतें लगातार जारी हैं। मैनेजमेंट के लोग जो जगह-जगह घूम कर एक-एक कर्मचारी को बरगलाने की साजिश में लगे हुए हैं, इससे बड़ा प्रमाण डेकोरम तोड़ने का और क्या हो सकता है? इस पर सीजीएम ने मैनेजमेंट के उस आदमी का नाम पूछा जो ऐसा कर रहा है और बताए जाने पर वे बचाव की मुद्रा में आ गए। उन्होंने कहा कि वह ऐसा क्यों कर रहा है? वह तो इस बात के लिए अथराइज भी नहीं है। जब कर्मचारी प्रतिनिधियों ने कहा कि हम उन कर्मचारियों को बुला देते हैं जिनसे इन्होंने ऐसा कहा है, तो सीजीएम ने कहा – नहीं-नहीं, किसी को बुलाने की जरूरत नहीं है। हम उसे मना कर देते हैं। आप निश्चिंत रहें, आगे से ऐसा नहीं होने पाएगा। हालांकि आज फिर मैनेजमेंट के एक खैरखाह ने ऐसा ही किया। उन्होंने कुछ कर्मचारियों को अलग-अलग समझाने की कोशिश की कि हम आप लोगों की तनखाह बढ़ा देंगे। आप लोग अपनी मांगें वापस ले लें। इस पर एक-एक करके भी सभी कर्मचारियों ने उन्हें साफ कह दिया कि हमने प्रतिनिधि इसीलिए चुने हैं कि आप उनसे बात करें। हमसे बात करके हमारा और अपना दोनों का टाइम बर्बाद न करें। आप को जो कुछ भी कहना है वह आप हमारे प्रतिनिधियों से ही बात करें। हमसे अगर आप आगे से बात करने आएंगे तो नतीजे अच्छे नहीं होंगे। मैनेंजमेंट के एक खैरखाह ने तो अकबर-बीरबल का किस्सा सुनाते हुए हाथी पर चढने और हाथी से कुचलने वालों का एक उदाहरण भी पेश कर दिया। असल में बात-बात में वह बहुत पोलाइट लहजे में धमकी देना चाहते थे। इस पर कर्मचारियों ने उन्हें समझा दिया कि अभी पोलाइट लहजे में कह रहे हैं, इसलिए हम भी आपको पोलाइट लहजे में बता दे रहे हैं कि धमकी और जालसाजी का नतीजा कभी अच्छा नहीं होता है। आज जो स्थिति यहां तक पहुंची है वह आप लोगों की धमकियों और जालसाजियों का ही नतीजा है। अगर आपने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को मानकर मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू कर दी होतीं और जालसाजी करके व गलतबयानी करके यूनियन पर स्टे न लाए होते, तो हालात यहां तक नहीं पहुंचते। हो सकता है कि अब तक समस्याएं हल हो गई होतीं। अबसे सुधर जाइए, सब सही हो जाएगा। लेकिन अगर धमकी देंगे तो हम भी पीछे नहीं रहेंगे। इतना सुनने के बाद वह भी दुम दबा कर भाग निकले।
कर्मचारी यह बात बहुत साफ तौर पर जानते हैं कि सारी ताकत उनकी एकता तक ही सीमित है। जहां उनकी एकता टूटी नहीं कि सारा मामला निपटा। इसलिए वे किसी भी कीमत पर एकता टूटने देने के लिए तैयार नहीं हैं। सभी एक-दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।