जागरणकर्मियों की ऐतिहासिक जीत
दैनिक जागरण प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच पंद्रह दिनों से चल रहा शह और मात का खेल आखिरकार खत्म हुआ। प्रबंधन को आखिरकार झुकना पड़ा। श्रमिकों की जीत हुई। प्रबंधन हर तरीके से कर्मचारियों के इस आंदोलन को तोडऩा चाहता था। किसी भी कीमत पर ट्रेड यूनियन से जुड़े श्रमिक प्रतिनिधियों को कुचलना चाहता था। जिला प्रशासन, पुलिस से जब कोई मदद नहीं मिली (जागरणकर्मी नियमानुसार कार्य कर रहे थे) तब प्रबंधन माननीय न्यायालय की ओर अग्रसर हुआ। प्रबंधन के गुरुओं ने भरोसा दिलाया कि येन केन प्रकारेण हम इस हड़ताल को अवैध घोषित करवा देंगे और वह श्रमिक प्रतिनिधि होने का दावा करने वाले सातों प्रतिनिधियों को गेट से बाहर करवा देंगे।
बताया जा रहा है कि दैनिक जागरण नोएडा का एक रिपोर्टर अपनी कुर्सी बचाने के लिए जिला अदालत में अपने तथाकथित संपर्कों का इस्तेमाल करता दिखा। प्रबंधन की मौजूदगी में अपनी नौकरी बचाने के लिए उसने यहां तक कह डाला कि प्रबंधन इन सात लोगों को बर्खाश्त कर दे, बाकी मैं देख लूंगा। लेकिन श्रमिक प्रतिनिधियों ने कहा, लड़ाई हक की है, हम तो मालिकों से अपना अधिकार मांग रहे हैं।
इस कड़ी में कानपुर के भी कुछ लोग शामिल थे। दूसरी ओर प्रबंधन ने अब यह मान लिया है कि उसके यहां कर्मचारियों का प्रतिनिधि मंडल है, जिसके साथ मिलकर वे आगे काम करेगा और योजनाएं बनाएगा। ऐसा किसी अखबार में पहली बार हुआ है और दैनिक जागरण के इतिहास की बात करें, तो ऐसा होना रोमांच पैदा करता है। पिछली 8 जून को कर्मचारियों द्वारा दिए गए दस सूत्रीय मांगपत्र पर कल 14 जुलाई को स्थानीय डीएलसी कार्यालय में डीएलसी, एडीएम और सीओ सिटी के समक्ष जागरण प्रबंधन ने कर्मचारियों की दस सूत्रीय मांग पर लिखित सहमति जताई और मान लिया कि वे आगे भी इन दसों मांगों को तरजीह देते रहेंगे। इस बात की खबर जब जागरण के कर्मचारियों को मिली, तब वे हाथ में काली पट्टी बांधे मौन व्रत पर थे। जब उनके बीच यह खबर आई, तब खुशी की लहर दौड़ गई। जिन लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया था, वे तो खुश थे ही, जिन लोगों ने अपने साथी कर्मचारियों का साथ इस विरोध प्रदर्शन में खुलकर नहीं दे सके थे, वे भी अब सभी को बधाई दे रहे थे। यह सिलसिला आज भी चला। सभी साथी एक-दूसरे को जय हो जय हो के नारे के साथ बधाई दे रहे थे। दूसरी ओर यह खबर भी आई कि जागरण प्रबंधन ने यह रास्ता आसानी से नहीं अपनाया था। जब उसे लगा कि अब उसके पास अब कोई रास्ता नहीं बचा है और न आगे कोई रास्ता। मिलने की उम्मीकद ही है, तब वह समझौते की राह पर आया।
बिल्कुल सांप की तरह, जैसे वह बिल में जाता है तो सीधा हो जाता है। सूत्र ने यह भी बताया कि प्रबंधन ने 13 जुलाई को यह बात कर्मचारी प्रतिनिधियों से कही थी कि हम सभी जिला कोर्ट में माननीय न्यायाधीश के समक्ष पेश होंगे और उनसे कहेंगे कि हमारा समझौता डीएलसी कार्यालय में हो रहा है, आप हमें एक तारीख दे दें। लेकिन सच तो यह है कि उनकी नीयत अच्छी नहीं थी। वह वहां अपने लिए रास्ता तैयार करने गया था कि वह न्यायालय जाकर हड़ताल पर स्टे ले लेगा और ऐसा होने के बाद समझौता नहीं करेगा। यानी हड़ताल खत्म, तो प्रबंधन की जीत, लेकिन कर्मचारियों की साफ नीयत और उनके वकील श्री सुशील भाटी की दमदार प्रस्तुति के आगे माननीय न्यायाधीश ने अगली तारीख 16 जुलाई कर दी। ऐसा होने के बाद प्रबंधन की पूरी टीम ने हार मान ली और सभी सीधे डीएलसी कार्यालय समझौते के लिए निकल पड़े। यह समझौता रात नौ बजे के करीब हुआ। यहां सोचनीय बात यह है कि इस बात से न तो कर्मचारी चिंतामुक्त हैं और न प्रबंधन। दोनों अपनी आगे की तैयारी में जुटे हैं। कहावत सही है कि चोट खाया सांप मौके की तलाश में लगा रहता है। कर्मचारी भी इस बात को समझ रहे हैं और उन्हें समझना भी चाहिए, क्योंकि एकता है, तो बल है और बल है, तो आगे जीत पक्की है…