लेख किसी और का, नाम किसी और का, ये क्या हो रहा है ‘मध्यप्रदेश जनसंदेश’ में?

 

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यह लेख हिन्दुस्तान अखबार के संपादकीय पेज पर शशांक, पूर्व विदेश सचिव के नाम से छपी है और फोटो भी उन्ही का लगा है

MPJS-EDITवही लेख मध्यप्रदेश जनसंदेश में कुछ दिन बाद लगी, लेखक की फोटो तो सही लगी किन्तु नाम शशांक के जगह रवीश कुमार वरिष्ठï पत्रकार कर दिया गया ऐसा माना जा रहा है कि ये वही एनडी टीवी वाले रवीश कुमार हैं। आखिर ये गोल माल है क्या। 

मध्य प्रदेश से निकलने वाले अखबार ‘मध्यप्रदेश जनसंदेश’ में व्यवस्था की अराजकता तो शुरू से ही रही है, अब लेखकीय अराजकता भी देखने को मिल रही है। उस अखबार से बड़े-बड़े नाम जुड़े हुए हैं, बावजूद इसके संपादकीय पेज पर ब्लंडर मिस्टेक और अपरिपक्वता नजर आती है। गौरतलब है कि अखबार के संपादकीय पेज की जिम्मेदारी चीफ सब एडिटर श्रीश पाण्डेय को दी गई है। उनकी समझ कितनी और कैसी है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि वे संपादकीय पेज पर तस्लीमा नसरीन का लेख लगाते हैंं और उनका परिचय देते हैं- ‘लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं’। यही नहीं, वे लेखकों का परिचय अधिकांशत: वरिष्ठ पत्रकार के रूप में ही देते हैं।

ताजा मामला यह है कि 18 अगस्त को ‘हिंदुस्तान’ अखबार के संपादकीय पेज पर पूर्व विदेश सचिव शशांक का लेख ‘ठहरे हुए संबंधों को नई गति’ प्रकाशित है। इस लेख को हूबहू ‘मध्यप्रदेश जनसंदेश’ के संपादकीय पेज पर लगाया गया है 21 अगस्त को। पूरा लेख वही, हेडिंग वहीं, बस लेखक का नाम बदल दिया गया है। शशांक की जगह रवीश कुमार लिख दिया गया है। मजे की बात यह है कि फोटो शशांक की ही लगी है। एक महान काम और इस पेज पर देखने को मिलेगा। ‘बोल’ नाम के कॉलम में जहां राजनेताओं व अभिनेताओं के ट्वीट या बयान जाते हैं, वहां पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकवादी नावेद खान को सम्मानपूर्वक जगह दी गई है। इस पेज पर प्रूफ की गलतियां तो ख्ौर ‘शाश्वत’ हैं। यहां तक कि संपादकीय (अग्रलेख) में भी ख्ूाब गलतियां जाती हैं। अब जैसे 21 अगस्त की संपादकीय ही देख लीजिए, उसमें पलटवार की जगह ‘पटलवार’ लिखा है।

जहां समूह संपादक राजेश श्रीनेत और प्रबंध संपादक अजय सिंह विसेन जैसे ‘धुरंधर’ मौजूद हों, वहां ये गलतियां कैसे हो जाती हैं? सोचने वाली बात है। विडम्बना यह कि स्थानीय संपादक से लेकर समूह संपादक तक किसी का ध्यान इस ओर जाता ही नहीं है। ये सब हमेशा सिगरेट फूंकने में ही मसरूफ रहते हैं। कहां क्या जा रहा है या क्या जाना चाहिए, कोई मतलब नहीं। जहां संस्थान के मालिक अखबार की बेहतरी के लिए कई कड़े कदम उठा रहे हैं, वहीं संस्थान में बैठे कुछ गलत लोग उसे डुबाए दे रहे हैं। और नहीं तो कम से कम संपादकीय पेज पर ध्यान देना चाहिए संपादकों को।

 

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