…और कश्मीर समस्या का हल नहीं हो सका

logobउत्तर प्रदेश मान्यता समिति की अब दो समितियां बनना तय हो चुका है. यानि यह तय है की अब पत्रकार भी गुटबाज़ बनेंगे. यह मत कहियेगा की गुटबाजी पहले भी होती थी. वास्तव में यह उस गुटबाजी का रजिस्ट्रेशन होने जा रहा है जिसमें पत्रकारों की बात का वज़न भी खत्म हो जायेगा.
पत्रकारों की कोई डिमांड सरकार के पास जायेगी तो पहला सवाल उठेगा की किस गुट की डिमांड है. गुट का पता लगने के बाद सरकार परखेगी कि डिमांड करने वाले गुट की औकात कितनी है. 614 सदस्यों की गुटबाजी देखने के लायक है. खेमेबाजी ऐसे हो रही है जैसे कि गुटबाजी से कोई लाभ का पद मिलने जा रहा है.
एनेक्सी के मीडिया सेंटर में आज कई घंटे इस मुद्दे पर मगजमारी हुई की कैसे दो के बजाय एक चुनाव तक बात लाई जाये लेकिन यह तय नहीं हो सका क्योंकि जिनकी चुनाव कराने की पुरानी डिमांड थी वही इस मीटिंग में नहीं थे. इधर मीटिंग चल रही थी उधर चुनाव प्रचार चल रहा था.
एक से बढ़कर एक प्रस्ताव आये. तमाम प्रस्तावों पर तालियाँ बजीं लेकिन क्योंकि गुटबाजी शुरू हो चुकी है इसलिए दूसरे गुट के बगैर किसी भी मान्य प्रस्ताव को सर्वमान्य कैसे मान लिया जाये. मुद्दे पर वरिष्ठ भी बोले, कनिष्ठ भी बोले लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात. दुनिया को तरह-तरह के सन्देश देने वाले खुद भीतर से कितने खोखले हैं नज़र आ रहा था.
चुनाव कल भी होगा और परसों भी. दो कमेटियां ही बनेंगी. दो कमेटियां गठित हो जाने के बाद शायद नैतिक रूप से पत्रकारों के पास पकिस्तान की हकीकत के बारे में बोलने का अधिकार नहीं रहेगा. क्योंकि एक कश्मीर का मुद्दा वह फंसाकर रखे है और दूसरा खुद को ज़िम्मेदार मानने वाले पत्रकारों ने फंसा दिया है.

सबाहत हुसैन विजेता के फेसबुक वॉल से सभार 

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