पढ़िए, ‘आज के मीडिया में संपादकों की भूमिका’ पर क्या बोले मीडिया दिग्गज
‘आज के मीडिया में संपादकों की भूमिका’ को लेकर राज्य सभा टीवी ने शनिवार को एक विशेष सेमिनार का आयोजन किया। इस मौके पर वरिष्ठ संपादकों ने खुल कर अपने विचार रखे।
सेमिनार का आगाज करते हुए ‘द ट्रिब्यून’ के मुख्य संपादक हरीश खरे ने संपादकों पर पड़ रहे दबावों की वास्तविकता को स्वीकार किया। हालांकि उन्होने कहा कि अब भी संपादकों के पास अपने फैसले पर अडिग रहने का विकल्प है।
वहीं आउटलुक पत्रिका के संपादक, आलोक मेहता ने संपादकों की पुरानी पीड़ी को याद करते हुए उस युग को पत्रकारिता का स्वर्णिम युग बताया। राज्य सभा टीवी के शो ‘कलम गवाह है’ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि नई पीड़ी को वरिष्ठ संपादकों के योगदान के बारे में जानकारी देने की जरूरत है।
इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा ने कहा कि पत्रकारिता लोकतंत्र का वो स्तंभ है जो कि पैसा भी कमाता है। इस वजह से इस पर कारोबारी दबाव बढ़ता जा रहा है, और संपादक फ्लोर मैनेजर की तरह हो गए हैं।
परिचर्चा के दौरान जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी का मानना था कि पत्रकारिता में बुरे तत्व बढ़े हैं और ईमानदार पत्रकारों को संघर्ष करना पड़ा है। जॉन दयाल ने देश के कोने कोने में जमीनी स्तर पर काम कर रहे पत्रकारों की भूमिका की सराहना की और हाल ही 6 स्थानीय पत्रकारों की हत्या पर शोक व्यक्त किया।
वहीं लेखक और पत्रकार परनजॉय गुहा ठाकुरता ने पत्रकारिता, खासकर संपादकीय के क्षेत्र में आपाराधिक छवि वाले व्यक्तियों के प्रवेश पर चिंता जताई।
प्रिंट से टेलिविजन की ओर रुख करने वाली पहली पीड़ी के वरिष्ठ संपादक सईद नकवी ने संपादकीय की गरिमा बनाए रखने के लिए स्वतंत्र होकर काम करने की वकालत की। तो वहीं आउटलुक के संपादक कृष्ण प्रसाद ने पत्रकारिता में व्यक्तिगत स्तर पर ईमानदारी होने की जरूरत पर बल दिया। उन्होने दूसरों में खामी ढूंढने से पहले खुद पर ध्यान देने की बात कही।
सेमिनार में एक तरफ जहां वरिष्ठ संपादक एस निहाल सिंह ने पत्रकारिता के सुनहरे दिनों को याद किया, तो वहीं दूसरी तरफ वरिष्ठ संपादक और पूर्व राज्य सभा सदस्य एच.के. दुआ ने मजबूत लोकतंत्र के लिए ईमानदार पत्रकारिता की वकालत की।
नवभारत टाइम्स मुंबई के पूर्व संपादक और ‘नवनीत’ के संपादक विश्वनाथ सचदेव ने कहा कि पुराने जमाने में संपादक की संस्था मजबूत थी और धीरे धीरे इसमें गिरावट आयी है, इसके लिए केवल कारोबारी दबाव को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। संपादक दबावों के आगे झुके हैं।
सेमिनार में स्थानीय और छोटे पत्रकारों की दयनीय स्थिति पर भी चिंता व्यक्त की गयी। राज्यसभा टेलिविजन के मुख्य संपादक, गुरदीप सप्पल ने आखिर में बोलते हुए कहा कि संपादक की संस्था के लिए बुरा दौर भले ही चल रहा हो लेकिन अब भी स्थिति में सुधार आ सकता है, जरूरत है तो अपनी गलती समझने और सुधार लाने की।
वहीं अंत में राज्यसभा के कार्यकारी निदेशक राजेश बादल ने संपादकों पर अपनी पत्रकारों की टीम की अगुवाई और संरक्षण देने में असफल रहने का आरोप लगाया। सेमिनार में गलत पत्रकारिता पर नजर रखने के लिए एक स्वतंत्र, गैर सरकारी और सक्षम संस्था बनाने की बात भी कही।
इस सेमिनार में कई मीडिया आलोचकों, पत्रकार और पत्रकारिता के छात्रों ने भी हिस्सा लिया और वरिष्ठ संपादकों से सवाल पूछे।