‘ये पत्रकारिता का भक्ति और सेल्फ़ी काल है’
एक चैनल कहता हैः सच के लिए सा… कुछ भी करेगा और ‘सच’ के लिए सचमुच ‘कुछ भी’ करता रहता है. दूसरे ने अपना नाम ही ‘नेशन’ रख लिया है और किसी जिद्दी बालक की तरह हर वक्त ज़ोर-ज़ोर से चींखता रहता हैः ‘नेशन वांट्स टू नो! नेशन वांट्स टू नो!’
बात-बात पर कहने लगता है हमारे पास हैं कठोर सवाल! एक से एक कठिन सवाल! है कोई माई का लाल जो दे सके कठोर सवालों का जबाव? कहां हैं राहुल? कहां हैं सोनिया? कहां हैं शशि! वो आके क्यों नहीं देते हमारे कठोर सवालों के जबाव?
तीसरे ने अपने आप को गणतंत्र ही घोषित कर रखा है! इस गणतंत्र में एक आदमी रहता है जिसका पुण्य कर्तव्य है कि वह हर समय कांग्रेस के कपड़े उतारता-फाड़ता रहे!
चौथा कहता रहता है कि सच सिर्फ अपने यहां मिलता है और तौल में मिलता है-पांच दस, पचास ग्राम से लेकर एक टन दो टन तक मिलता है हर साइज़ की सच की पुड़िया हमारे पास है!
मीडिया और उसके प्रतिनिधि
पांचवें चैनल का एक एंकर देश को बचाने के लिए स्टूडियो में नकली बुलेट प्रूफ़ जैकेट पहने दहाड़ता रहता है-पता नहीं कब दुष्ट पाकिस्तान गोली चला दे और सीधे स्टूडियो में आकर लगे! उसे यकीन है कि बुलेट प्रूफ़ जैकेट उसे अवश्य बचा लेगी!
अपने यहां ऐसे ही चैनल हैं बहादुरी में सब एक से एक बढकर एक हैं- ऐसे वीरगाथा काल में दीपावली मिलन का अवसर आया! एक से एक वीर बहादुर पत्रकार लाइन लगा कर कुर्सियों पर बैठ गए.
मैं सोचता रहा कि जब भाषण खत्म होगा तो अपना मीडिया और उसके प्रतिनिधि पत्रकार कुछ सवाल ज़रूर करेंगे और कठोर सवाल करने वाले चैनल का रिपोर्टर तो ज़रूर ही करेगा!
पूछेगा कि ‘सर जी! कल ही एक पत्रकार सिर्फ ‘सेक्सी सीडी’ रखने के ‘अपराध’ गिरफ्तार किया गया है? वो कह रहा है कि उसे फंसाया गया है- इस बारे में आपकी क्या राय है? क्या यही है अभिव्यक्ति की आजादी?’
आपातकाल के दौर में…
लेकिन कठोर सवाल करने वाले ने तो सवाल किया ही नहीं किसी और ने भी नहीं किया! एक पत्रकार गिरफ्तार और ख़ामोश रहे अपने रण बांकुरे पत्रकार! सब के सब ‘हिज़ मास्टर्स वायस’ हो गए!
आपातकाल के दौर की पत्रकारिता के बारे में आडवाणी जी ने कभी कहा था ‘उनसे झुकने को कहा गया वो तो रेंगने लगे’- न आपातकाल है न कुछ और लेकिन इन दिनों तो सारे वीर बहादुर पत्रकार साष्टांग दंडवत करते दिखते हैं!
यह पत्रकारिता का भक्तिकाल है- लगता है कि पत्रकारों के पास कलम की जगह घंटी आ गई है जिसे वो हर समय बजाते रहते हैं और अपने इष्टदेव की आरती उतारते रहते हैं!
कोई राम मंदिर बनवाता रहता है- कोई देश को किसी अनजाने शत्रु से बचाता रहता है- कोई पाकिस्तान को न्यूक करने की सलाह देता रहता है- कोई राहुल की खिल्ली उड़ाता रहता है- कोई ताजमहल पर ही सवाल उठवाता रहता है कि ये ताजमहल है कि तेजो महालय?
भक्तिकाल से आधुनिक काल
अपने मीडिया को न महंगाई दिखती है, न बेरोज़गारी दिखती है, न बदहाल अर्थव्यवस्था! क्यों दिखे? ये तो सब माया है और ‘माया महा ठगिनि हम जानी’!
सच कहा है कि असली भक्त को अपने प्रभु के अलावा और कुछ नहीं दिखाई देता- भक्त वही है जो अपने भगवान के अलावा दूसरी बात मन में न आने दे और अपने प्रभु की नित्य लीला में मन को रमाता रहे!
कमाल का उलटफेर हैः हिंदी साहित्य तो भक्तिकाल से आधुनिक काल में आया, लेकिन अपना मीडिया आधुनिक काल से पलटी मार कर भक्तिकाल में लौट गया है!
यह है नव्य भारत का नव्य पत्रकार- सुबह से ‘नवधा भक्ति’ साधने में लग जाता है- नवधा भक्ति बड़ी ही अदभुत भक्ति है!
भक्त को सिर्फ़ इतना करना होता है कि वह आठों प्रहर अपने को ‘दीन’ समझे, अपने अहंकार का विलय कर दे, अपने प्रिय प्रभु के दर्शनमात्र से ही स्वयं को भयभीत होता दिखाए और अंत में इष्ट के साथ सेल्फ़ी लेकर फ़ेसबुक पेज पर डाल कर गर्वीला महसूस करे.
जब उसका कोई रक़ीब पूछे कि मेरे पास पत्रकारिता है और मेरे आदर्श ‘पराडकर’ और ‘गणेशशंकर विद्यार्थी’ हैं, तुम्हारे पास क्या है? तो गर्व से बोले कि मेरे पास मेरे प्रभु की सेल्फ़ी है!
जिसके पास उसके प्रभु के साथ सेल्फ़ी है वही असली पत्रकार है बाकी सब बेकार है!
सुधीश पचौरी (वरिष्ठ समीक्षक)