‘कैमरे में कैद होने का डर नहीं होता तो मोदी के चरणों में लोट भी जाते कई बड़े पत्रकार’
यूट्यूब की सनसनी ढिंचक पूजा का बेसुरा गीत सुना ही होगा आपने-…सेल्फी मैने लेली आज….। कुछ यही गीत गुनगुनाते दिखे तमाम पत्रकार, जब भीड़ में बहुत संघर्ष के बाद बेचारों को मोदी के साथ एक सेल्फी नसीब हुई। मौका था भाजपा के 11,अशोका रोड केंद्रीय कार्यालय पर दीवाली मिलन समारोह का। किसी राजनेता के साथ एक अदद सेल्फी के लिए जिस तरह पत्रकार उतावले दिखे, वह दृश्य पत्रकारिता की साख को डुबोने वाला रहा। समारोह में जैसे सेल्फी सर्कस भी एक इवेंट हो। युवा पत्रकार अगर अतिउत्साह में यह काम करें तो एकबारगी के लिए जवानी का जोश मानकर उन्हें बख्श सकते हैं, मगर अधेड़ उम्र के उन पत्रकारों का क्या किया जाए, जिनकी लिखते-पढ़ते, एंकरिंग करते हुए बाल ही सफेद हो चले हैं।
इस दीवाली मिलन समारोह में कुछ ऐसे भी पत्रकार पहु्ंचे थे, जिन पर मोदीभक्ति का ठप्पा नहीं लगा है। ये पत्रकार इस भक्तिकाल में भी कुछ हद तक पत्रकारिता की साख को जिंदा रखने की कोशिश किए हैं। सेल्फी सर्कस वाले इस समारोह का हिस्सा बने ऐसे ही एक शीर्ष पत्रकार ने आंखों देखा हाल बयां करते हुए कहा-” भाई….मोदीजी के साथ सेल्फी खिंचाने की होड़ देखकर लगा कि कुछ पत्रकार मोदी के चरणों में लोटने से भी गुरेज नहीं करते, अगर बैरिंकेडिंग न लगी होती और कैमरे में कैद होने से फजीहत होने का उन्हें डर न होता।”
सवाल उठता है कि इस तरह सेल्फी खिंचाने को बेताब इन पत्रकारों से क्या निजाम से कठोर सवाल पूछने की उम्मीद की जा सकती है।….हरगिज नहीं।
भक्तिकाल की अगर बात करें तो हिंदी साहित्य में यह काल 1375 ई. से 1700 ई. तक माना जाता है। भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ युग माना जाता है। वजह कि इसी काल में तमाम श्रेष्ठ कवियों से दुनिया का परिचय हुआ और उनकी उत्तम रचनाएं पढ़ने को मिलीं। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि भारतीय पत्रकारिता में भी एक बार भक्तिकाल आएगी। भारतीय पत्रकारिता के आलोचक मई 2014 के बाद से इस काल की शुरुआत मानते हैं, जब से मोदी केंद्र में तख्तनशीं हुए। मगर, हिंदी साहित्य के भक्तिकाल से पत्रकारिता के भक्तिकाल की कोई तुलना ही नहीं की जा सकती। मायने क्योंकि इस युग में न कोई श्रेष्ठ पत्रकार दिख रहा, न ही धारदार पत्रकारिता। एक शीर्ष पत्रकार कहते हैं कि- हिंदी के भक्तिकाल में कवि देवी-देवताओं की स्तुतिगान करते थे और आज की भक्तिकाल में राजनेता मोदी का।
फोटो-पिछले वर्ष भी सेल्फी लेने के लिए पत्रकार टूट पड़े थे, आलोचनाओं के बाद भी नहीं डिगे
मोदी को सेल्फी पसंद है तो पत्रकारो को क्यों नहीं
मोदी खुद सबसे बड़े सेल्फी लवर माने जाते हैं। विदेशी नेताओं के साथ मुलाकात के वक्त उनकी सेल्फियां चर्चा में रहतीं हैं। ऐसे में पत्रकार भला क्यों चूंके। केंद्रीय कार्यालय के मीडिया सेल ने सभी प्रमुख अखबारों, टीवी चैनलो और वेबसाइट्स के पत्रकारों को दीवाली मिलन समारोह के लिए आमंत्रित किया था। टीवी चैनलों-अखबारों के संपादक के अलावा इसमें से ज्यादातर वह पत्रकार थे, जो भाजपा की बीट देखते हैं। समारोह स्थल पर मोदी और शाह को अपने बीच पाकर मानो तमाम पत्रकार फूले नहीं समा रहे थे्। हाल एकदम उनका बच्चों जैसा रहा। जिस तरह बच्चे किसी को देखकर सेल्फी की जिद करने लगते हैं, वही हाल देश के कथित दिग्गज पत्रकारों का रहा।
शायद पार्टी नेताओं को भी यह बात भलीभांति मालुम थी कि पत्रकार सेल्फी के चक्कर में टीनएजर या बच्चे बन जाएंगे, इस नाते वे भी मुस्तैद थे। उन्होंने खबरनवीसों के लिए बकायदा बैरिकेडिंग की व्यवस्था कर रखी थी। पत्रकारों को मोदी से मिलने के लिए बैरिकेडिंग के किनारे खड़ा करवाया गया। कुछ स्वाभिमानी पत्रकारों को यह नागवार गुजरा तो वे किनारे हो लिए।
देखिए वीडियो, कैसे पत्रकार सेल्फी के लिए कर रहे संघर्ष
शर्मसार होगी पराड़कर की आत्मा
कलम को तलवार बनाकर अंग्रेजी हुकूमत को हिला देने वाले विष्णु पराड़कर अगर आज जिंदा होते तो उन्हें यह दृश्य देख कोफ्त होती। जुझारू तेवर देने वाली लेखनी के धनी पराड़कर जेल जाने से नहीं डिगे। अखबार की बंदी, अर्थदंड जैसे दमन की परवाह किए बगैर पत्रकारिता को जीवंत रखा। मुफलिसी में सारा जीवन न्यौछावर करने वाले पराड़कर ने आजादी के बाद देश की आर्थिक गुलामी के खिलाफ धारदार लेखनी चलाई। आज उन्हीं के पेशे से जुड़े पत्रकार जब राजनेताओं की भक्ति में लीन हो जाएं तो फिर पत्रकारिता से आम जन क्या उम्मीद लगाए।
दीवाली मिलन समारोह में जब तमाम पत्रकार दांत चियारकर सेल्फी ले रहे थे तो वहां मौजूद एक और शीर्ष पत्रकार खुद को असहज महसूस कर रहे थे। वरिष्ठ पत्रकार ने इंडिया संवाद से कहा कि-“वाकई दृश्य बहुत निराशाजनक था। मिलन का यह तरीका एक पत्रकार के लिए कतई स्वाभिमान गिरवी रखने जैसा रहा। उन्हें पत्रकारों के इस हाल पर उतरने का अंदेशा पहले से था, क्योंकि इससे पहले के आयोजन में भी कुछ पत्रकारों के इस सेल्फी सर्कस का गवाह रह चुके हैं। मगर, वह इस नाते समारोह में गए कि इसी बहाने कुछ मंत्रियों और बाकी पत्रकारों से संवाद कायम करने का मौका मिलेगा। आजकल पार्टी के अंदरखाने क्या चल रहा, कुछ इनपुट्स मिल जाएंगे”
क्या कहता है प्रोटोकॉल
प्रधानमंत्री किसी आयोजन में हर शख्स के साथ व्यक्तिगत रूप से फोटो खिंचाए या न खिंचाए, यह उनका निजी फैसला है। उनका विवेकाधिकार है। मगर कुछ जानकार इसे प्रोटोकॉल के विपरीत मानते हैं। उनका कहना है कि किसी कार्यक्रम में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि की मौजूदगी में अगर कोई फोटो सेशन होता है वह अमूमन सामूहिक होता है। सामूहिक फोटो सेशन एक प्रकार से गरिमामयी होता है। इसमें फोटो फ्रेम में आने के लिए किसी को छीनाझपटी की जरूरत नहीं पड़ती। मुलाकात में दोनों पक्षों का स्वाभिमान बरकरार रहता है।
मगर भाजपा के केंद्रीय कार्यालय के आयोजन को देखते हुए लगा कि जब पत्रकारों को खुद स्वाभिमान की चिंता नहीं है तो फिर मोदी क्यों केयर करें।
देखिए, सोशल मीडिया पर कैसे सेल्फीबाज पत्रकार हुए ट्रोल
मोदी भी चुटकी लेने से नहीं चूके
पार्टी कार्यालय के दीवाली मिलन समारोह में पत्रकारों की भारी भीड़ पर मोदी चुटकी लेने से भी नहीं चूके। बहुत बारीक ढंग से पत्रकारों की मौज ले लिए। बोले कि मितरों, आज पुराने दिनों की यादें ताजा हो गईं। पहले ऐसा समय था कि पत्रकारों को खोजना पड़ता था, लेकिन आज मीडिया का दायरा बढ़ गया है। पीएम ने इस दौरान स्वच्छता अभियान में मीडिया की भूमिका की जमकर तारीफ की और कहा कि भले ही सरकार की आलोचना से अखबार भरा पड़ा हो लेकिन स्वच्छता की बात पर सभी एक साथ नजर आए। यह काफी अच्छी बात है।
इससे पहले पीएम के कार्यक्रम में पहुंचने पर भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने स्वागत किया। उनके अलावा कार्यक्रम में अरुण जेटली, स्मृति ईरानी, निर्मला सीतारमण समेत मंत्रिमंडल के कई मंत्री और भाजपा के कई नेता मौजूद रहे। आपको बता दें कि प्रधानमंत्री बनने के बाद पिछले तीन साल से नरेन्द मोदी भाजपा मुख्यालय में दिवाली मंगल समारोह में पत्रकारों से मुलाकात करते हैं।