विज्ञापन दिलाएं, अखबार बचाएं, मंच ।।
शेखर पंडित
आज जुम्मा है, ,,
चुनावी रंगमंच के बाद अपनी अपनी धाक दिखाने के चक्कर में हारा नेता, जीता नेता अपने किये गए वादों और इरादों को मूर्त रूप देने, दिखाने के फेर में लगा हुआ है। सभी नेतागण अखबारों को बचाने के लिए अचानक GST GST करने लगे है, तस्वीरें वायरल कर रहे है, कभी विशाल धरना प्रदर्शन की बातें करते हैं तो कभी बैठक करने लगते है,, ज्ञापन देते देते फूल मालाएं चढ़ाने लगते है, बदलते मौसम की गर्मी का असर तो नही लगता, उनकी बदलती मानसिकता पर ज़रूर माहौल का असर दिखता है। अरे नेताजी !! अगर अखबार बचाना ही हैं तो ऐसे विशाल धरना प्रदर्शन और ज्ञापन के बिना भी आप अखबार मालिकों की नज़र में हीरो और नेता की जगह मसीहा बन सकते हों और काम भी आसान है।। ये धरना प्रदर्शन, ज्ञापन व्यापन का झोला झमेला सबको समझ आ चुका है,, भीड़तंत्र भी नही दिखता और बात दूर तक जाती है।। नेताजी आप तो ऐसा करें जिससे तमाम अखबार वालों के मसीहा बन जाएं और इन सब झोल झाल से भी बच जाए। GST हट भी गया तो क्या अखबार बच जाएंगे ये एक बड़ा प्रश्न हैं?अखबार को जबतक नियमित रूप से विज्ञापन नही मिलेगा अखबार नही बचेंगे, सही मायनों में अखबार की जान विज्ञापन है, नियमित रूप से विज्ञापन से होने वाली आय से पत्रकारों को मझिठिया के अनुरूप वेतन, सरकार को GST भी अखबार दे सकता है, औऱ आप विज्ञापन दिलाकर अखबार को बचा सकते है ।। अखबार समूह से जुड़े समस्त कर्मचारियों एवं उनके परिवार की रोटी रोज़ी में सहायक बन सकते है। विज्ञापन दिलाएं, अखबार बचाएं , ऐसा मंच जिसको सुनते ही भीड़तंत्र भाग कर आती।है और इसके लिए किसी प्रमाण की ज़रूरत नही,, लाल बहादुर शास्त्री भवन हो या सूचना विभाग सब जगह जुमे को लगने वाली भीड़ के किस्से आज भी लोगो की ज़ुबान पर है ।। आज जुम्मा है, नेताजी विज्ञापन दिलाएं अखबार बचाये।।
Nothing can substitute Experience..
समझ गए न मतलब ।।
शेखर
पत्रकार