बलिया: पत्रकारिता नहीं, “अवैध धंधों” में हुआ था कत्ल
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बागी बलिया के पानी में संखिया यानी आर्सेनिक अर्थात गुरुजल की मात्रा यूपी और आसपास के राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा है। इस पानी को पीने से दिमाग विचलित होने लगता है, याददाश्त घटने लगती है। शायद यही वजह है कि यहां के लोग अपने जीवन में हुई सारी बडी घटनाएं जल्दी ही भूल जाते हैं। इसीलिए शायद बलिया के लोग भूल चुके होंगे कि देश का सबसे बडा खाद्यान्न घोटाला बलिया में ही हुआ था। वंचितों और गरीबों को भुखमरी से बचाने वाली योजना में खरबों-खरब का अनाज उधर-उधर कर दिया गया था। ढाई दशक पहले यानी सन 1996 के करीब। उस मामले की जांच की गयी थी सीबीआई को। सीबीआई ने इस घोटाले में शामिल कुल तीन हजार से ज्यादा लोगों के खिलाफ खरबों-खरब के सरकारी खाद्यान्न को लूटने के मुकदमे दर्ज किये थे। इसमें कई मंत्री, सचिव समेत और कई अफसरों के नाम भी मुकदमे हुए थे। इस काले धंधे में कुछ पत्रकारों ने भी मुंह काला किये हैं।
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तब खूब हंगामा हुआ। प्रदेश की सरकार का चेहरा ही बदरंग हो गया। एक मंत्री को इस्तीफा देना पडा था। लेकिन दस साल बाद सीबीआई को इस मामले में इतनी उबन होने लगी। नतीजा यह हुआ कि सन-05 के बाद से सीबीआई ने इस मामले को अलमारी में बंद कर दिया। लेकिन ऐसा नहीं कि यह खाद्यान्न घोटाला भी खत्म हो गया। वह आज भी जारी है। लेकिन नेताओं और अफसरों ने अब खुद को बचाने के लिए पत्रकारों को आगे कर रखा है। अब पत्रकारिता की आड़ में यह धंधा जबर्दस्त जारी है। विगत सोमवार 24 अगस्त-20 की रात करीब साढे आठ बजे बलिया के फेफना में जिस कथित पत्रकार रतन सिंह की विगत दिनों गोली मार कर हत्या की हुई है, उसका असल धंधा पत्रकारिता था ही नहीं। दरअसल जिले में चल रहे सरकारी खाद्यान्न घोटाले का बडा धंधेबाज था। सच बात तो यही है कि रतन सिंह पत्रकारिता के नाम पर अपने इस धंधे पर पर्दा डालता रहता था, और इस पत्रकारिता के बल पर ही बिहार तक में अपना धंधा पसारे रहता था।
बलिया के एक बडे पत्रकार ने दोलत्ती संवाददाता को बताया कि सहारा समय टीवी चैनल की माइक-आईडी के साथ घूमने वाला करीब 38 बरस का रतन सिंह लम्बे समय से सरकारी खादयान्न के धंधे में शरीक था। बल्कि उसके प्रश्रय पर भी कई लोग इसी धंधे में सक्रिय थे। लेकिन रतन ने करीब 15 बरस पहले ही कोटे के अनाज की दलाली का काम शुरू कर दिया था। उसके लिए पहले तो एक डीसीएम खरीदी थी, उसके बाद पिकअप गाडी। तीन ओर से बिहार से घिरे बलिया से उसने बक्सर का रास्ता चुना और उसके लिए उसने उस रूट से पुलिसवालों को खूब सेट किया।
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आपको बता दें कि समाजवादी पार्टी की सरकार में यहां के मंत्री के करीबी रिश्तेदारों की पूरी टोली सरकारी अनाज की तस्करी में जुटी थी। तब उपेंद्र तिवारी ने यहां होने वाले अनाज तस्करी पर खासा विवाद खडा किया था। उपेंद्र तिवारी ने यहां सडक ही नहीं, विधानसभा तक में हंगामा किया।
इसके बाद जब सरकार बदल गयी, तो भगवाधारी उपेंद्र तिवारी मंत्री बन गये। जाहिर है कि तब पूर्व वाली समाजवादी पार्टी के नेताओं की तूती में जंग लग गया। लेकिन यहां के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दोलत्ती से सवाल पूछा कि योगी सरकार के बाद क्या वाकई जिले से कोटे के अनाज की तस्करी बंद हो गयी है। जवाब दिया यहां के एक पत्रकार ने। इस पत्रकार का कहना था कि सरकार बदलने के बाद अनाज तस्करी वाले मैदान में खिलाडी भी बदल गये हैं। धंधा चकाचक चल रहा है।
अपने धंधे के लिए आने-जाने के लिए उसने एक बोलेरो खरीद रखी थी। उसके मुनाफे का अंदाज आप इसी आधार पर कर सकते हैं कि कोरोना-काल के दौरान जब अधिकांश धंधे और रोजगार बंद पडे हैं, लेकिन रतन सिंह ने एक नयी स्कॉर्पियो खरीद ली थी। एक सूत्रों के अनुसार रतन सिंह ने अपने मित्रों और सहयोगियों के नाम पर भी कई गाडियां रख ली थीं। सहारा समय चैनल और पत्रकारिता तो उसका एक लबादा था। उसने अपने इस लबादे को और मजबूत करने के लिए कई और लोगों को पत्रकारिता में घुसेड दिया था। अब उसका धीरे-धीरे समाज और प्रशासन ही नहीं, बल्कि पत्रकारिता में भी खासी धमक बनने लगी थी। इसका दुष्प्रभाव तो यह पड़ा कि रतन सिंह की हत्या के बाद भी बलिया के किसी भी पत्रकार में अपनी कलम सच का पर्दा उठाने की हिम्मत नहीं पडी। आज भी यहां के पत्रकार खुलेआम सच बोलने का साहस नहीं जुटा पाते हैं।
सभार : दोलत्ती डॉट कॉम
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