आख़िर क्यों हीरो बन गया पत्रकार गंगा किनारे वाला ?

आपने एक मिसाल क़ायम की थी,, वरना यहां तो पत्रकारों की समिति के चुनाव की बात तो दूर हो गयी लोग अपने पदों से ही चिपके है,,

जन्मदिन की दिली मुबारकां, भाई श्रीधर अग्निहोत्री

धन्य है भाई श्रीधर अग्निहोत्री , एक नई मिसाल क़ायम कर दी आपने, नमन है क्रांतिकारी विचारों की पावन धरती कानपुर को जिसकी आबो हवा का असर आपके विचारों में दिख रहा है वरना यहां तो ऐसे पदाधिकारी मौजूद हैं जो आजीवन पद पर चिपके रहने के लिए साम-दाम-दंड-भेद के हर हथियार को अपना लेते हैं, चुनाव जीतने के बाद चुनाव न लड़ने की कसम खाते है लेकिन चुनाव आते आते उनकी आंखों का पानी मरता नही अपने ही अनुजों के सामने आंखों से बहने लगता है और एक आखिरी बार फिर से जीताने की दुहाई देते नज़र आने लगते है, इस कला में पुराने पारंगत है और अब तो गधे को भी बाप बनाने से नही चूंक रहे है, उनकी इन्हीं अदाओं पर एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपने अपने खुले पत्र में क्या खूब बयान किया है जिसको पढ़कर किसी को लेशमात्र भी इनके व्यक्तिव को पहचाने में संदेह नही रहेगा “महाभारत के शकुनि के मानिंद हल षड्यंत्र प्रपंच के महारथी हैं, घड़ियाली आंसू बहा कर इमोशनल कार्ड चलाकर सामने वाले के जज्बातों पर काबू पा लेने की कला में माहिर है, किसी भी शख्स पर साम दाम दंड भेद के अस्त्रों का भरपूर इस्तेमाल करने में माहिर हैं, चारित्रिक हनन से लेकर ना जाने कितने धूर्त पाखंडी हथियार तर्कस में मौजूद हैं,”।
ऐसे वरिष्ठों, मठाधीशों, पद पिपासू के बीच में अपने श्रीधर भाई ने समिति के होने वाले चुनावों में किसी भी पद पर भाग न लेने का जो फ़ैसला किया है उसने उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता में एक ऐसी मिसाल कायम की है जिसको आने वाले समय मे युवा पत्रकार साथी न सिर्फ इस परिपाटी का पालन करेंगे बल्कि पद पिपासू या कुर्सी चिपकासू की परंपरा को पूरी तरह समाप्त करेंगे।
श्रीधर भाई उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता में पूरी तरह से खांटी पत्रकार के रूप में जाने जाते है, लखनऊ में अपना मकान ना होते हुए भी सरकारी मकान पाने के लिए प्रयासरत रहे खांटी पत्रकार श्रीधर भाई को आवास न मिल पाने की एक प्रमुख वजह यह भी है कि सरकारी मकान पर जब तक समिति के चंद पदाधिकारी काबिज़ रहेंगे तब तक शायद ही किसी जरूरतमंद युवा पत्रकार को सरकारी आवास आवंटन हो सके।
लखनऊ में सरकारी रियायती दरों पर भूखंड लेकर बड़ी-बड़ी हवेलियां तो बना ली है लेकिन अपने ही पत्रकार साथियों का हक मारने में कोई जवाब नहीं इसलिए चुनाव जीतना इनके लिए ज़ुन्दगी गुजारने का एक यंत्र है जो येन केन प्रकरेण जीतना चाहते है।
अपनी सारी परेशानियों, मुसीबतों को दरकिनार करते हुए श्रीधर भाई की कलम ने किसी तरह का कोई समझौता नही किया और यही वजह है कि आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है, खबरों में गहराई, ईमानदारी, समझदारी ही उनकी पहचान है और नई पीढ़ी के पत्रकारों के लिए एक बड़े प्रेरणा सोत्र बने है श्रीधर भाई।
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