संडास फॉर मीडिया के माध्यम से ब्राह्मण पत्रकारों को बदनाम करने वाले ढेंचू सिंह के भैया झकवंत सिंह

अब ढेंचू सिंह इस पार्टी की सरकार आने के बाद उसके खिलाफ एक शब्द भी सुनने को तैयार नहीं है। क्योंकि उन्हे अब यह अपनी सरकार लग रही है। ढेंचू सिंह सरकार के पहले पांच साल एक चम्मच भी मलाई नही खा सके। जबकि उनके साथ वाले बहादुर प्रतापी सब सत्ता का मजा लेते रहे। इस बात का दुख उन्हे पूरे पांच साल सालता रहा। क्योंकि सत्ताधारी पार्टी के पुराने प्रवक्ता इनके जहर से वाकिफ थे। इसलिए ढेंचू सिंह पार्टी कार्यालय जाने से भी डरते थे।

संडास फॉर मीडिया के माध्यम से ब्राह्मण पत्रकारों को बदनाम करने वाले ढेंचू सिंह के भैया झकवंत सिंह जब जेल चले गए तो ढेंचू कुमार को लगा अब हम भी कहीं न जेल चले जाए । ऐसे में पूर्वांचल के एक पिछड़े जिले से भागते हांफते वह लखनऊ आकर गिरे। यहां लीलावती की सरकार में उनकी धुर विरोधी पार्टी के एक नेता (जिसकी राय नहीं ली जाती थी) के अखबार में वह नौकरी पा गए। ढेंचू सिंह तब लीलावती सरकार (ब्राह्मण मंत्रियों से भरी) के खिलाफ खूब लिखते थे। यही नहीं अपने मालिक को खुश करने के लिए सत्ताविहीन राष्ट्रीय पार्टी के खिलाफ भी खूब जहर उगलते थे।
लेकिन अब ढेंचू सिंह इस पार्टी की सरकार आने के बाद उसके खिलाफ एक शब्द भी सुनने को तैयार नहीं है। क्योंकि उन्हे अब यह अपनी सरकार लग रही है। ढेंचू सिंह सरकार के पहले पांच साल एक चम्मच भी मलाई नही खा सके। जबकि उनके साथ वाले बहादुर प्रतापी सब सत्ता का मजा लेते रहे। इस बात का दुख उन्हे पूरे पांच साल सालता रहा। क्योंकि सत्ताधारी पार्टी के पुराने प्रवक्ता इनके जहर से वाकिफ थे। इसलिए ढेंचू सिंह पार्टी कार्यालय जाने से भी डरते थे। लेकिन पुराने प्रवक्ताओं की छुट्टी होने से ढेंचू सिंह की मानो किस्मत खुल गई और फिर से उनका पार्टी कार्यालय में आना जाना शुरू हो गया। इस बीच सरकार की दूसरी पारी में किसी ने उनको सलाह दी कि ढेंचू सिंह रहोगे तो तुम्हारी कलई खुल जायेगी । इसलिए अपने नए भैया रिपुंजय कुमार की तरह तुम भी अपना नाम ढेंचू सिंह से ढेंचू कुमार कर लो। आइडिया अच्छा लगा तो ढेंचू कुमार ने इसे अपना लिया। इसके बाद से ढेंचू कुमार अपने संडास फॉर मीडिया वाली लाइन पर आकर ब्राह्मणों को निशाने पर लेने लग गए है। जिसके बदले उनकी पत्रिका को विज्ञापन के साथ नगदी भी मिल रही है। ढेंचू की सबसे अच्छी बात यह है कि उनको अपने नए चश्मे से खरधूषण सिंह और गाजा भैया का महिलाओं के साथ शोषण नही दिखता और न उस पर कभी कलम उठती है पर सुरेश पाठक के हर मेडिकल दौरे पर उन्हें कमियां ही कमियां दिखती हैं।
अब ढेंचू कुमार को हर वो व्यक्ति दुश्मन लगता है जो “उनकी सरकार” पर उंगली उठा दे। ढेंचू को लग रहा है कि सफाई कर्मी से लेकर मेयर तक और चपरासी से लेकर अफसर तक हर जगह उनके सजातीय बंधु ही दिखाई पड़े। कही किसी पद कोई भी दूसरी जाति का बंदा बैठता या कोई लाभ लेता है तो उनका दिल हौकने लगता है और वह प्रतापियों और बहादुरों के साथ बैठकर उनके खिलाफ विषवमन पर उतारू हो जाते हैं।
कुछ लोगों का कहना है कि इसमें ढेंचू कुमार का दोष नही है कई बार खेल खेल में बचपन में हुई किसी दुर्घटना का भी जीवन भर मलाल रहता है। हो सकता है ब्राह्मणों के प्रति इसीलिए ढेंचू कुमार के मन में इतना रोष हो।

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