प्रिंट मीडिया को कुछ इस तरह से हो रहा नुकसान, कम हुआ विज्ञापन खर्च
जब विभिन्न माध्यमों पर विज्ञापन खर्च की बात आती है, तो पिछले कुछ वर्षों में प्रिंट तीसरे स्थान पर रहा है, जबकि टीवी और डिजिटल शीर्ष दो स्थानों पर आमने-सामने हैं।
प्रिंट, जो कभी मीडिया इंडस्ट्री के सर का ताज थी, पिछले कुछ वर्षों में इसकी चमक धुंधली पड़ चुकी है, मुख्य रूप से महामारी और डिजिटल के आगमन के चलते। यह बात ‘डेंटसु-ई4एम डिजिटल विज्ञापन रिपोर्ट 2024’ (dentsu-e4m digital advertising report 2024) में निकलकर सामने आई है। रिपोर्ट की मानें तो गहन-जांच परख करने के बाद पता चला कि प्रिंट की मीडिया हिस्सेदारी 2016 में 35 प्रतिशत से धीरे-धीरे घटकर 2024 में 18 प्रतिशत रह गई है, जो नीचे दिए ग्राफ में स्पष्ट है-
यह 2017 में 34 प्रतिशत थी, जो 2018 में घटकर 31 प्रतिशत, 2019 में 29 प्रतिशत, 2020 में 25 प्रतिशत, 2021 में 23 प्रतिशत, 2022 में 22 प्रतिशत और 2023 में 20 प्रतिशत रह गई।
प्रिंट की पाठक संख्या में गिरावट का कारण डिजिटल प्लेटफॉर्म पर न्यूज कंटेंट की उपलब्धता भी है।
हालांकि वैल्यू के संदर्भ में, प्रिंट पर विज्ञापन खर्च 2023 में 18,652 करोड़ रुपये था, जो 2020 में 13,970 करोड़ रुपये से 33.5 प्रतिशत अधिक है। जबकि 2021 में यह 16,599 करोड़ रुपये था, 2022 में खर्च 18,258 करोड़ रुपये था।
जब विभिन्न माध्यमों पर विज्ञापन खर्च की बात आती है, तो पिछले कुछ वर्षों में प्रिंट तीसरे स्थान पर रहा है, जबकि टीवी और डिजिटल शीर्ष दो स्थानों पर आमने-सामने हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, प्रिंट के विज्ञापन शेयर में गिरावट का श्रेय डिजिटल प्रौद्योगिकी में वृद्धि और डिजिटल स्क्रीन के प्रति उपभोक्ताओं की प्राथमिकताओं में बदलाव को दिया जा सकता है, खासकर युवा वर्ग के बीच। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अतिरिक्त, बढ़ती लागत, वितरण चुनौतियां (डिस्ट्रीब्यूशन चैलेंजेज) और पर्यावरणीय स्थिरता संबंधी चिंताएं प्रिंट प्रकाशनों के विकास में और बाधाएं पैदा करती हैं।
कैटेगरीज पर एक नजर डालने से पता चलता है कि 2023 में गवर्नमेंट सेक्टर प्रिंट पर अग्रणी विज्ञापनदाता था, जिसका 79 प्रतिशत विज्ञापन खर्च अखबार के दर्शकों को समर्पित था।
मीडिया व एंटरटेनमेंट (M&E) और एजुकेशन कैटेगरीज ने 2023 में प्रिंट के लिए अपने कुल विज्ञापन खर्चों में से हर एक ने 56 प्रतिशत का योगदान दिया है। M&E ने विशेष रूप से पिछले पांच वर्षों में इस माध्यम में आक्रामक रूप से निवेश किया है। 2021 में M&E के विज्ञापन खर्च का 50 प्रतिशत प्रिंट के लिए रहा, जो 2022 में बढ़कर 57 प्रतिशत हो गया। इसी तरह, एजुकेशन कैटेगरी ने भी 2021 में अपने बजट का 50 प्रतिशत प्रिंट के लिए समर्पित किया। हालांकि 2022 में यह घटकर 45 प्रतिशत रह गया।
रिटेल व ऑटो सेक्टर्स भी हाल के वर्षों में प्रिंट पर शीर्ष विज्ञापनदाताओं में से रहे हैं। रिटेल सेक्टर ने अपने कुल विज्ञापन खर्च का 2023 में प्रिंट पर 58 प्रतिशत, 2022 में 56 प्रतिशत, 2021 में 65 प्रतिशत, 2020 में 47 प्रतिशत और 2019 में 51 प्रतिशत खर्च किया।
2023 में, ऑटो सेक्टर ने अपने विज्ञापन खर्च का 33 प्रतिशत प्रिंट पर खर्च किया, जो 2022 के 39 प्रतिशत से छह प्रतिशत कम था। 2021 में 45 प्रतिशत खर्च किया था। इसके बाद 2022 में भी 6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी।
FMCG और ई-कॉमर्स कैटेगरीज ने पिछले कुछ वर्षों में प्रिंट पर अपना खर्च कम कर दिया है। दोनोंं ने केवल चार-चार प्रतिशत खर्च किया और यह संख्या पिछले वर्षों की तुलना में दो से तीन प्रतिशत कम थी। 2020 में, FMCG ने अपने विज्ञापन बजट का 11 प्रतिशत प्रिंट के लिए आवंटित किया, जो 2021 में घटकर सात प्रतिशत और 2022 में छह प्रतिशत रह गया गया। दूसरी ओर, ई-कॉमर्स का 16 प्रतिशत विज्ञापन खर्च 2019 में प्रिंट की ओर चला गया, जो 2020 में यह और घटकर 14 प्रतिशत, 2021 में आठ प्रतिशत और 2022 में सात प्रतिशत रह गया।
BFSI सेक्टर भी पिछले कुछ वर्षों में प्रिंट पर काफी अच्छा खर्च कर रहा है, लेकिन वह भी अब अपना बजट कम कर रहा है। 2023 में, इस कैटेगरी ने अपने विज्ञापन खर्च का 25 प्रतिशत प्रिंट पर खर्च किया, जो 2022 के 32 प्रतिशत और 2021 के 33 प्रतिशत से कम है।
टूरिज्म सेक्टर, जो 2023 के शीर्ष विज्ञापनदाताओं में एक नया प्रवेशकर्ता रहा है, ने अपने विज्ञापन बजट का 39 प्रतिशत प्रिंट के लिए आवंटित किया है। रियल एस्टेट के लिए यह संख्या आठ प्रतिशत और टेलीकॉम के लिए छह प्रतिशत रही। कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और फार्मा ने एक ही वर्ष में प्रिंट पर क्रमशः 17 प्रतिशत और 16 प्रतिशत खर्च किया।