पत्रकारों की फर्जी मान्यताओं की जांच हेतु उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल

उत्तर प्रदेश में नियमावली, मार्गदर्शिका और प्रावधानों को दरकिनार कर जिस तरह अंडे वालों, चाय वालों, खोमचे वाले, मोटर मैकेनिक, कारपेंटर, मिस्त्री, फिल्मी हीरो एवं निर्माता, निर्देशक को मान्यता प्राप्त पत्रकार बनाने का जो सिलसिला शुरू हुआ है उसके ख़िलाफ़ अब आवाज सुनाई दे रही है क्योंकि कहीं ना कहीं सिद्धांतिक रूप से पत्रकारिता करने वालों की गरिमा पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लग रहा है।

जो लोग वास्तविकता में पत्रकारिता क्षेत्र में अनेक वर्षों से कार्यरत है, उनको मान्यता मिल नही पाती है और अति सुरक्षित भवनों जैसे सचिवालय, लोकभवन आदि में समाचार एवं प्रेस कवरेज की दृष्टि से उनका प्रवेश भी वर्जित कर दिया जाता है

उत्तर प्रदेश में नियमावली, मार्गदर्शिका और प्रावधानों को दरकिनार कर जिस तरह अंडे वालों, चाय वालों, खोमचे वाले, मोटर मैकेनिक, कारपेंटर, मिस्त्री, फिल्मी हीरो एवं निर्माता, निर्देशक को मान्यता प्राप्त पत्रकार बनाने का जो सिलसिला शुरू हुआ है उसके ख़िलाफ़ अब आवाज सुनाई दे रही है क्योंकि कहीं ना कहीं सिद्धांतिक रूप से पत्रकारिता करने वालों की गरिमा पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लग रहा है। जो लोग वास्तविकता में पत्रकारिता क्षेत्र में अनेक वर्षों से कार्यरत है, उनको मान्यता मिल नही पाती है और अति सुरक्षित भवनों जैसे सचिवालय, लोकभवन आदि में समाचार एवं प्रेस कवरेज की दृष्टि से उनका प्रवेश भी वर्जित कर दिया जाता है।

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गुलदस्ता छाप पत्रकारों की भीड़ द्वारा उत्तर प्रदेश की मीडिया को कलंकित करने का कार्य बखूबी किया जा रहा है और पत्रकारिता केवल रील और जन्मदिन का उत्साह बनाने मात्र दिखाई देती है, प्रधानमंत्री कार्यक्रम में भी अपने गुलदस्ते के दम पर इन्हीं के पास बन जाते है क्योंकि इनके द्वारा पत्रकारिता की आड़ में जिन कार्यों को संपादित किया जा रहा है उससे मिलने वाली धनराशि का कुछ प्रतिशत सूचना विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों पर खर्च करने से वरीयता के आधार पर अपने कार्य कराए जाते हैं जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण है की मान्यता निर्गत की जाने वाली नियमावली में न्यूज़ पोर्टल से मान्यता के संबंध में कहीं भी कोई प्रावधान नहीं है फिर भी न्यूज़ पोर्टल से न सिर्फ राज्य मुख्यालय मान्यता निर्गत कर दी गई बल्कि राज संपति विभाग द्वारा सरकारी आवास का आवंटन भी ऐसे ही पत्रकारों को किया जाना अधिक गंभीर विषय है, वही जाफरी बंधुओं के बड़े कुनबे द्वारा फर्जी तरीके से मान्यता लेने के उपरांत उनके द्वारा लगभग आधा दर्जन सरकारी मकान को भी अनाधिकृत रूप से कब्जे में लिया गया है, नावेद शिकोह द्वारा तो अखबार संचालन का पूरा गिरोह चलाया जाता है और अनेक अखबारों की खरीद फरोख्त का धंधा करते हुए करोड़ो रूपये की आमदनी अर्जित की गई है । गोलागंज, लखनऊ में निज आवास होने के बाद भी सरकारी आवास में महिला मित्र के साथ लव जेहाद का नया खेल खेला जा रहा है जिसके संबंध में अनेक शिकायतें सूचना विभाग में जाती हैं परंतु न तो उन शिकायतों का निस्तारण किया जाता है और न ही कोई कार्रवाई की जाती है।

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शिकायती पत्रों को दरकिनार करने की मुख्य वजह बताई जाती है कि इन पत्रकारो द्वारा धन बल, महिला सशक्तिकरण की नीतियों का सूचना विभाग के अधिकारियों पर इस्तेमाल किया जाता है और शिकायतों को लंबित करके इनका काम बन जाता है लेकिन इन्ही शिकायती पत्रों पर त्वरित कार्यवाही हेतु माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद की लखनऊ खंडपीठ के सम्मुख मान्यता प्राप्त उर्दू पत्रकार एसोसिएशन के माध्यम से याचिका दाखिल की गई है जिसमें प्रार्थना की गई है कि ऐसी मान्यताओं की जांच हेतु एक उच्च स्तरीय समिति का गठन कर फर्जी रूप से मान्यता प्राप्त तथाकथित ठेकेदार, पनवाड़ी, आतंकी गतिविधियों में लिप्त लोगों पर कार्यवाही की जाए जिससे अनाधिकृत लोगों द्वारा सरकारी भवनों में घुसकर जो रुतबा फेसबुक पर तस्वीरों के माध्यम से जमाते हैं उस पर रोक लग सके। याचिका की सुनवाई इसी फरवरी माह में होगी और सूचना विभाग के निदेशक को इस संबंध में जवाब दाखिल करने हेतु उच्च न्यायलय से आदेश पारित किये जाने की पूरी संभावना व्यक्त की जा रही है । याचिका में शाशन स्तर से मान्यता प्रकरण पर उच्च स्तरीय जांच कमेटी बनाये जाने की मांग की गई है जिससे पत्रकारो की फ़र्ज़ी मान्यताओं पर रोक लग सके।

 

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