स्वतंत्र भारत ने छापा पीड़िताा का नाम
उप्र की राजधानी से प्रकाशित हिन्दी दैनिक “स्वतंत्र भारत” ने लखनऊ की निर्भया का नाम छापकर उसकी पहचान को तो उजागर कर कानून का उल्लंघन किया है। निर्वस्त्र निर्भया की तस्वीरें सोशल वेबसाइट पर प्रसारित करने वाले पुलिस और मीडियकर्मियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करने की तैयारी में है। स्वतंत्र भारत की इस घोर लाहपरवाही पर अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया है। पीड़िता के सम्मान, पत्रकारिता के सिद्वांतों के मद्देनजर और कानून के पालन के लिये “स्वतंत्र भारत” के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए…..
लखनऊ के मोहनलालगंज क्षेत्र के बलसिंह खेड़ा गांव में बीते 17 जुलाई को निर्भया के साथ जो कुछ घटित हुआ उसने देशवासियों की आत्मा को झकझोर दिया। चंद निर्लज्ज पुलिस और मीडियाकर्मियों ने अपने ज़मीर और उत्तरदायित्वों को खूंटी पर टांग कर निर्भया की निर्वस्त्र फोटो सोशल मीडिया पर खूब शेयर कीं। इसी कड़ी में पत्रकारिता की मर्यादा, सिंद्वात और कानून की घोर अवहेलना करते हुए लखनऊ और कानपुर से प्रकाशित दैनिक हिन्दी पत्र ‘स्वतंत्र भारत’ ने अमर्यादित और गैर-जिम्मेदाराना हरकत करते हुए पीड़िता का नाम छापा। बलात्कार कानून की धारा 228-ए के तहत पीड़िता का नाम प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है।19 जुलाई, 2014 शनिवार को प्रकाशित अंक के पेज संख्या 3 पर इस घटना से जुड़ी खबर शीर्षक ‘पीजीआई कर्मचारी निकली दरिंदगी की शिकार हुई महिला’ शीर्षक से प्रमुखता से प्रकाशित किया था। पत्र ने पूरी खबर में दो दर्जन बार से ज्यादा पीड़िता का नाम लिखा। खबर किसी जिम्मेदार और सीनियर रिपोर्टर ने लिखी होगी और इस खबर को समाचार सम्पादक या सम्पादक ने पास भी किया होगा। लेकिन कई चैनलों से पास होकर छपने वाली खबर में हो रही इतनी बड़ी गलती की ओर किसी का ध्यान नहीं गया ये सोचने का विषय है।राजधानी पुलिस और कई प्रेस फोटोग्राफर पीड़िता के निर्वस्त्र फोटो सोशल बेवसाइटस पर प्रसारित करने की वजह से पुलिस की राडार पर हैं, सूत्रों के अनुसार चिन्हित लोगों को पुलिस गिरफ्तार कर सकती है। ऐसे में स्वतंत्र भारत जैसे पुराने पत्र द्वारा इतनी बड़ी गलती करना पत्रकारिता के नियमों के खिलाफ तो है ही वहीं भारतीय दण्ड संहिता का भी सरेआम उल्लंघन का गंभीर मामला है। हाईकोर्ट के वकील अमित शुक्ल के अनुसार, ‘स्वतंत्र भारत ने पीड़िता का नाम उद्घाटित कर कानून का उल्लंघन किया है। बलात्कार पीड़िता का नाम प्रकाशित करने या उससे नाम को ज्ञात बनाने से संबंधित कोई अन्य मामला आईपीसी की धारा 228-ए के तहत दण्डनीय अपराध है। अगर एफआईआर में भी नाम दर्ज है तो भी उस नाम को अखबारों या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जाहिर नहीं किया जाएगा। अगर इस नियम का उल्लंघन होता है तो दोषी को दो वर्ष की कैद की सजा हो सकती है।’ सोशल वर्कर डॉ. इमरान खान के अनुसार, ‘पत्र ने गैर जिम्मेदाराना रवैये की मिसाल पेश की है। इस मामले में जो भी दोषी हो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। अगर मीडिया ही ऐसे मामलों में सावधानी और संवेदनशीलता नहीं बरतेगा तो किससे उम्मीद की जाएगी।’ गौरतलब है कि 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में निर्भया गैंग रेप मामले में भी दिल्ली पुलिस ने गैंग रेप पीड़िता की पहचान उजागर करने के आरोप में अंग्रेजी समाचार पत्र ‘मेल टुडे’ के संपादक संदीप बामजई, संवाददाता नीतू चंद्रा, हकीम इरफान, प्रकाशक आशीष बग्गा और फोटोग्राफर कमर सिब्तें के खिलाफ आईपीसी की धारा 228-ए के तहत वसंत विहार थाने में मुकदमा दर्ज किया था। मेल टुडे ने 31 दिंसबर 2012 के अंक में पीड़िता का नाम, उसके भाई और घर की फोटो प्रकाशित कर दी थी। गौरतलब है कि वर्ष 2000 में मध्य जिला के तत्कालीन पुलिस उपायुक्त मुक्तेश चंद्र ने बलात्कार की शिकार जापानी युवतियों को प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही पेश कर दिया था। इस गैर-पेशेवाराना और असंवदेनशील कार्य के कारण तत्कालीन पुलिस आयुक्त अजय राज शर्मा ने मुक्तेश चंद्र को मध्य जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटा दिया।