कलम पर हमला कोई नई बात नहीं

penकलम पर हमला कोई नई बात नहीं है। सत्ता के नशे में मदहोश नेता, अपराधी, पुलिस गठजोड़ गाहे-बगाहे इसकी धार को भोथरा बनाने के लिए कलम चलाने वालों पर हमला बोलते रहते हैं। इस बार दलित चिंतक-लेखक कंवल भारती की कलम ज्योंहि आरक्षण और दुर्गा नागपाल के मुद्दे को लेकर चली, बस नेता-अपराधी-पुलिस के गठजोड़ ने अपना खेल दिखा दिया। फेसबुक पर कंवल भारती ने आरक्षण और दुर्गा नागपाल के मुद्दे पर जो टिप्पणी की, उससे उत्तर प्रदेष की सरकार हिल गयी। आनन-फानन में कलम के योद्धा को गिरफ्तार कर लिया गया। यह घटना 6 अगस्त 2013 की है। अभिव्यक्ति की आजादी पर यह हमला, अधोषित इमरजेंसी की ओर बढ़ रहे कदम तो नहीं है ? अखिलेश सरकार के इस कदम के विरोध में लेखक-पत्रकार-बुद्धिजीवी गोलबंद हुए सबसे पहले सोशल मीडिया पर विरोध के स्वर फुटे। हर किसी ने इस कृत्य के लिए आलोचना की और निंदा की। और होनी भी चाहिये।

प्रख्यात दलित चिंतक अरूण खोटे कंवल भारती की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए कहते हैं, दरअसल यह मामला सिर्फ इतना ही नहीं है. अपनी गैरलोकतांत्रिक शैली और आकंठ गरूर में डूबे सत्ता के नशे में चूर समाजवादी (?) को प्रतिरोध का कोई भी स्वर सुनना मंजूर नहीं है। वह जानते है कि भोपों की तरह चीखने वाले मुख्या धारा के मीडिया का मुँह बहुत आसानी से बंद किया जा सकता है। लेकिन सोशल मीडिया में हर पल उनके खिलाफ में जो विरोध के स्वर तेजी पकड़ रहे थे उन्हें रोकने का यही एक रास्ता था की सोशल मीडिया में गतिशील महवपूर्ण व्यक्ति को इस तरह प्रताड़ित करो कि पूरे सोशल मीडिया में उनके गैरलोकतांत्रिक रवैये और उनकी सरकार के करप्शन पर चर्चा बंद हो जाय। यदि लोहिया आज होते तो वह फिर हुंकार कर कहते कि, ‘जिन्दा कौमे पांच साल इन्तजार नहीं करती’। दलित लेखक और बुद्धिजीवी कँवल भारती की गिरफ्तारी से उन्होंने कई सन्देश देने की कोशिश की है। उन्होंने आरक्षण के समर्थन में खड़े वर्ग को भी चेतावनी भी देने की कोशिश की है। सोशल मीडिया के माध्यम से लाम बंद हो रहे लोगों के लिये भी यह गंभीर चेतावनी है! साथियों ! अब समय गया है कि यदि हमे अपने अभिव्यक्ति के इस एक मात्र माध्यम का सामाजिक व राजनैतिक मुद्दों के लिये इस्तेमाल करना है तो इस अधिकार को बचाये रखने के लिये हमे आपस में वास्तविक तौर पर जुड़ना होगा। सोशल मीडिया से एक कदम आगे लामबंद होने की आवश्यकता है। सोशल मीडिया के संवाद से आगे आन्दोलन का भी हिस्सा बनना होगा। अन्यथा अगला नंबर हममे से ही किसी एक का है और वह शायद ज्यादा तीखा भी हो सकता है( अरूण खोटे के फेसबुक वाल से)।

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