क्या परमानंद पाण्डेय मालिकों के हाथ बिक गए!
मजीठिया वेज बोर्ड: अफवाहों से बचें, विशेष जांच टीम से हकीकत बयान करें : मेरे एक मित्र और वरिष्ठ पत्रकार उस दिन तो फोन कनेक्ट होते ही बिफर पड़े। अत्यंत विचलित और अधीर लहजे में बोल- ‘मैंने अपनी रिट पिटीशन के लिए वकील साहब को पे स्लिप और दूसरे जरूरी कागजात तो दे दिए थे। सुप्रीम कोर्ट में उसे जज साहब को दिखाया क्यों नहीं? दूसरे साथियों ने भी पे स्लिप समेत सारे कागजात-डाक्यूमेंट केस के साथ संलग्न करने के लिए दिए थे। उन्हें कोर्ट के समक्ष वकील साहब ने रखा क्यों नहीं? नहीं, नहीं वकील साहब मालिकों के हाथों बिक गए हैं। इसीलिए उन्होंने सारे डाक्यूमेंट्स कोर्ट में पेश नहीं किए। अगर उन्होंने ऐसा किया होता तो मालिकों के वकीलों की हिम्मत नहीं पड़ती यह कहने की कि हमारे अखबारों ने अपने कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड दे दिया है। 28 अप्रैल दोपहर बाद से ही मुझे जितने भी फोन आए सबने यही ताना मारा है कि आपके वकील पांडेय साहब बिक गए हैं। मैं इतना परेशान, बेचैन हूं कि पूरी रात सो नहीं पाया। सवेरा होते ही मैंने आप को फोन मिला दिया ताकि आपसे पूछूं, आपने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मैंने आप पर भरोसा करके ही पांडेय साहब को अपना वकील करने को राजी हुआ था।’ 29 अप्रैल की सुबह मित्र के ताबड़तोड़ शब्द बाणों को झेल लेने के बाद मैंने उनसे शांत होने की अपील करते हुए कहा कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है। यह सब अफवाहें हैं, जो मालिकों और उनके गुर्गों की ओर से फैलाई जा रही हैं ताकि मजीठिया वेतनमान के जरूरतमंद मीडिया कर्मचारियों में भ्रम, असमंजस फैले और एक नए तरह की अफरा-तफरी मचे। सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ, मैंने उन्हें त्वरित गति से विस्तार में बताया। साथ ही पूरे जोर और दावे से कहा, हमारे वकील पांडेय साहब को खरीदने वाला अभी कोई अखबार मालिक पैदा ही नहीं हुआ है। आपके यकीन को मैं कभी धूमिल नहीं होने दूंगा। हम सुप्रीम कोर्ट के दर पर जिस विधि-कानूनी सलाहकार-सहयोगी-समर्थक के जरिए पहुंचे हैं, वह हमें कभी मझधार-बीच राह-अधराह में छोड़ने वाले नहीं हैं। वह अंजाम तक पहुंचाए बगैर चैन से बैठने, सांस लेने वाले नहीं हैं। मित्र-सह याचिकाकर्ता को अंतत: मेरी बातों और दी गई जानकारियों से तसल्ली हो गई।
यह एक सच्ची मिसाल इस आलेख के आरंभ में ही मैंने इसलिए परोसी है क्यों कि 28 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के आदेश जारी करते ही ऐसी अफवाह कोर्ट परिसर से लेकर देश के हर हिस्से में फैल गई, फैला दी गई कि अब तो मालिकों की पौ-बारह हो गई है, सुप्रीम कोर्ट ने चार महीने का समय दे दिया है, अखबार मालिकों को अपने झूठ को सच का मुकम्मल जामा पहनाने के लिए और विशेष जांच टीम, विशेष जांचकर्ताओं, लेबर अफसरों, इंस्पेक्टरों को खरीदने, अपने फेवर में करने और उनसे मनचाहा लिखवाने, सर्टिफिकेट लेने के लिए। फिर वे माननीय सर्वोच्च न्यायालय में उसे प्रस्तुत करते हुए पूरे चौड़े होकर कहेंगे कि मजीठिया हमने दे दिया है। इसके लिए वे पहले से ही एकजुट होकर कोर्ट रूम से लेकर बाहर तक हर जगह मजीठिया के 20जे का हवाला देते हुए कोहराम मचाए, दावा किए हुए हैं कि हमारे कर्मचारियों को मजीठिया चाहिए ही नहीं, हम तो उन्हें पहले से ही इससे ज्यादा दे रहे हैं, हमारे सारे इंप्लाई इससे संतुष्ट हैं! आदि आदि बातें। पहली बात तो यह कि हमें अफवाहों पर बिल्कुल ध्यान नहीं देना है। हमें करना-कहना वही है, जो सही, वास्तविक गाइडलाइन (दिशा निर्देश) देने वाले बताएंगे, सुझाएंगे। हमें भटकना नहीं है, किसी के बहकावे में नहीं आना है। अपने लक्ष्य के लिए एकजुट रहना है, मिलकर लड़ना है। मजीठिया वेतनमान के जरूरतमंदों के लिए सुप्रीम कोर्ट का मौजूदा आदेश एक तरह से सोने पे सुहागा सरीखा है। हमारे जैसे जो लोग सुप्रीम कोर्ट में अवमानना केस किए हुए हैं, उनकी तो इंसाफ की उम्मीदें कुलाचें भर रही हैं। साथ ही उनके लिए भी आशाओं का आसमान खुल गया है, जो अभी तक दबे-कुचले-बुझे मन से मजीठिया के सपने लेते रहे हैं, दबी जुबान से दाएं-बाएं देखकर मजीठिया की बातें करते रहे हैं, आहें भरते रहे हैं। डरे-सहमे-कुचले ऐसे कर्मचारी, जिनकी तादाद कम से कम दैनिक भास्कर अखबार समूह में सबसे ज्यादा है, खुलकर उस स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम को बता सकते हैं और संबंधित डाक्यूमेंट्स दिखाकर उसे उनके हवाले कर सकते हैं, जिससे प्रमाणित हो कि उन्हें कितनी सेलरी-सुविधाएं मिलती हैं? और मालिकान के मजीठिया से ज्यादा देने के दावे कितने खोखले-झूठे-मक्कारी भरे हैं? ऐसे कर्मचारियों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने एक सुनहरा मौका उपलब्ध करा दिया है। इसे अगर दबी-कुचली आत्माएं (कर्मचारी) चूक गईं तो फिर यह अवसर भविष्य में दुर्लभ है। इसलिए मित्रों! भय त्यागो और इस अवसर को अंगीकार करो। यदि सारे कर्मचारी अपनी विपदा-व्यथा को विशेष जांच टीम के समक्ष व्यक्त कर देंगे तो यह मानकर चलें कि उनकी सेलरी तीन गुना बढऩे-बढ़ाए जाने से कोई रोक नहीं सकता। मेरी जानकारी के मुताबिक अखबारों में सबसे कम सेलरी दैनिक भास्कर में मिलती है। यह सेलरी उतनी भी नहीं होती कि कर्मचारी अपनी खुशी का इजहार इस गीत से कर सके कि- खुश है जमाना आज पहली तारीख है…
इस संदर्भ में एक अहम सच्चाई का जिक्र करना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट ने जब मजीठिया क्रियान्वयन की वास्तविकता का पता लगाने के लिए विशेष जांच टीमों के गठन का आदेश दिया तो मालिकों के वकीलों सलमान खुर्शीद, कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी आदि ने एक सुर से इस दलील के साथ विरोध करना शुरू कर दिया कि इससे तो इंस्पेक्टर राज का बोलबाला हो जाएगा। जिस इंस्पेक्टर राज का हम विरोध करते रहे हैं, वही हमसे मुकाबिल होगा। लेकिन माननीय जज ने इस शोर की ओर से अपने कान बंद कर लिए और सख्ती से अपना आदेश सुना दिया। अब कानून के इन महान जानकारों से कौन पूछे कि जब वे मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री पदों पर विराजमान थे तो इंस्पेक्टरों की खुली हुकूमत के प्रति उनका क्या रुख-नजरिया-रवैया था? उस वक्त जब इंस्पेक्टर राज के खिलाफ आवाज उठती थी तो मूक दर्शक, यहां तक कि प्रताड़क की भूमिका में नहीं रहते थे? अरे भई! सुप्रीम कोर्ट की अपनी कोई मशीनरी नहीं है। उसे तो काम इसी मशीनरी-तंत्र से लेना है। सो वह कर रहा है। रह गई बात विशेष जांच टीम के अधिकारियों-कर्मचारियों के ठीक-सही-निष्पक्ष ढंग से काम करने, दी गई जिम्मेदारियों को अंजाम देने की तो भई, उन्हें लेबर कमिश्नर के जरिए अपनी रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट को देनी है। अगर उन्होंने गड़बड़ी की तो कंटेम्प्ट खुला हुआ है। इसकी चपेट में आने से वे भी बच नहीं पाएंगे। इस सबके लिए कर्मचारियों, खासकर अवमानना का केस करने वाले साथियों को सबसे ज्यादा सतर्क-सजग-सावधान रहने की जरूरत है। दैनिक भास्कर चंडीगढ़ विशेष जांच टीम से बेखौफ: एक और संदर्भित हकीकत बयान करना लाजिमी समझता हूं। दैनिक भास्कर चंडीगढ़ से ताजातरीन जानकारी यह है कि यहां मैनेजमेंट मजीठिया न देने के लिए नए सिरे तत्पर हो गया है। मैनेजिंग डायरेक्टर महोदय सुधीर अग्रवाल दो मई को चंडीगढ़ पधारे हुए थे। उन्होंने सारी तैयारियों का जायजा लिया। उनका एचआर डिपार्टमेंट इसके लिए तैयारी में मशगूल हो गया है। इसकी पुष्टि इसी विभाग के एक वरिष्ठ कर्मचारी के इस कथन से हो जाती है- ‘कोई भी जांच टीम आए, हम खरीद लेंगे। हम अपने फेवर में लिखवा लेंगे। हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मजीठिया नहीं देना है तो नहीं देना है। जिसको, जिस भी कर्मचारी को जो करना हो कर ले। कोर्ट-वोर्ट हमारे मालिकों का कुछ नहीं बिगाड़ सकता।’ हैरानी यह है कि ये सारी बातें उक्त कर्मचारी ने मुस्कराते हुए कहीं। इसी से मिलती जुलती बात इसी विभाग के एक पुराने मैनेजरनुमा महोदय नहीं कही हैं कि मजीठिया के हिसाब से हम जो सेलरी दे रहे हैं, वह कम हो जाएगी।
चंडीगढ़ के लेखक भूपेंद्र प्रतिबद्ध से मोबाइल संपर्क : 9417556066