आंदोलन को कुचलने के लिए जागरण कार्यालय में लगे बाउंसर
इज्जत बहुत बड़ी बात होती है। लेकिन दैनिक जागरण प्रबंधन ने पैसे के लिए अपनी इज्जत को दांव पर लगा दिया है। अखबार की प्रोफाइल और छवि दोनों खराब हो गई है, फिर भी संजय गुप्ता साहब मस्त हैं। उन्हें शायद यह नहीं पता है कि वह उसी छवि की रोटी खा रहे हैं। कहावत तो वही चरितार्थ हो रही है कि चमड़ी भले ही चली जाए पर दमड़ी न जाए।
दमड़ी से आशय मजीठिया वेतनमान से है। मजीठिया वेतनमान न देना पड़े, उसकी एवज में भले ही कोई उनकी इज्जत लूट ले जाए। मोटी चमड़ी हो गई है उनकी। न लाज रह गया है और न ही लिहाज। जिद किस बात की है, कर्मचारियों का वाजिब हक मार ले जाएं और उन्हें कोई कुछ न कहे। बता दें कि मजीठिया वेतनमान के लिए कर्मचारियों का प्रदर्शन लगातार जारी है।
कर्मचारियों के आंदोलन को कुचलने के लिए दैनिक जागरण के नोएडा कार्यालय में बाउंसर लगा दिए गए। अब कर्मचारी 21 नवंबर को उनके निवास पर प्रदर्शन करने वाले हैं। जाहिर है कि वहां भी बाउंसर तैनात होंगे। सोचने वाली बात यह है कि मजीठिया वेतनमान की धनराशि इतनी ज्यादा नहीं है कि संजय गुप्ता उसे न दे सकें। आखिर कहां-कहां बाउंसर तैनात कराएंगे। उनके कर्मचारी तो संस्कारशाला झेलते-झेलते चरित्रवान हो गए है पर बाउंसरों को संस्कार कौन सिखाएगा। ऐसा पहले भी हो चुका है कि बाउंसर सुरक्षा के लिए जब भी घरों पर तैनात किए जाते हैं, वे घर की बहू-बेटियों की इज्जत लूटने से बाज नहीं आते। यह भी हो सकता है कि ये बाउंसर सीजीएम नीतेंद्र श्रीवास्तव और विष्णु त्रिपाठी के भी निवास पर तैनात किए जाएं। अब इसमें कर्मचारियों का क्या जाता है। वे तो बाउंसरों को शुभकामना ही देंगे कि ठीक है भैया, छानों अधिकारियों के घर का नरम-नरम ‘माल’।