यूपी में खबरों के सिकंदर बने ईटीवी ने तोड़ दिए देश में टीआरपी के सारे रिकॉर्ड
नई दिल्ली। यूपी में बीते दिनों जब हफ्ते भर तक मुलायम कुनबे में कलह मची रही तो आम जन की बात छोड़िए बड़े-बड़े चैनलों के संपादक ईटीवी पर नजर गड़ाए हुए थे। वजह थी कि सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव, सीएम अखिलेश यादव हों या फिर शिवपाल-रामगोपाल यादव। इनके हर अगले कदम की आहट सबसे पहले ईटीवी भांपने में अव्वल रहा।
मंत्री गायत्री को हटाने की फाइल पर दस्तख्वत होने के दस सेकंड के भीतर ही ईटीवी यूपी ने ब्रेकिंग देकर लोगों को चौंका दिया। जी हां बात चाहे शासन- सत्ता के गलियारे की हो या फिर यूपी के गांव-कस्बे की खबरों की। सबसे पहले अपनी स्कीन पर खबरों को परोसकर ईटीवी यूपी ने इतिहास रचते हुए देश में टीआरपी के रिकॉर्ड तोड़ दिए। आधे में भेलपूर-आधे में बनारस वाली कहावत लागू हो गई।
ताजा टीआरपी के आंकड़े बताते हैं कि यूपी में आधे से भी ज्यादा 62 प्रतिशत दर्शकों के दिलों पर ईटीवी राज कर रहा है। बाकी 38 प्रतिशत में सारे नेशनल से लेकर चिटफंडिया चैनल भिड़े-पड़े हैं। 850 चैनलों की भीड़ और गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में टीआरपी के इस आंकड़े को जादुई उपलब्धि माना जा रहा। इसका श्रेय जाता है चैनल के सीनियर एडिटर व यूपी हेड ब्रजेश मिश्रा को। जिन्होंने अपने निर्देशन में दमदार टीम के दम पर ईटीवी को मानो यूपी का ऐसा नोटिस बोर्ड बना दिया, जहां शासन, सत्ता, प्रशासन व समाज से जुड़ी हर छोटी से लेकर बड़ी लोकल खबर नमूदार होती है।
इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़े लोग बताते हैं कि 60 फीसद से ज्यादा टीआरपी के जादुई आंकड़े तक 2002 में ‘आज तक’ चैनल पहुंच सका था। तब ‘आज तक’ करीब 67 प्रतिशत व्यूवरशिप के साथ नंबर वन था तो जी न्यूज दूसरे स्थान पर। मगर इसके बाद खुद ‘आज तक’ यूपी में इस आंकड़े के आस-पास भी नहीं फटक सका। अब जाकर 15 से 20 प्रतिशत में बड़े चैनल झूल रहे हैं। मगर इस दौर में ईटीवी ने 62 प्रतिशत टीआरपी लेकर इतिहास रच दिया।
टीआरपी की दुनिया में इस करिश्माई उपलब्धि को यूपी की सत्ता में ईटीवी की बड़ी पैठ के तौर पर देखा जा रहा। चाहे सपा सरकार का कोई फैसला हो या फिर मुलायम कुनबे में खट-पट होने की सुगबुगाहट। हर खबर को ईटीवी ने न केवल ब्रेकिंग के रूप में परोसा बल्कि उस पर प्राइम डिबेट में खुली बहस भी दर्शकों के सामने पेश की। कहा जाता है कि चाहे पंचम तल पर सीएम अखिलेश यादव का दफ्तर हो या फिर मुख्य सचिव और डीजीपी ऑफिस। हर जिला मुख्यालय पर कलेक्टर के दफ्तर। लगभग समय यहां ईटीवी चैनल ही खुला रहता है। वजह कि इस चैनल पर स्थानीय खबरें सबसे ज्यादा फ्लैश होती हैं।
ईटीवी यूपी की साख व पकड़ का ही असर रहा कि पिछले दिनों मुलायम कुनबे में जब कलह क्लाईमेक्स पर पहुंची तो जहां सारे चैनल जहां बड़े नेताओं की बाइट के लिए तरस रहे थे वहीं ईटीवी के सीनियर एडिटर ब्रजेश मिश्रा शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव को माल एवेन्यू दफ्तर बुलाकर एक्सक्लूसिव इंटरव्यू ले रहे थे। जब ये नेता इंटरव्यू देने के लिए ईटीवी दफ्तर पहुंचे थे तो बाहर दूसरे चैनल के दिल्ली से आए बड़े-बड़े एडिटर ओवी वैन खड़ी कर बाइट का इंतजार कर रहे थे।
यहां तक कि पिछले दिनों राज्यपाल राम नाईक भी ईटीवी दफ्तर पहुंचकर एक्सक्लूसिव इंटरव्यू दिए। मुलायम सिंह का सबसे ज्यादा बार इंटरव्यू लेने और पूरे एक घंटे का सीएम अखिलेश यादव का इंटरव्यू ब्रजेश मिश्रा ले चुके हैं। यही नहीं मीडिया से नाक-भौं सिकोड़ने वाली मायावती का भी इंटरव्यू लेने वाले ब्रजेश मिश्रा पहले पत्रकार हैं।
स्थानीय चैनलों में देखें तो यूपी में ईटीवी को पहले सिर्फ समाचार प्लस से ही टक्कर मिलती रही। मगर समाचार प्लस अब ईटीवी की टीआरपी से काफी दूर नजर आ रहा। कहा जा रहा कि उत्तराखंड में हरीश रावत के स्टिंग को लेकर हुए पचड़े और फिर हाल में जब मुलायम कुनबे में कलह हुई तो शिवपाल के फेवर में सौ विधायकों के होने की झूठी ब्रेकिंग समाचार प्लस पर चली। जिससे इस चैनल की विश्वसनीयता पर असर पड़ा। नतीजा ईटीवी को टक्कर देने वाला यह चैनल अब कमजोर नजर आ रहा।
ईटीवी यूपी हेड ब्रजेश मिश्रा ने इंडिया संवाद से अपनी सफलता का राज बयां किया। कहा कि ईटीवी ऐसा इकलौता चैनल है जो कोई भी ब्रेकिंग स्क्रीन पर देने से पहले ट्विटर पर उसका संकेत देकर ललकारता है कि ढूंढना हो तो ढूंढ लो। यह आत्मविश्वास परक पत्रकारिता का ट्रेंड हमने चलाया है। सपा में कलह के दौरान हर हलचल की सूचना सबसे पहले ईटीवी की स्क्रीन पर दौड़ी। रियल टाइम जर्नलिज्म की यह सफलता हमारे नेटवर्क और भरोसेमंद सूत्रों की देन रही।
2010 में जब ईटीवी यूपी की जिम्मेदारी संभाली तो सबसे पहले दो साल तक पूरी टीम को फील्ड में अपनी साख बनाने पर जोर दिया। नेताओं का चेहरा देखकर दिल्ली की रिपोर्टिंग के ट्रेंड को यूपी में तोड़ दिया। इसका नतीजा सामने दिखा। नेता हो अफसर या फिर आम जन। ईटीवी के रिपोर्टर को सही और त्वरित सूचनाएं देने में यकीन करने लगे। नेताओं और अफसरों के साथ आम जनता की पत्रकारिता पर टूटते भरोसे को बचाते हुए साख पर आंच नहीं आने दी।
न इधर की बात उधऱ की, न उधर की इधऱ। पत्रकारिता में प्रोफेशनल व पर्सनल रिश्ते का भेद मिटा दिया। यही वजह रही कि बीते दिनों जब सपा में संकट की स्थिति पैदा हुई तो दोनों गुटों के नेता ईटीवी पर पेश होकर इंटरव्यू दिए। कौशांबी के मूल निवासी ब्रजेश मिश्रा कहते हैं कि पत्रकारों पर नेता, अफसर या फिर आम जनता तभी भरोसा कायम हो सकता है जब वो किसी का एजेंडा सेट करने वाले न हों। खुद को पत्रकार समझें न कि पीआर परसन। ब्रजेश मिश्रा ने सफलता का श्रेय पूरी ईटीवी टीम को दिया।