पत्रकारों की मान्यता समिति की बैठक का सचिव शिवशरण सिंह ने क्यों किया आव्हान ?

कुछ खास होगा, फूल खिलेंगे या काटे गढ़ेंगे, सचिव द्वारा बुलाई गई मान्यता समिति की बैठक में चुनाव की होगी घोषणा या शोर शराबों का रहेगा दौर

लोकतंत्र का चौथा मजबूत स्तंभ कहे जाने वाला पत्रकार वर्ग अचानक डरा डरा सा दिखने लगा है, मज़बूत स्तंभ जो सरकार द्वारा दी जा रही मान्यता की खोखली बुनियाद पर टिका था हिलता नज़र आ रहा है और इसकी वजह कोई राजतंत्र नहीं है कहीं ना कहीं एक ऐसा तंत्र है जिससे चुनिंदा पत्रकार खुद को बंधा हुआ महसूस करता है और उसकी लेखनी गुलामी की तरफ बढ़ती नजर आती है और वह तंत्र है प्रदेश सरकार से मिलने वाली सुविधाओं का बड़ा पिटारा जिसके जाने या मिट जाने की डर से उत्तर प्रदेश के पत्रकारों में बौखलाहट और घबराहट देखी जा रही है।
देर से ही सही लेकिन कुम्भकर्णी नींद से पत्रकारो की समस्यओं पर कही नज़र न आने वाली मान्यता समिति भी जागती नज़र आ रही है और सचिव महोदय द्वारा तत्काल बैठक बुलाई जाने का प्रस्ताव पारित किया गया है जिसमे बताया गया है कि फ़र्ज़ी शिकायती पत्रों को फ़र्ज़ी नाम, पते के साथ भेज कर पत्रकारो को परेशान किये जाने की साजिश चल रही है।

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सचिव महोदय के संदेश के बाद भड़ास की टीम ने उन सभी तथ्यों, शिकायती पत्र और आरटीआई के तहत दिए गए प्रार्थना पत्रों की गहनता से जांच की तो यह निष्कर्ष दिखाई देता है कि नियमपूर्वक जिन भी पत्रकार साथियों ने मान्यता ली है, सरकारी आवास का आवंटन कराया है उन पर कोई भी मुसीबत नहीं आने वाली है और तो और जिनके द्वारा फ़र्ज़ी शपथ पत्र एवं गलत तथ्यों के आधार पर मान्यता, आवास या अन्य सुविधाएं ली गई है उन पर भी कोई मुसीबत नहीं आएगी क्योंकि गलत तथ्यों और नियमों को दरकिनार कर जिनके द्वारा उनको मान्यता दी गई है उनके द्वारा उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी, आखिर गड्डी भर नोटों का कर्ज भी अदा करना है फिर ये बैठक का शंखनाद क्यों, कहीं मान्यता समिति के चुनाव की घोषणा तो नही होगी क्योंकि अनेक पत्रकारो का मत है कि ये वक़्त चुनाव के लिए उपयुक्त प्रतीत होता है । अनेक गरिष्ठ पत्रकारो की मान्यता नवीनीकरण नहीं हुआ है और ऐसे में अध्यक्ष पद की लालसा लिए कई व्यक्तियों के ख्वाब पूरे हो सकते हैं।
जहां तक किसी मुकदमे में नामित पत्रकार की मान्यता नवीनीकरण न किए जाने का मामला है तो स्वयं सूचना निदेशक शिशिर सिंह द्वारा कार्यालय आदेश जारी करके पूर्व में इस बात की व्यवस्था की गई है कि मुकदमे में नामित पत्रकार की मान्यता न तो समाप्त की जा सकती है और न ही मुकदमे के आधार पर मान्यता नवीनीकरण रोका जा सकता है।
सूचना निदेशक शिशिर सिंह द्वारा पारित कार्यालय आदेश की प्रति भड़ास के पास उपलब्ध है जिसमें शरीर सिंह द्वारा स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि न्यायालय के निर्णय आने के उपरांत ही मान्यता निरस्त किए जाने की कार्रवाई की जाएगी अन्यथा मुकदमे में नामित किसी भी पत्रकार की मान्यता समाप्त नहीं की जा सकती है।
अचानक से आए शिकायती पत्रों की उथल-पुथल से किसी पत्रकार को कोई नुकसान तो नहीं हुआ लेकिन जो मान्यता समिति बैठक नहीं हो रही थी, जिसका कोई अस्तित्व नजर नही आता था और न ही चुनाव कराने की किसी भी प्रक्रिया में कोई बैठक बुलाई जाती थी, अचानक शिकायती पत्रों को फर्जी करार देते हुए जिस तरह बैठक बुलाने का प्रस्ताव दिया गया है उसके संबंध में भी भड़ास द्वारा जांच पड़ताल की गई और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि न तो कोई शिकायत कर्ता फर्जी है और न ही कोई शिकायत काल्पनिक है। शिकायतों में जो मुद्दे उठाए गए हैं उनका वास्तविक पत्रकारों के हित में निर्णय लिए जाना अनुकूल प्रतीत होता है यह भड़ास की अपनी खोजबीन का नतीजा है जिनमें किसी पत्रकार का सहमत होना जरूरी नहीं है लेकिन उन शिकायती पत्रों और आर टी आई के अवलोकन से यह प्रमाणित होता है कि कुछ पत्रकारों द्वारा अपनी पत्नी के नाम अखबारों और पत्रिका दिखाकर करोड़ों रुपया का विज्ञापन सूचना विभाग से लिया गया है और सिर्फ विज्ञापन ही नहीं अनेक तरह के धंधे में लिप्त लोगों द्वारा राज मुख्यालय की मान्यता करा कर अपना रुतबा समाज में दिखाया जाता है जिसको रोका जाना अत्यंत आवश्यक है।
एक तरफ माननीय उच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका का संज्ञान लेकर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव सूचना, सूचना निदेशक, राज संपति विभाग, सचिवालय प्रशासन विभाग, और दिल्ली डीएवीपी को नोटिस जारी किया गया है जिसके जवाब का इंतेज़ार न सिर्फ भड़ास को बल्कि सभी पत्रकारों को है तो दूसरी तरफ शिवशरण सिंह, सचिव द्वारा बुलाई गई बैठक से गर्म चल रही सियासी हवाओं में मान्यता प्राप्त पत्रकारो के टलते चुनाव में भी रंग भर गया है और आने वाली होली में कितनो के चेहरों पर कौन सा रंग खिलेगा ये तो बैठक के उपरांत पता चलेगा, फिलहाल बुरा न मानो भड़ास की तरफ से भी रंगा रंग होली चलती रहेगी ।

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