शरीफ जाफरी का दिखा दबदबा, आलमी सहारा लखनऊ के पते से किया पलटवार
उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता में जाफरी बंधुओं के नाम से तथाकथित मान्यता प्राप्त पत्रकारों की श्रेणी में सबसे आगे दिखाई देने वाला यह परिवार सिर्फ अपनी पत्रकारिता के लिए नहीं जाना चाहता बल्कि समाजवादी घराने से निकटतम संबंधों को लेकर तरह-तरह की चर्चाओं के कई किस्से कहानियां प्रेस क्लब की रंगीन शाम में सुनने को मिलते हैं। लखनऊ की पत्रकारिता में यह अकेला परिवार होगा जिनके नाम से अनेक सरकारी आवास आवंटित किए गए हैं और यदि उनके इतिहास के संबंध में ठीक से जांच पड़ताल हो जाए तो अनेक चौंकाने वाले व्यावसायिक तथ्यों की जानकारी सामने आएगी परंतु इनके सामने न तो कोई बोल सकता हैंऔर न ही कोई शिकायत करने की हिम्मत कर सकता है।
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के बुलडोजर के आगे अतीक अशरफ और मुख्तार अंसारी के गुर्गों की भले ही हिम्मत जवाब दे गयी हो लेकिन समाजवादी सरकार के नगीनों की चमक अभी भी दिखाई देती है। उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता में जाफरी बंधुओं के नाम से तथाकथित मान्यता प्राप्त पत्रकारों की श्रेणी में सबसे आगे दिखाई देने वाला यह परिवार सिर्फ अपनी पत्रकारिता के लिए नहीं जाना चाहता बल्कि समाजवादी घराने से निकटतम संबंधों को लेकर तरह-तरह की चर्चाओं के कई किस्से कहानियां प्रेस क्लब की रंगीन शाम में सुनने को मिलते हैं। लखनऊ की पत्रकारिता में यह अकेला परिवार होगा जिनके नाम से अनेक सरकारी आवास आवंटित किए गए हैं और यदि उनके इतिहास के संबंध में ठीक से जांच पड़ताल हो जाए तो अनेक चौंकाने वाले व्यावसायिक तथ्यों की जानकारी सामने आएगी परंतु इनके सामने न तो कोई बोल सकता हैंऔर न ही कोई शिकायत करने की हिम्मत कर सकता है। अफ़ज़ाल इदरीसी नामक पत्रकार द्वारा शासन प्रशासन के उच्च अधिकारियों के सम्मुख साक्ष्यों और तथ्यों के साथ अनेक शिकायती पत्रों के माध्यम से इनके संबंध में खुलासा किया गया जिसमें सरकारी आवास से द न्यूज़ कॉर्नर नाम की पत्रिका का संचालन किये जाने के साक्ष्यों को प्रस्तुत किया गया एवं शारिब जाफरी द्वारा सी न्यूज़ से फर्जी मान्यता लिए जाने के अनेक साक्ष्य भी उपलब्ध कराए गए परंतु शासन प्रशासन द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई बल्कि एक फर्जी आईडी बनाकर सोशल मीडिया पर खेल रचा गया जिस पर थाना हुसैनगंज में मुकदमा दर्ज हुआ । शिकायती पत्रों पर कोई कार्यवाही न होते देखकर अफ़ज़ाल इदरीसी द्वारा माननीय उच्च न्यायालय के सम्मुख याचिका प्रस्तुत की गई परंतु प्रकरण विस्तृत देखकर माननीय उच्च न्यायालय ने याचिका के संबंध में कारवाई नहीं की गयी तो वादी के अधिवक्ता द्वारा जनहित याचिका दाखिल करने की मांग करते हुए याचिका को वापस ले लिया गया और पत्रकारों की मान्यता आवास और मिलने वाली सुख सुविधाओं के विरुद्ध जनहित याचिका दाखिल की गई जिसकी जानकारी मिलने पर ऐसे तथाकथित पत्रकारों में खलबली मच जाना स्वाभाविक है और रंजिशन किसी भी हद तक जाने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
अदालत के आदेश की कापी
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शारिब जाफरी द्वारा प्रमुख संवाददाता आलमी सहारा लखनऊ का पता दिखाते हुए अफजल इदरीसी एवं अर्शिया इदरीसी के नाम से थाना हजरतगंज लखनऊ में दिनांक 13.3.2024 को प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखवाई गयी है जबकि दिए गए प्रार्थना पत्र में दिनांक 3.3.2024 को दर्ज मुकदमे का कोई भी हवाला नहीं दिया गया है जिससे जाहिर होता है कि थाना हुसैनगंज में मुकदमा अपराध संख्या 0029 दिनांक 3.3.2024 को दर्ज होने के उपरांत काउंटर FIR के रूप में थाना हजरतगंज में मुकदमा दर्ज कराया गया है. थाना हजरतगंज में दर्ज कराने हेतु दिए गए प्रार्थना पत्र में अनेक तत्वों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत कर मुक़दमे को जिस अंदाज में दर्ज कराया गया उसको देख कर इनके दबदबे का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। घटना करीब 8 महीने पहले दिन 22 मई 2023 की बताई गई है और उसके बाद 16 दिसंबर 2023 के दिन शनिवार को घटना सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के गेट के बाहर बताया जाना ही संदिग्ध प्रतीत होता है क्योंकि सूचना एवं जनसंपर्क विभाग शनिवार के दिन बंद होता है। सूचना विभाग के गेट पर लगे कैमरे से इस घटना की पुष्टि की जा सकती थी परंतु थाना हुसैनगंज में मुकदमा दर्ज होने के उपरांत और उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दर्ज होने के उपरांत लिखाये गए इस मुकदमे में ऐसे अनेक पहलू हैं जो पूरी घटना को नाटकीय दिखाए जाने के लिए पर्याप्त आधार दिखता है। फिलहाल एक मुकदमा थाना हुसैनगंज में दर्ज होने के उपरांत शारिब जाफरी द्वारा अपने पते आलमी सहारा लखनऊ दिखाते हुए मुक्त मुकदमा थाना हजरतगंज में दर्ज कराया गया है।
पुलिस द्वारा की जा रही विवेचना से अनेक तथ्यों सामने आएंगे लेकिन आम आदमी पुलिस थाने में चक्कर काटता रह जाता है और उसका मुकदमा दर्ज नहीं होता है, वही आज भी दबदबा काम करता है यह बात मुकदमे से प्रमाणित हो जाती है।
भड़ास द्वारा लगातार साक्ष्यों और तथ्यों पर खबरों को देखकर ऐसे तथाकथित पत्रकारों द्वारा भड़ास के विरुद्ध समूह बनाकर कार्य किया जा रहा है लेकिन कानूनी नोटिस के जवाब मिलने के उपरांत सभी खामोश हो जाते है क्योंकि भड़ास की खबरे दस्तावेजी साक्ष्यों पर आधारित होती है।