मोदी राज; छोटे अखबार सांसत में !

हम आह्वान करते हैं कि इस प्रेस सेवा पोर्टल का सभी प्रकाशकों को बहिष्कार करना चाहिए। जब तक प्रेस सेवा पोर्टल में वार्षिक विवरण को दाखिल करने में सरलीकरण न कर दिया जाए तब तक किसी हालत में वार्षिक विवरण प्रस्तुत नहीं किया जाए। जो प्रपत्र आरएनआई के पास पहले से जमा हैं या आरएनआई द्वारा जारी किए गए हैं, उन्हें स्वयं द्वारा सुरक्षित न रखकर फिर से मांग कर प्रकाशकों को परेशान किया जा रहा है।

श्याम सिंह पंवार (प्रेस काउंसिल सदस्य)

कें द्र सरकार के इशारे पर भारत के समाचार पत्रों के महापंजीयक द्वारा इस वर्ष से प्रकाशकों को विषम परिस्थितियों में डाल दिया गया है। यह कटु सत्य है कि प्रेस सेवा पोर्टल के माध्यम से प्रकाशकों को अपने-अपने समाचार पत्र व पत्रिकाओं को बंद करने का केंद्र की मोदी सरकार द्वारा कुचक्र रचा गया है। वर्षों से समाचार पत्रों व पत्रिकाओं के पंजीयन प्रमाण पत्र जारी नहीं किए गए हैं। अनेक शीर्षक संबंधी मामले लंबित है। पंजीयन प्रमाण पत्र में संशोधन के मामले लंबित हैं।

इन सब प्रकरणों को निस्तारित किए बिना प्रेस सेवा पोर्टल को लागू किया जाना न्याय संगत नहीं है। ज्ञातव्य हो कि प्रेस सेवा पोर्टल में अनेक ऐसे प्राविधान रखे गए हैं, जिन्हें छोटे व मझोले समाचार पत्रों व पत्रिकाओं के प्रकाशकों के द्वारा पूरा किया जाना असंभव है। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि केंद्र सरकार ने सिर्फ बड़े अखबारों के लिए यह कार्य योजना बनाई है।

प्रेस सेवा पोर्टल शुरू किए जाने से पूर्व सभी समाचार पत्रों के संगठनों से विचार-विमर्श किया जाना चाहिए था। इस वर्ष वार्षिक विवरणी ऑनलाइन दाखिल करने के लिए पहले पंजीकरण करना होगा। फिर मालिक, प्रकाशक, मुद्रक, प्रिंटिंग प्रेस, चार्टर्ड एकाउंटेंट वार्षिक विवरण को दाखिल नहीं कर पाएंगे। साथ ही प्रिंटिंग प्रेस को जीएसटी में पंजीकृत होना चाहिए अन्यथा प्रकाशक वार्षिक विवरण प्रस्तुत नहीं कर पाएंगे। ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार ने छोटी व मझोले वर्ग की प्रिंट मीडिया को समाप्त करने की योजना को मूर्त रूप देने के लिए प्रेस सेवा पोर्टल की योजना को लागू किया है।

हम आह्वान करते हैं कि इस प्रेस सेवा पोर्टल का सभी प्रकाशकों को बहिष्कार करना चाहिए। जब तक प्रेस सेवा पोर्टल में वार्षिक विवरण को दाखिल करने में सरलीकरण न कर दिया जाए तब तक किसी हालत में वार्षिक विवरण प्रस्तुत नहीं किया जाए। जो प्रपत्र आरएनआई के पास पहले से जमा हैं या आरएनआई द्वारा जारी किए गए हैं, उन्हें स्वयं द्वारा सुरक्षित न रखकर फिर से मांग कर प्रकाशकों को परेशान किया जा रहा है।

वर्तमान परिदृश्य में सभी प्रकाशकों को एकता के साथ इस सरकारी कुचक्र का कड़ा विरोध करने की जरूरत है, अन्यथा छोटे व मझोले अखबारों को सरकार बंद करने की योजना में सफल हो जाएगी। यह प्रेस की आजादी पर अदृश्य हमला है। इसमें कतई दो राय नहीं कि छोटे व मझोले वर्ग के अखबारों का गला कसने का काम विगत १० वर्षों से निरंतर किया गया है और अभी भी जारी है।

(लेखक पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)

 

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