डीपीएस पंवार ने भी छोड़ा जनसंदेश का साथ

जनसंदेश टाइम्स कानपुर जो बाकी सारी युनिटों की तुलना में सबसे सही और साफ-सुथरा माना जा रहा था उस एडिशन के संपादक देशपाल सिंह पवार ने विनीत मौर्या के चलते संस्थान को बॉय-बॉय कह दिया। माना जा रहा है कि बाकी युनिटों के बदले कानपुर युनिट का सबकुछ बहुत सही माना जा रहा था जिसके लिए देशपाल सिंह पवार को जिम्मेदार मानते थे लोग। देशपाल सिंह पवार के प्रति लोगों का यह सोचना ही विनीत मौर्या को चुभ गया। सही भी है विनीत मौर्या ने लखनऊ एडिशन में जहां कर्मचारियों का वेतन तीन-तीन महीने से रोके रखा है वहीं कानपुर एडिशन में कर्मचारियों का वेतन सही टाइम पर दिया जा रहा था। लखनऊ युनिट में इस बात को लेकर कुछ कर्मचारियों ने विनीत मौर्या से बात की थी कि जब संस्थान के पास पैसे की कमी नहीं है फिर भी जानबूझकर हम सबका वेतन तीन महीने विलम्ब से क्यों दिया जाता है जबकि देशपाल सिंह पवार के संरक्षण में कानपुर एडिशन के कर्मचारियों का वेतन समय से दिया जा रहा है। लखनऊ के कर्मचारियों की यही बात जहां विनीत मौर्या को चुभ गई वहीं देशपाल सिंह पवार को संस्थान छोडऩे के लिए बाध्य भी कर गई। संस्थान के कर्मचारी तो दबी जुबान यह भी कह रहे हैं कि जिस प्रकार से गोरखपुर इलाहाबाद युनिट अब ब्यूरो बन गया है उसी प्रकार से विनीत मौर्या कानपुर युनिट को भी ब्यूरो में तब्दील कर देना चाहते हैं। मामला जो भी रहा हो यह तो सही ही बात है कि बाकी युनिटों की तुलना में कानपुर युनिट हर मामले में सबसे आगे थी। कंटेंट के मामले में भी कानपुर और उसके आसपास शहरों के लोगों ने अखबार को काफी पंसद किया। देशपाल सिंह पवार का नाम ऐसे संपादकों में लिया जाता है जो संस्थान के हित में कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। संस्थान के हित और कर्मचारियों के हित को लेकर वह अक्सर मैनेजमेंट के सामने खड़े दिखाई देते हैं। वह जहां भी रहे हैं उनके कर्मचारी उनके इस कार्य के लिए हमेशा उनकी तारीफ करते रहे हैं। जनसंदेश टाइम्स के कानपुर एडीशन में भी उनके जाने को सही नहीं माना गया है। लोगों का कहना है कि अब जनसंदेश टाइम्स को कोई नहीं बचा सकता। जो भी हो इतना तो समझ से परे है कि आखिर अच्छे खासे रन कर रहे अखबार को मौर्या बन्धु गर्त में क्यों ले गए।

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