100+ बच्चियों से भले रेप हो, न्याय मिलने में 30+ साल लग जाए… लेकिन मुस्लिम दोषियों का नाम और फोटो मत छापो: योगेंद्र यादव ने मीडिया को समझाया

योगेंद्र यादव और सबा नकवी अजमेर सेक्स स्कैंडल की घटना पर चर्चा करते हैं और अफसोस जताते हैं कि मीडिया 30+ साल बाद भी इस घटना पर रिपोर्ट कर रहा है। सबा नकवी बातचीत के दौरान कहती हैं कि उन्हें हैरानी है कि देश में इतने सारे रेप की घटनाएँ हो रही हैं, दलित महिलाओं का लगातार शोषण हो रहा है और मीडिया अजमेर सेक्स स्कैंडल को दिखाने में लगा है।

योगेंद्र यादव और सबा नकवीबीते दिनों अजमेर सेक्स स्कैंडल पर आए फैसले और उसपर हुई रिपोर्टिंग से लिबरल बुद्धिजीवी बिलबिलाए हुए हैं। उनकी समस्या ये है कि आखिर अजमेर के मामले को उठाकर ये क्यों बताया जा रहा है कि आरोपित कौन थे, उनका क्या नाम था, उनका संबंध कहाँ से था। यकीन न हो, तो फ्रंटलाइन मैग्जीन पर डले वीडियो में लिबरल गिरोह के बुद्धिजीवी वर्ग- योगेंद्र यादव और सबा नकवी की 23 मिनट से लेकर 27:45 मिनट चर्चा सुनिए। दर्द साफ दिखेगा।

योगेंद्र यादव और सबा नकवी अजमेर सेक्स स्कैंडल की घटना पर चर्चा करते हैं और अफसोस जताते हैं कि मीडिया 30+ साल भी इस घटना पर रिपोर्ट कर रहा है। सबा नकवी बातचीत के दौरान कहती हैं कि उन्हें हैरानी है कि देश में इतने सारे रेप की घटनाएँ हो रही हैं, दलित महिलाओं का लगातार शोषण हो रहा है और मीडिया अजमेर सेक्स स्कैंडल को दिखाने में लगा है। वो बताती हैं कि कैसे आजकल के बड़े पत्रकार भी वर्तमान की खबरें दिखाने की जगह इस मामले की याद दिला रही हैं। सिर्फ ये बताने की कोशिश हो रही हैं कि अपराधी मुस्लिम थे।

इसके बाद योगेंद्र यादव इस घटना की करवरेज करने वाले मीडिया पत्रकारों को कोसते दिखते हैं। वो कहते हैं कि एक दिन दुनिया की किताबों में पढ़ाया जाएगा कि देख लो कैसे एक देश का मीडिया परेशानियों की जड़ बनता है। ऐसे मीडिया को इन समस्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

सबा फिर दोहराती हैं कि मीडिया खबरों में बार-बार ऐसे दिखाया गया कि मुस्लिम दोषी हैं जबकि उस घटना का आज के समय से कोई लेना-देना नहीं है। वहीं योगेंद्र यादव इस बात से आपत्ति जताते दिखते है कि आखिर दैनिक मीडिया अखबार किस तरीके से अजमेर रेप केस के आरोपितों का नाम सबको बता रहा है। उन्हें मिली सजा की खबर फ्रंट पेज पर दिखा रहा है। इस पर सबा नकवी तड़का लगाने के लिए कहती हैं जरूर इस खबर के लिए इंस्ट्रक्शन दिए गए होंगे कि अजमेर पर जाओ।

सबा नकवी गंभीर अंदाज में कहती हैं कि ये मुद्दा ऐसा है जिसपर चिंता की जानी चाहिए। इसके अलावा सबा नकवी एक्सट्रा प्वाइंट जोड़कर कहती हैं कि अब पत्रकार सिर्फ हिंदू-मुस्लिम करते हैं। उन्हें लगता है खबर में मुस्लिम नाम डालकर वह पाठकों में और रूचि जगा देंगे। दलित महिलाओं के रेप में किसी को कोई रूचि नहीं है।

फिर योगेंद्र यादव कहते हैं देखो बिहार, यूपी में आजकल घटना होती है कोई नहीं बोलता जबकि इन घटनाओं का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए, मगर जब तक ये मुद्दे राजनीतिक नहीं बनते तब तक इनकी चिंता कोई नहीं करता, तो ऐसी स्थिति में मैं चाहता हूँ कि चीजों का राजनीतिकरण किया जाए।

चाहे वो पर्यावरण का मुद्दा हो या किसी और चीज का। सबा नकवी कहती हैं तो लोगों को लटकाने के मामले पर भी? इस पर योगेंद्र यादव कहते हैं कि जब तक राजनीतिकरण नहीं होगा तब तक उस पर ध्यान नहीं दिया जाएगा। इसलिए घटनाओं का राजनीतिकरण होना जरूरी है ताकि उनपर लोगों का ध्यान जाए। आगे अपने आपको निष्पक्ष दिखाते हुए योगेंद्र यादव कहते हैं कि उनके हिसाब से बंगाल का मुद्दा भी उठाया जाना चाहिए लेकिन फिर ऐसे ही ऐसे मामलों में आवाज बिहार के लिए भी उठनी चाहिए।

बता दें कि जिस सेक्स स्कैंडल में दोषी ठहराए गए लोगों के नाम और चेहरा दिखाने से ऐसे लिबरल बुद्धिजीवियों को समस्या है उस केस में आरोपितों के नाम नफीस चिश्ती, अनवर चिश्ती, इकबाल भाटी, सलीम चिश्ती, सोहेल गनी, जमीर हुसैन, अल्मास महाराज, इशरत अली, परवेज अंसारी, मोइजुल्लाह, जउर चिश्ती, कलर लैब का मालिक महेश डोलानी, लैब डेवलपर पुरुषोत्तम उर्फ़ बबली थे। अब हाल में इन्हीं में से 6 को सजा हो गई है। इनके भी नाम जान लीजिए- फीस चिश्ती, नसीम उर्फ़ टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी और सैयद जमीर हुसैन।

अगर मीडिया इस केस की जानकारी देते हुए इनके नाम और इनकी तस्वीरें अपनी हेडलाइन में लिखता है तो लिबरलों को समस्या क्या हो सकती है। क्या उनके लिए इतने बड़े मामले में आया अपडेट खबर नहीं है। क्या उनकी आपत्ति का मतलब ये समझें कि उनके हिसाब से मीडिया को उन अपराधियों के नाम छिपाने चाहिए जो मुस्लिम समुदाय से आते हों ताकि सेकुलरिज्म बरकरार रहे या फिर ये भूल जाया जाए कि कैसे सुनियोजित ढंग से आज से तीन दक पहले हिंदू लड़कियों को निशाना बनाने का काम हुआ था। उनका रेप करके उनकी न्यूड फोटो वायरल कर दी गई थीं। क्या आज के मामलों की तरह अजमेर का मुद्दा जरूरी नहीं है।

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