दर्द से नहीं अपनी बदहाली पर रो दिया पत्रकार !

डॉ मोहम्मद कामरान (स्वतंत्र पत्रकार)

समाज का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारिता पेशे में कितनी असुरक्षा है, कितना खोखला, कमज़ोर है ये चौथा स्तंभ इसका अहसास भाई शरफुद्दीन से मिलने पर हुआ, उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता जगत में 18-20 सालों से निष्पक्ष, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा से एक चमकते सितारे की तरह अपने पत्रकारिता पेशे को बख़ूबी अंजाम दे रहे है, जिसकी शक्सियत पर कभी कोई दाग भी न आया हो ऐसे चांद की तरह जगमगाते भाई शरफुद्दीन को प्रेस कवरेज के।लिए जाते वक्त लखनऊ के बिगड़ैल रईसजादे ने बिना नंबर की अपनी चार पहिया गाड़ी से हवाई जहाज़ की रफ्तार से ठोक दिया और पूरे बदन को दागदार कर दिया।

शरफुद्दीन अपने सहयोगी के साथ दोपहिया वाहन को रोककर शहीद पथ के किनारे बने हॉस्पिटल का पता समझ रहे थे कि अचानक तेज़ रफ़्तार गाड़ी ने दोनों को अपने चंगुल में ले लिया, महँगे वाहन की तेज़ रफ्तार के आगे चौथा स्तंभ कही टिक न सका और 6 फुट हवा में उछल कर ज़मीन में आ गिरा, जा रहे थे हॉस्पिटल प्रेस कवरेज के लिए और बेहद गंभीर हालत में एक निजी हॉस्पिटल में इसलिए एडमिट होना पड़ा क्योंकि लोहिया संस्थान के बाहर 4 घंटे पड़े रहने के बाद भी कोई ख़ैर खबर लेने वाला न था, चौथे स्तंभ के रहबर, निष्पक्ष और ईमानदारी का आईना इस 4 घंटे में मात्र 4 लाइनों में नज़र आ गया,
अमीरों के जो गीत गाते रहे
वही नाम और दान पाते रहे
रहजनों ने रहजनी की थी
रहबरों ने भी क्या कमी की थी

पत्रकारों के रहबर शरफुद्दीन अपनी हड्डी तुड़वा कर ICU में दाल रोटी के चिंतन मनन में ही डूबे थे, कंधा जो उखड़ गया है, घुटने जो बाहर आ गए है उसका दर्द नही था, जान बचने की जहां खुशी दिख रही थी वहीं 8 सदस्यीय परिवार की नैय्या के अकेले खेवैया होने का जो दर्द था, उनकी आंखों से छलक आया, कैसे चलेगा परिवार, अब इस नैय्या को बीच मझधार से कैसे पार लगाना होगा, यही सवाल हर दर्द पर भारी दिख रहा था, हॉस्पिटल का खर्चा, काम का हर्जाना, पूरे परिवार का पालन पोषण और पत्रकारिता का दायित्व, सब छूटता नज़र आ रहा था, हड्डियों का सूरमा बन गया है ऐसे में काम कैसे बन पाएगा यही सोच सारे दर्द पर भारी दिख रही थी। ये सूरते हाल पत्रकारिता के हर शरफुद्दीन का है, कहने को चौथा स्तंभ है लेकिन कितना कमज़ोर है ये चौथा स्तंभ, बस एक चोट लगी और ढेर हुआ, परंतु हमें और आपको इसे ढेर नही होने देना है।

शरफुद्दीन जैसे पत्रकारिता के जगमगाते सितारे की जगमगाहट को बरकार रखने के लिए हम सबको साथ आना होगा और शरफुद्दीन के परिवार के हौसलों को बनाये रखने के लिए उनकी आर्थिक मदद की पहल भी करनी होगी, चौथे स्तंभ की मजबूती को बनाये रखने के लिए एक हाथ बढ़ाने से काम नही बनेगा बल्कि हम सबको मिलकर हाथ बढ़ाना होगा और अपने साथी को मजबूती देनी होगी।
मरहम लगा सको तो किसी गरीब के जख्मों पर लगा देना,
हकीम बहुत है बाजार में अमीरों के इलाज खातिर,

हम सबकी दुआ है कि जनाब शरफुद्दीन साहब को जल्द से जल्द शिफा मिले और वो अपने पत्रकारिता के सफ़र में आला मुक़ाम हासिल करें। आमीन

डॉ मोहम्मद कामरान
स्वतंत्र पत्रकार
अध्यक्ष, आईना
ऑल इंडिया न्यूज़पेपर एसोसिएशन

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